जकार्ता में रहने वाले प्रवासी युवा मनीष सेमवाल की अपील  जब धर्म युद्ध हो तो तटस्थ रहा नहीं जाता

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उत्तराखंड चुनाव विकास , शिक्षा, स्वास्थ्या, के साथ विचारों, भावनाओं और समर्पण का भी चुनाव है। दिल्ली से अपने घर ९ घंटे में पहुँचना विकास जरूर दिखता है और गर्व भी है। पर आज घर छोड़े करीब ३२ सालों भी जब डॉक्टर के नाम पर आज किसी जब कोई डॉक्टर नहीं दिखता, शिक्षा के नाम पर अपनी खुद की स्कूलों में ३० साल पहले की तुलना में गिरे हुए शिक्षा के स्तर को देखना, पलायन को तत्पर युवा को देखता हूँ तो लगता है कि इन सालों में विकास कहाँ हुआ है। दो बड़ी पार्टियों ने राज्य का उपभोग तो किया पर विकास के कोई कार्य निजी स्तर पर नहीं कर पाए। हमारी केदारनाथ विधान सभा में अगर विकास का कोई कार्य हुआ है तो सही मायनों में विद्यापीठ में फार्मेसी कॉलेज के अलावा कुछ नहीं है। वहाँ से हर साल कुछ बच्चे पढ़कर अपने लायक रोजगार कमा रहे हैं या सरकारी नौकरियां पा रहे हैं। आज दो बड़ी पार्टियों के उम्मीदवारों में कांग्रेस के वर्तमान विधायक मनोज रावत जी और बीजेपी से शैलारानी रावत जी को इन पार्टियों ने टिकट दिए हैं। दोनों ही सक्षम नेता है । महिला होने के नाते मेरा पहला सम्मान शैलारानी रावत जी को जाता है। शिक्षा से जुड़ी शैला रानी जी में राजनैतिक ज्ञान के अलावा वाक्पटुता है और पहाड़ का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओं के दर्द से जुड़ाव है। मेरा मानना है कि विपक्षी विधायक होने होने के नाते क्षेत्र और राजनीतिक ज्ञान होते हुए भी वर्तमान विधायक मनोज रावत जी कुछ खास नहीं कर पाए और नहीं वर्तमान सरकार के खिलाफ किसी आंदोलन में सक्रियता से जुड़े दिखे। व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिए देवस्थानम बोर्ड एक बड़ा मुद्दा था, सरकार ने जिसे वापस लेकर बीजेपी कि स्थिति थोड़ा मजबूत तो कि है पर विरोध ने दौरान बीजेपी के किसी भी स्थानीय नेता द्वारा देवस्थानम बोर्ड के विरोध में या व्यवहारिकता में कोई साथ नहीं दिया । नेता वो सही है जो सही को सही और अगर अपनी पार्टी के गलत निर्णयों को गलत न कह पाए। राज्य और खासकर केदारघाटी में इन दोनों पार्टियों से अलग और बुजुर्ग नेताओं से अलग किसी युवा को मौका मिलना जरूरी है। जो निर्दलीय केदारघाटी से सालों से अपनी जीत की कोशिश कर रहे है उनकी शैक्षिक योग्यता मुझे उनकी और जाने से रोकती है वैसे नेता कौन से बहुत पढ़े लिखे होते हैँ । ऐसे में तब के मेरे स्कूल के एक युवा सुमंत तिवारी को चुनाव में लड़ते देखता हूँ तो लगता है की मुझसे कई साल छोटा ये युवा कुछ नए विचार तो लिए हुए होगा। देवस्थानम बोर्ड में यही एक नेता था जो जो स्थानीय लोगों के साथ था। मुझे नहीं लगता सुमंत का कोई पोलिटिकल गुरु है जो राजनीतिक समझ इस युवा ने बनाई है वो उसकी खुद की है , क्षेत्र पंचायत से जिला पंचायत के उपाध्यक्ष तक का सफर अकेले तय करने वाले जरूर इस युवा से भी कुछ गलतियां हुई होंगी। केदारघाटी में आज ये ऐसा अकेला नेता है जो न जातीय समीकरण से इस चुनाव में है न धनबल से। ये एक अकेला ऐसा युवा नेता है जिसको उसके कामों से एक नयी पार्टी ने इसे टिकट दिया है। वो पार्टी कौन है कैसी है उस पर विचार हो सकता है पर एक युवा जो दिग्गजों को चुनौती देता दिख रहा है उसका साथ देना बनता है। केदारघाटी के लिए एक नई राजनीतिक सोच का और एक युवा जोश का आगे आना जरूरी है। जीत हार सुमंत की होगी । उस जीत हार में भुला सुमंत तिवारी का सहयोग न सिर्फ मेरा धर्म है बल्कि मेरे नीवों से जुड़ाव , मेरे स्कूल के सम्मान और बड़ी पार्टियों के सक्षम खड़े होने आर्शीवाद है। भुला इस धर्म युद्ध में मैं तेरे किसी काम मैं आ सकूँ तो ये मेरा सौभाग्य होगा। जय हो विजय हो ! और सबसे ऊपर संघर्ष हो। "अबकी बारी सुमंत तिवारी " [caption id="attachment_24592" align="aligncenter" width="150"] मनीष सेमवाल, जकार्ता[/caption]