देवेश नौटियाल दद्दा के भाषणों से मुरीद बनते लोग, आखिर जेहन में मिश्री क्यों घोल रहे हैं दद्दा के बोल
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01/02/202211:04 pm
शब्दों के धनी और साहित्य के पुरोधा केदारनाथ सीट से निर्दलीय दावेदार देवेश नौटियाल ‘द्ददा ’ के बहुत से जादुई शब्द इन दिनों गांव-गांव में छाये है। आलम ये है कि कोई किसी भी दल का समर्थक हो लेकिन दद्दा की भाषण शैली हर किसी को लुभाने में कारगार हो रही है।
देवेश नौटियाल उस अश्वचालक का नेता बनना चाहता है जो अपने पसीने की कमाई से अपने बेटो को पालता है, देवेश नौटियाल उस बाजीगर का नेता बनना चाहता है, जिसकी ढोल की थाप से भगवान खुश होते है। देवेश नौटियाल उस किसान का नेता बनना चाहता है, जो इन खेतों को अपनी पसीने की मेहनत से सींचता है। क्या हुआ देवेश नौटियाल के पास नोटों के बंडल नहीं, क्या हुआ देवेश नौटियाल के पास कवच और कुण्डल नहीं है, लेकिन देवेश नौटियाल के कवच और कुण्डल उसके यशस्वी जजमान है। देवेश नौटियाल के रथी और सारथी आप सब परिवार तुल्य जनता है……शब्दों के धनी और साहित्य के पुरोधा केदारनाथ सीट से निर्दलीय दावेदार देवेश नौटियाल ‘द्ददा ’ के ऐसे बहुत से जादुई शब्द इन दिनों गांव-गांव में छाये है। आलम ये है कि कोई किसी भी दल का समर्थक हो लेकिन दद्दा की भाषण शैली हर किसी को लुभाने में कारगार हो रही है। वो जितनी सरलता और सहजता से अपने जादुई शब्दों से हृदय के मर्म को छूते है, वो किसी को भी उनका मुरीद बनाने के लिए काफी होता है। गढ़वाल विश्वविद्यालय में छात्र संघ अध्यक्ष रह चुके दद्दा के भाषण आज भी उस दौर के साथियों के जेहनो में गूंजते है, वो कहते है दद्दा जब बोलते थे सब सुध बुध खो देते थे। वास्तव में उनकी वाणी का ओज तब भी मंत्रमुग्ध करता था और आज भी अपना बना लेता है। राजनीति में जन संवाद के लिए प्रतिनिधी का वाकपटु होना आवश्यक माना जाता है, यह कला न सिर्फ मंचो पर बल्कि सदन से सत्ता तक हर किसी के लिए जरूरी गुण है। जनता के बीच जनता के मुद्दे पकड़ना, जनता का मन जानना और उसे अपने भाषण में शामिल कर जनता का दिल जीतना देवेश नौटियाल से बखूबी सीखा जा सकता है। इन दिनों वे बेहद सरल शब्दों में जनता के बीच जाकर स्पष्ट कहते हैं कि उनका मुकाबला एक-एक करोड़ मरसर्डीज वालों से है, नोटों के बंडल बांटने वालों से है और शराब की बोतलें बांटने वालाें से है। मेरी केदारनाथ विधानसभा के 90 फीसदी लोग पैदल चलते हैं, यहां 90 फीसदी लोग किराये की जीपों से चलते हैं, देवेश नौटियाल उन 90 फीसदी लोगों में से एक है और उन 90 फीसदी लोगों का नेता बनना चाहता है। जनता को चुप्पी साधने वाले नेता नहीं चाहिए, जनता को बहाने बनाने वाले नेता नहीं चाहिए, जनता को अपने दुख दर्द समझने वाला, विकास की सोच रखने वाला और सबसे ज्यादा उनके नौनिहालों को रोजगार देने, दिलाने वाला नेता चाहिए। यही मेरा उद्देश्य है, जनता को जनता का विधायक चाहिए पार्टियों का विधायक नहीं। जनहित सर्वोपरि है पार्टीहित नहीं, मैं हमेशा आम जन के साथ हूँ, और अपने सारे संसाधनों से युवाओं को रोजगार देने के लिए ताकत लगाता रहूँगा।
गंदी राजनीति के कारण आज युवा आत्महत्या कर रहे है ऐसे में हमारे विधायक विकास के नाम पर बर्तन बांट रहे है। गांव की चैपालों में गीत और संगीत की संध्या का आयोजन कर रहे है। हमे ऐसा नेतृत्व नहीं चाहिए और हमे ऐसा विधायक नहीं चाहिए जो विधायक बनने के बाद विकास के नाम पर ढोलक और चिमटे बाँटता हो। हमें ऐसा नेतृत्व भी नहीं चाहिए जो विधायक बनने के लिए आपके बच्चों को शराब की बोतलें देता हो, हमे ऐसा विधायक भी नहीं चाहिए जो विधायक बनने के लिए गांजे और चरस का प्रयोग करता हो। विधायक बनने का मापदण्ड बर्तन बांटना और राशन बांटना नहीं है, अगर विधायक बनना के ये मानक होता तो उत्तराखण्ड विधानसभा के अंदर आढ़त बाजार के कई व्यापारी होते। चुनिऐ उसे जो आपके लिए संघर्ष कर सके, चुनिये उसे जो आपके सुख और दुःख में शरीक हो सके। चुनिए उसे जो आपकी आवाज को विधानसभा में जोरदार तरीके से रख सके।
देवेश नौटियाल दद्दा के भाषणों से मुरीद बनते लोग, आखिर जेहन में मिश्री क्यों घोल रहे हैं दद्दा के बोल
