मेरे पहाड़ के खेतो में सरसो फूल गयी है, बीठा पाखौ पर खिली फ्यूली की पीली पीली पंखुड़िया सौजड़यो की याद दिलाने लगी है, सुर्ख लाल बुरांश की लालिमा से जंगल लकदक हो चले, नयी खुशहाली नयी उमंग मे लवरेज पहाड़ की डांडी काँठी सजने लगी है, ऐसे में बरबस उत्तराखण्ड के रत्न श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी का एक गाना याद आता है " मेरी डांडी काठ्यों का मूलुक जैलू,बसंत ऋतु मा जैई। " पहाड़ में बंसत पंचमी लोकपर्व के रूप में मनाया जाता है, आज सुबह सवेरे उठकर पीली पिठाई का तिलक लगाया जाता है, गुड़ तिल देकर नये साल के आगमन की शुभकामनाऐ दी जाती

Featured Image

है, महिलाये दरवाजो के ऊपर जौ की बालिया लगाकर मंगलगान करती है, पुरूष देवता के थानो को फूलो से सजाते है, देवता आज के दिन तीर्थ स्नानो को जाते है। बच्चे पीले वस्त्र पहनते है, माँ सरस्वती का पूजन होता है , गाँव के पंचायती चौको में नये साल के पंचाग का वाचन कर मौसम तथा समय की जानकारिया दी जाती है। हर कोई बंसत का स्वागत करता है। आप सभी को दस्तक पत्रिका परिवार की ओर से ऋतुराज बंसत के आगमन की ढेर सारी शुभकामनाऐ, आपका जीवन सुखमयी हो, उल्लासमयी हो ।