पहाड़ के सामाजिक तानेबाने में जातियाँ हमेशा महत्वपूर्ण रही है, लेकिन इनमें समाया सदभाव का नजरिया अब राजनीति की चौसर से बिगड़ने लगा है। दरसल उत्तराखण्ड में ठाकुर-ब्राह्मण-दलित वाद की जड़े बड़े-छोटे के कई हिस्सों में बंटी है, जिन्हें पहले कार्य के हिसाब से तय किया जाता था। लेकिन आज बदलते दौर ने समाज में कार्य करने की निर्भरताओं को बदल दिया है, जिससे जाति का रूतबा आज सामान्य स्तर पर पहुंच चुका है। बावजूद सियासी हलकों में यह गणित आज भी कारगार माना जाता है, इसीलिए चुनावों में पार्टीयाँ जाति-धर्म देखकर भी कई जगहों पर दावेदार तय करती है। कुछ पुराने सामंतवादी नेता तो इसी दंभ में आज भी डूबे दिखते है, भले ही उनका यह मंशा पार्टीयों के सिंबल से कुछ ढक जरूर जाती है लेकिन मौका मिलते ही वो इस रूतबे को अपनी हनक का हथियार बना ही देते है।

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2022 विधानसभा चुनावों की रणभेरी बज चुकी है, तो ऐसे बयानो का आना स्वाभाविक है। सूबे की हाॅट सीट केदारनाथ सीट पर दावेदारी को लेकर भाजपा में मची गलाकाट प्रतियोगिता में भाजपा के मौजूदा जिलाध्यक्ष की टिप्पणी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। उनकी यह टिप्पणी भाजपा के ही एक दावेदार द्वारा सोशल मीडिया पर लिखी गयी पोस्ट पर सामने आयी है। पोस्ट पर लिखते हुए भाजपा नेता वीर सिंह बुडेरा कहते है कि बद्रीनाथ विधानसभा से ब्राह्मण प्रत्याशी अधिकृत करने के बाद केदारनाथ सीट से किसी ठाकुर को उम्मीदवार बनाये जाने का पार्टी हाईकमान पर दबाव है। हालांकि इस पोस्ट के जरिये वो अपनी दावेदारी को भी आगे रखना चाहते है। उनकी इस पोस्ट पर भाजपा के जिलाध्यक्ष दिनेश उनियाल ताल ठोकर कर कहते दिखे कि ‘केदारनाथ पूर्व से ब्राह्मण सीट रही है आगे भी यथावत रहेगी। दोनो नेताओं के अपने-अपने सियासी गणित है। लेकिन आम जन की राय इन दोनो से जुदा है, दस्तक को भेजी गयी पाठकों की प्रतिक्रियाओं में नेताओं के इस जातिवाद का खुलकर विरोध दिखा है। आम जन का मानना है कि पार्टीयों से जुड़ना, दावेदारों को पंसद करना और वोट देना वोटर का व्यक्तिगत मत भले ही हो लेकिन आमजन उनसे विकास की साझी उम्मीद रखता है। किसी भी पार्टी को पंसद करने वाले हर जाति-धर्म के लोग होते है, ऐसे में उन्हें खास किस्म की आँखे से देखना बेईमानी है। भाजपा के अलावा इस सियासी गणित में कांग्रेस भी बराबर साथ रही है, केदारनाथ में कांग्रेस के एक बड़े नेता तो सार्वजकिन कार्यक्रमों में पण्डितों की मुखाफलत के लिए ही जाने जाते है। इतना ही नहीं उनके नजरिये में ठाकुर में भी बड़ी मूँछ और छोटी मूँछ का गणित फीट है, जिसे वो गाहे-बगाहे अपने कार्यो में सामने रखते आए है। पहाड़ में बदनाम ‘ख-ब’ की गणित से समाज में भले ही कई बार वैमनस्यता फैलाई गयी हो लेकिन स्वस्थ समाज के हिमायतियों ने इसे हमेशा नकारा है। स्वस्थ लोकतंत्र में यह टिप्पणीयाँ और ऐसा नजरियाँ अर्मयादित है। पहाड़ों में एक कहावत है कि ‘राजा सबका साझा’ अर्थात राजा सबके लिए बराबर होता है। ऐसे में विधानसभा के इन तथाकथित राजाओं और उनके कारिंदो को भी सोचना चाहिए कि आम जन उनकी प्रजा है, जिसे जाति के खास नजरिये से देखकर प्रदूषित न करे। [caption id="attachment_23857" align="alignleft" width="150"] दीपक बेंजवाल, सम्पादक[/caption] दीपक बेंजवाल