भाजपा का गढ़ माने जाने वाली केदारघाटी में जर्बदस्त मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस की विजय कोई अंचभा नहीं थी। दरसल केदारनाथ पूरे उत्तराखण्ड में हाॅट सीट थी, इसी कारण अंतिम समय तक भी भाजपा इस पर अपना प्रत्याशी घोषित ना कर जनता का मन टटोलती रही। यहाँ भाजपा ने पूर्व विधायक आशा नौटियाल का टिकट काटकर राजनीतिक वायदे के अनुसार कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में आयी शैलारानी रावत अपना टिकट दे दिया। लेकिन टिकट कट जाने से नाराज भाजपा से पूर्व विधायक रह चुकी आशा नौटियाल ने बगावत कर उनकी जीत के मंसूबों पर पानी फेर दिया। इन चुनावांे में कांग्रेस ने भी नए चेहरे मनोज रावत पर दाँव खेला। ‘राजयोग’ के धनी मनोज रावत के लिए भाजपा की बगावत ने विजयश्री का काम किया। बतौर विधायक मनोज रावत का पांच साला कार्यकाल संतोषजनक कहा जा सकता है। हालांकि उन पर विधायक निधि कम खर्च करने का आरोप भी लगा है। लेकिन कार्यकाल खत्म होते-होते उन्होंने ताबड़तोल योजनाए देकर कर विधायक निधि का उपयोग कर लिया। दरसल विपक्ष के विधायक होने के बावजूद वो मुखर रूप से कार्य नहीं कर पाए हो, फिर भी पूरे उत्तराखण्ड में विधानसभा सत्रों में सर्वाधिक सवाल उठाने वाले विधायक वहीं है। शिक्षा, संस्कृति और पर्यटन रोजगार को लेकर नयी सोच को तरजीह देने वाली उनकी कार्यशैली उनका मुरीद जरूर बनाती रही बावजूद बीते पांच सालों में वो जनता के बीच कितनी गहरी पैठ बना पाए है यह अब नया चुनाव ही तय करेगा।
कांग्रेस पार्टी में अंदरखाने उन्हें मजबूत समर्थन हासिल है।
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस में अंदरखाने स्थानीय कार्यकर्ताओं में उनके लिए थोड़ा नाखुशी भी है, जिसका असर कारण उनकी संवादहीनता भी है। बावजूद अधिकांश का यह भी दावा है कि मनोज रावत बंपर वोटों से जीतगे और मंत्री मंडल में स्थान पाएंगे।
इधर भाजपा में फिर से दावेदारी को लेकर रार मची है। एक दर्जन से अधिक दावेदारों के बाद हरक सिंह रावत भी यहां से टिकट पाने के लिए जोर लगा रहे हैं। बगावत और पैराशूट प्रत्याशी का खेल इस बार भी मनोज रावत के पक्ष में भाजपा ‘राजयोग’ का समीकरण बना सकती है। एक मजूबत निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कुलदीप रावत से जहाँ उनकी टक्कर होनी तय है वही आम आदमी पार्टी की दावेदारी भी उनके लिए कुछ मुसीबते खड़ी कर सकती है।
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[caption id="attachment_24054" align="aligncenter" width="454"] मनोज रावत[/caption]
भाजपा का गढ़ माने जाने वाली केदारघाटी में जर्बदस्त मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस की विजय कोई अंचभा नहीं थी। दरसल केदारनाथ पूरे उत्तराखण्ड में हाॅट सीट थी,
इसी कारण अंतिम समय तक भी भाजपा इस पर अपना प्रत्याशी घोषित ना कर जनता का मन टटोलती रही। यहाँ भाजपा ने पूर्व विधायक आशा नौटियाल का टिकट काटकर राजनीतिक
वायदे के अनुसार कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में आयी शैलारानी रावत अपना टिकट दे दिया। लेकिन टिकट कट जाने से नाराज भाजपा से पूर्व विधायक रह चुकी आशा
नौटियाल ने बगावत कर उनकी जीत के मंसूबों पर पानी फेर दिया। इन चुनावांे में कांग्रेस ने भी नए चेहरे मनोज रावत पर दाँव खेला। ‘राजयोग’ के धनी मनोज रावत के लिए
भाजपा की बगावत ने विजयश्री का काम किया। बतौर विधायक मनोज रावत का पांच साला कार्यकाल संतोषजनक कहा जा सकता है। हालांकि उन पर विधायक निधि कम खर्च करने का
आरोप भी लगा है। लेकिन कार्यकाल खत्म होते-होते उन्होंने ताबड़तोल योजनाए देकर कर विधायक निधि का उपयोग कर लिया। दरसल विपक्ष के विधायक होने के बावजूद वो मुखर
रूप से कार्य नहीं कर पाए हो, फिर भी पूरे उत्तराखण्ड में विधानसभा सत्रों में सर्वाधिक सवाल उठाने वाले विधायक वहीं है। शिक्षा, संस्कृति और पर्यटन रोजगार
को लेकर नयी सोच को तरजीह देने वाली उनकी कार्यशैली उनका मुरीद जरूर बनाती रही बावजूद बीते पांच सालों में वो जनता के बीच कितनी गहरी पैठ बना पाए है यह अब नया
चुनाव ही तय करेगा।
कांग्रेस पार्टी में अंदरखाने उन्हें मजबूत समर्थन हासिल है।
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस में अंदरखाने स्थानीय कार्यकर्ताओं में उनके लिए थोड़ा नाखुशी भी है, जिसका असर कारण उनकी संवादहीनता भी है। बावजूद अधिकांश
का यह भी दावा है कि मनोज रावत बंपर वोटों से जीतगे और मंत्री मंडल में स्थान पाएंगे।
इधर भाजपा में फिर से दावेदारी को लेकर रार मची है। एक दर्जन से अधिक दावेदारों के बाद हरक सिंह रावत भी यहां से टिकट पाने के लिए जोर लगा रहे हैं। बगावत और
पैराशूट प्रत्याशी का खेल इस बार भी मनोज रावत के पक्ष में भाजपा ‘राजयोग’ का समीकरण बना सकती है। एक मजूबत निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कुलदीप रावत से
जहाँ उनकी टक्कर होनी तय है वही आम आदमी पार्टी की दावेदारी भी उनके लिए कुछ मुसीबते खड़ी कर सकती है।
[caption id="attachment_23857" align="alignnone" width="68"] दीपक बेंजवाल[/caption]