किताब थी फूलों भरी ज़मी मेरी....शायर वज़ीर अ़ागा की ये पंक्तियाँ किताबों से उपजी खूबसूरती को बखूबी बताती है।  

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वास्तव में किताब हर व्यक्ति का सच्चा साथी होता है। ये हमेशा सच बोलती है, बुरे वक्त में हमें साहस और उत्साह से भर देती है और अच्छे वक्त में विनम्र रहना सिखाती हैं। इसीलिए केदारनाथ के सृजनशील विधायक मनोज रावत ने केदारघाटी में बच्चों के लिए लंबे समय तक मददगार और यादगार रहने वाली सौगात दी है। जी हाँ उत्तराखण्ड की विधानसभा में एक ऐसा विधायक जिसने पहाड़ की उस नई पीढ़ी के लिए सोचा है जो अभावों में बेहतर भविष्य की तैयारी नहीं कर पाते है। ये उन बुजुर्गो के लिए भी सार्थक पहल है जो गांवो में एकांकी पन बिता रहे है। ये उस शराब, पैसे बांटने की रीति की मुखाफलत है जिसने आज पहाड़ को बर्बाद करके रख दिया है। पांच साल राज के ऐवज में खोखले नारांे के साथ जनप्रतिनिधि जब वोट मांगने निकलते है तो उनके पास आरोप-प्रत्यारोप का लंबा चैड़ा जखीरा होता है, खुद को अच्छा और दूसरे को खराब बताते हुए कुछ झूठे सपनो की बुनियाद भी वो रख लेते है लेकिन केदारनाथ विधायक मनोज रावत इस झूठी परिपाटी से बहुत दूर है। इसीलिए आज पहाड़ के बड़े हिस्से में उनके समर्थन में आवाजे उठ रही है। यह आवाजे इसीलिए भी है कि क्योंकि राज्य बने 22 सालों में झूठे सब्जबाग बहुत दिखालाये गये लेकिन जमीन पर हकीकत दिखाने का मद्दा बहुत कम जनप्रतिनिधियों में रहा है। आज राज्य की सबसे दूरस्थ और दुरूह परिस्थितियों वाली केदारघाटी के 159 गांवों में ग्राम पुस्तकालय के रूप में अच्छी पहल शुरू हुई। सोशल मीडिया पर बहुत से गांव के युवाओं ने अपने ग्राम पुस्तकालय की खबरे डाली है। अच्छा लगता है कि जब नौनिहाल किताबों की बात करते है, दुनिया और समाज में हो रहे बदलाव की बात करते है। केदारनाथ क्षेत्र का एक गांव है तड़ाग जहाँ के एक युवा है अरविन्द नेगी ने भी इस पुस्तकालय को लेकर एक विडियो डाला है। वो बताते है कि उनके ग्राम पुस्तकालय में केदारघाटी के स्थानीय लेखकों की किताबे है तो आईएएस, पीसीएस से लेकर सामान्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारीयों को लेकर महत्वपूर्ण किताबे भी। बड़े-बुजुर्गो के लिए इतिहास, कला, संस्कृति से जुड़ा साहित्य भी है। अरविन्द कहते है कि इस पहल ने बच्चों को कम्पटीशन फाइट करने का हौसला तो दिया ही है साथ ही बेहतरी और उम्मीदों के लिए सोचने की समझ भी दी है। अरविन्द का जिक्र यहां इसलिए किए गया क्योंकि किताबो से बेहतरी का वह नायक है। दरसल कुछ साल पहले गांव में रहने वाले इस युवा ने एक किताब लिखी अलबेला। थोड़े समय में ही इस किताब को ई प्लेटफार्म पर जबरदस्त रिस्पांश मिला, पुस्तक की सैकड़ों प्रतियां हाथो-हाथ बिक गयी यहां तक कि एफ एम रेडियो के एक साईट पर दो लाख से भी अधिक लोगों ने इसे सुन भी लिया और लगातार सुनना जारी है। दरसल यही है किताबों से उपजी फूलों भरी ज़मी। ऐसी अनगिनत उम्मीदों से भरी किताबों की ज़मी अब ग्राम पुस्तकालयों का हिस्सा बनकर उम्मीदे जगा रही है। [caption id="attachment_23857" align="aligncenter" width="100"] दीपक बेंजवाल, सम्पादक[/caption] दस्तक..ठेठ पहाड़ से