जागेश्वर: जानिए एक चांदी का सिक्का यहां से ले जाने पर जिंदगी में क्यों नहीं होती धन की कमी
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27/01/20227:45 am
देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड अपने मंदिरों के लिए जाना जाता है। प्रदेश में कुबेर का एकमात्र मंदिर अल्मोड़ा के जागेश्वर धाम में स्थित है. जिसका महत्व धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है।. मान्यता है कि इस मंदिर में आकर पूजा-पाठ करने और एक चांदी का सिक्का यहां से ले जाने पर जिंदगी में कभी भी धन की कमी नहीं होती।
अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर प्रसिद्ध जागेश्वर मंदिर के 125 मंदिरों के समूह में धन देवता कुबेर भी विराजमान हैं। कुबेर का यह मंदिर उत्तराखंड में एकमात्र, जबकि देश का छठां कुबेर मंदिर है। मंदिर के पुजारियों का कहना है कि मूर्तिरूप में स्थापित यह मंदिर सबसे प्राचीन कुबेर का मंदिर है, यहां पर उन्हें शिव के रूप में भी पूजा जाता है।
पुजारी बताते हैं कि जिसकी भी आर्थिक स्थिती कमजोर होती है, उसे इस मंदिर से एक चांदी के सिक्के को मंत्रोच्चार करके पीले कपड़े में लपेटकर दिया जाता है. जिसके बाद उस सिक्के को धन रखने वाली जगह में रखने से धन में वृद्धि होती है और कभी उसे जिंदगी में गरीबी का सामना नहीं करना पड़ता।
वहीं धनतेरस के दिन यहां आकर कुबेर देवता की पूजा पाठ से शुभ फल मिलता है. मंदिर के पुजारियों के अनुसार यहां सालभर देश-विदेश से भक्त भगवान कुबेर के दर्शन के लिए पहुंचते हैं और चांदी के सिक्के को ले जाते हैं.इस मंदिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि इसका जीर्णोंद्धार भी जागेश्वर मंदिर समूह के अन्य मंदिरों की तरह ही 7वीं सदी से 14वीं सदी के बीच कत्यूरी राजवंश के दौरान ही हुआ था।
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जागेश्वर: जानिए एक चांदी का सिक्का यहां से ले जाने पर जिंदगी में क्यों नहीं होती धन की कमी
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देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड अपने मंदिरों के लिए जाना जाता है। प्रदेश में कुबेर का एकमात्र मंदिर अल्मोड़ा के जागेश्वर धाम में स्थित है. जिसका
महत्व धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है।. मान्यता है कि इस मंदिर में आकर पूजा-पाठ करने और एक चांदी का सिक्का यहां से ले जाने पर जिंदगी में कभी भी धन की कमी
नहीं होती।
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अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर प्रसिद्ध जागेश्वर मंदिर के 125 मंदिरों के समूह में धन देवता कुबेर भी विराजमान हैं। कुबेर का यह मंदिर
उत्तराखंड में एकमात्र, जबकि देश का छठां कुबेर मंदिर है। मंदिर के पुजारियों का कहना है कि मूर्तिरूप में स्थापित यह मंदिर सबसे प्राचीन कुबेर का मंदिर है,
यहां पर उन्हें शिव के रूप में भी पूजा जाता है।
पुजारी बताते हैं कि जिसकी भी आर्थिक स्थिती कमजोर होती है, उसे इस मंदिर से एक चांदी के सिक्के को मंत्रोच्चार करके पीले कपड़े में लपेटकर दिया जाता है. जिसके
बाद उस सिक्के को धन रखने वाली जगह में रखने से धन में वृद्धि होती है और कभी उसे जिंदगी में गरीबी का सामना नहीं करना पड़ता।
वहीं धनतेरस के दिन यहां आकर कुबेर देवता की पूजा पाठ से शुभ फल मिलता है. मंदिर के पुजारियों के अनुसार यहां सालभर देश-विदेश से भक्त भगवान कुबेर के दर्शन के
लिए पहुंचते हैं और चांदी के सिक्के को ले जाते हैं.इस मंदिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि इसका जीर्णोंद्धार भी जागेश्वर मंदिर समूह के अन्य मंदिरों
की तरह ही 7वीं सदी से 14वीं सदी के बीच कत्यूरी राजवंश के दौरान ही हुआ था।