केदारनाथ विधानसभा सीट पर शैलारानी की टिकटपोशी से जीत-हार के नए समीकरण बनने लगे है। जहां कल तक निर्दलीय कुलदीप रावत और कांग्रेस के मनोज रावत बढ़त बनाये हुए थे वहीं आज भाजपा से तेज तर्रार नेत्री शैलारानी के नामांकन से दोनो खेमों में हड़कंप मच गया है। खासकर निर्दलीय कुलदीप रावत के लिए अब भाजपा बड़ी चुनौति के रूप में सामने है। बतौर निर्दलीय कुलदीप के लिए दस दिनों के प्रचार के सीमित समय में हर बूथ तक अपना सिंबल पहुंचाना जहाँ चुनौति होगा, वहीं भाजपा के परम्परागत वोटरों का मन बदलना भी सरल नहीं है। भाजपा के टिकट घोषित न होते तक मतदाता भ्रम की स्थिति में थे, और अधिकांश के लिए कुलदीप बेहतर विकल्प के रूप में सामने आ रहे थे लेकिन भाजपा ने अचानक शैलारानी को टिकट देकर जीत के गणित को बदल दिया है। इस बार बीजेपी मंे खुले तौर पर बगावत के आसार नहीं है अंदरखाने थोड़ा बहुत भीतरीघात

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जरूर होगा लेकिन उससे बीजेपी की जीत पर कोई जादा फर्क नहीं पड़ेगा। बीजेपी के परम्परागत कैडर वोट अब एकतरफा फैसला करेंगे। कांग्रेस से पूर्व विधायक मनोज रावत इस बार भी ताल ठोकते नजर आ रहे है, अपनी पांच साल की उपलब्धि मंे किताब बनाम शराब का उनका नारा सुर्खियों में जरूर है लेकिन आम जन और खुद अपनी ही पार्टी के कार्यकत्तओं से उनकी संवादहीनता अब मुद्दा बनता जा रहा है। जगह-जगह जनता यही बोल रही है कि पांच साल में विधायक जी के दर्शन नहीं हुए, ऐसे में विकास कार्य कितने हुए होंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। लीक से हटकर काम करने का उनका दर्शन भी अन्त में अन्य विधायकों की तरह स्वाहा हो गया। कार्यकाल के अन्तिम समय में उन्होंने भी अन्य नेताओं की तरह जनता को लुभाने के लिए बर्तन, खेल सामग्री बांटकर सहानुभूति बटोरने की जुगत की, लेकिन यह भी नाराज जनता का मूढ़ नहीं बदल पाई। ग्राम पुस्तकालय के रूप में उनकी पहल सराहनीय थी लेकिन चार साल के कार्यकाल में इस दिशा में ठोस प्रयास नहीं हुए। आलम ये हुआ कि केदारनाथ विधानसभा की आधी ग्राम पंचायतों को ही इसका लाभ मिल पाया। हाँ जनता में उनके लिए यह जरूर है कि अगर वो जीतते है और राज्य में कांग्रेस की सरकार आती है तो उनका मंत्री पद निश्चित है।