हिमांक संगतानी द्वारा जीवन को सरल बनाती एक सच्ची कहानी - सन्नी_की_ठेली !  बात कुछ ऐसी सीखने जैसी। यह हैं सन्नी कुमार उम्र मात्र 21 वर्ष , ऋषिकेश के प्राचीन हनुमान मंदिर (मायाकुंड) के बाहर ,इन्हें पिछले 3 माह से समोसे तलते देखा जा

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सकता है। और संध्या में लगता है खाने वालों का जमावड़ा , कुछ सफ़ाई के क़ायल ,कुछ स्वाद के ...और मुझ जैसे चटोरे स्वाद से बढ़के साहस के मुरीद । सन्नी साधारण संकल्प-शक्ति के स्वामी नहीं बल्कि विशिष्ट प्रतिभा के धनी हैं। बचपन में मात्र 9 माह की आयु में ‘रीढ़’ पर किसी के द्वारा तेज़ाब डाल दिए जाने के कारण क़ुदरत ने ‘रीढ़ की हड्डी’ तो पिघला दी पर हौसला ना पिघला सकी। मुझे तो वो रीढ़ सेना के रंगरूट से भी अधिक मज़बूत दिखी जो पूरे परिवार का बोझ लिए सुर्ख़ सीधी खड़ी थी । बेलन पे ज़ोर इतना विपदाओं का धैर्य कुचल दे उतना । पूछने पर बताया , की समोसा “फ़ाइव का वन” शायद सन्नी ने सोचा की मुझ पे भी वहीं फ़िरंग लेप लगा है जो, ‘पाँच का एक समोसा’ खा ना पाऊँ। पर इन आँखों ने मंदिर के अंदर से इतनी ऊर्जा एकत्र ना की हो जितनी सन्नी के दर्शन मात्र से ले ली थी । शारीरिक रूप से स्वस्थ पिता एवं भाई को सन्नी ने बतौर सहायक रखा है और स्वयं है मुख्य कर्ता ! खाना बनाना , हिसाब करना .. ग्राहकों से व्यवहार रखना सब स्वयं ही करते हैं । अगर उस दिन सन्नी के पिता ने उस नौ महीने के तेज़ाब से घायल नवजात को छोड़ दिया होता ,तो शायद आज परिवार का भार स्वयं उठाना पड़ता , पर क़ुदरत का दस्तूर देखिए आज वही बच्चा अपने पिता समेत पूरा भार उसी रीढ़ पर लिए खड़ा है जो एक दिन चोटिल थी। ₹35,000 उधार लेकर सन्नी खड़े हैं खुले बाज़ार में सिर्फ़ स्वयं पर विश्वास ,हाथों में स्वाद और एक सीख के साथ की जीवन में हार जैसा कुछ नहीं । तो ऋषिकेश वासियों आपने ही मदन सिंधी को बनाया था, आप ही राजस्थानी मिशठान भंडार के आय दाता हैं , आपको भाया तो इस शहर में अन्न का दाना बिक पाया ; और यह बच्चा एक मौक़े का हक़दार है , और यक़ीन मानिएगा समोसा खा के इसके वीरत्तव की अनूभूति आपको हो तो उसका स्वाद आप कदापि भूल नहीं पाएँगे। व्यवसाय का स्तर अवश्य कम है , पर स्वाद में दम है।