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शब्दों के धनी और साहित्य के पुरोधा केदारनाथ सीट से निर्दलीय दावेदार देवेश नौटियाल ‘द्ददा ’ के बहुत से जादुई शब्द इन दिनों गांव-गांव में छाये है। आलम ये
है कि कोई किसी भी दल का समर्थक हो लेकिन दद्दा की भाषण शैली हर किसी को लुभाने में कारगार हो रही है।
देवेश नौटियाल उस अश्वचालक का नेता बनना चाहता है जो अपने पसीने की कमाई से अपने बेटो को पालता है, देवेश नौटियाल उस बाजीगर का नेता बनना चाहता है, जिसकी ढोल की
थाप से भगवान खुश होते है। देवेश नौटियाल उस किसान का नेता बनना चाहता है, जो इन खेतों को अपनी पसीने की मेहनत से सींचता है। क्या हुआ देवेश नौटियाल के पास
नोटों के बंडल नहीं, क्या हुआ देवेश नौटियाल के पास कवच और कुण्डल नहीं है, लेकिन देवेश नौटियाल के कवच और कुण्डल उसके यशस्वी जजमान है। देवेश नौटियाल के रथी
और सारथी आप सब परिवार तुल्य जनता है......शब्दों के धनी और साहित्य के पुरोधा केदारनाथ सीट से निर्दलीय दावेदार देवेश नौटियाल ‘द्ददा ’ के ऐसे बहुत से जादुई
शब्द इन दिनों गांव-गांव में छाये है। आलम ये है कि कोई किसी भी दल का समर्थक हो लेकिन दद्दा की भाषण शैली हर किसी को लुभाने में कारगार हो रही है। वो जितनी
सरलता और सहजता से अपने जादुई शब्दों से हृदय के मर्म को छूते है, वो किसी को भी उनका मुरीद बनाने के लिए काफी होता है। गढ़वाल विश्वविद्यालय में छात्र संघ
अध्यक्ष रह चुके दद्दा के भाषण आज भी उस दौर के साथियों के जेहनो में गूंजते है, वो कहते है दद्दा जब बोलते थे सब सुध बुध खो देते थे। वास्तव में उनकी वाणी का ओज
तब भी मंत्रमुग्ध करता था और आज भी अपना बना लेता है। राजनीति में जन संवाद के लिए प्रतिनिधी का वाकपटु होना आवश्यक माना जाता है, यह कला न सिर्फ मंचो पर बल्कि
सदन से सत्ता तक हर किसी के लिए जरूरी गुण है। जनता के बीच जनता के मुद्दे पकड़ना, जनता का मन जानना और उसे अपने भाषण में शामिल कर जनता का दिल जीतना देवेश
नौटियाल से बखूबी सीखा जा सकता है। इन दिनों वे बेहद सरल शब्दों में जनता के बीच जाकर स्पष्ट कहते हैं कि उनका मुकाबला एक-एक करोड़ मरसर्डीज वालों से है, नोटों
के बंडल बांटने वालों से है और शराब की बोतलें बांटने वालाें से है। मेरी केदारनाथ विधानसभा के 90 फीसदी लोग पैदल चलते हैं, यहां 90 फीसदी लोग किराये की जीपों से
चलते हैं, देवेश नौटियाल उन 90 फीसदी लोगों में से एक है और उन 90 फीसदी लोगों का नेता बनना चाहता है। जनता को चुप्पी साधने वाले नेता नहीं चाहिए, जनता को बहाने
बनाने वाले नेता नहीं चाहिए, जनता को अपने दुख दर्द समझने वाला, विकास की सोच रखने वाला और सबसे ज्यादा उनके नौनिहालों को रोजगार देने, दिलाने वाला नेता चाहिए।
यही मेरा उद्देश्य है, जनता को जनता का विधायक चाहिए पार्टियों का विधायक नहीं। जनहित सर्वोपरि है पार्टीहित नहीं, मैं हमेशा आम जन के साथ हूँ, और अपने सारे
संसाधनों से युवाओं को रोजगार देने के लिए ताकत लगाता रहूँगा।
गंदी राजनीति के कारण आज युवा आत्महत्या कर रहे है ऐसे में हमारे विधायक विकास के नाम पर बर्तन बांट रहे है। गांव की चैपालों में गीत और संगीत की संध्या का
आयोजन कर रहे है। हमे ऐसा नेतृत्व नहीं चाहिए और हमे ऐसा विधायक नहीं चाहिए जो विधायक बनने के बाद विकास के नाम पर ढोलक और चिमटे बाँटता हो। हमें ऐसा नेतृत्व
भी नहीं चाहिए जो विधायक बनने के लिए आपके बच्चों को शराब की बोतलें देता हो, हमे ऐसा विधायक भी नहीं चाहिए जो विधायक बनने के लिए गांजे और चरस का प्रयोग करता
हो। विधायक बनने का मापदण्ड बर्तन बांटना और राशन बांटना नहीं है, अगर विधायक बनना के ये मानक होता तो उत्तराखण्ड विधानसभा के अंदर आढ़त बाजार के कई व्यापारी
होते। चुनिऐ उसे जो आपके लिए संघर्ष कर सके, चुनिये उसे जो आपके सुख और दुःख में शरीक हो सके। चुनिए उसे जो आपकी आवाज को विधानसभा में जोरदार तरीके से रख सके।
वो जनता से मतदान की अपील भी कर रहे है। वोट किसे भी दे लेकिन दे अवश्य। वो कहते हैं चुनाव बहिष्कार सही नहीं है, यह आपकी जागरूकता को दिखाता है।
दीपक बेंजवाल