आज पूजे जाते हैं रात्रि के चार पहर भगवान अगस्त्य, जानिए क्या हैं अगस्त्य छठ पूजा
1 min read
06/02/20228:51 am
अगस्त्यमुनि। मंदाकिनी घाटी में स्थित श्री अगस्त्य ऋषि मंदिर में बसंत पंचमी से दो दिवसीय छठ पूजा का आयोजन कल से शुरू हो गया है। उत्तराखंड समेत देश में यह एकमात्र मंदिर है जहां रात्रि के चार पहर भगवान की पूजा वैदिक मंत्रों और पारंपरिक वाद्यों के साथ की जाती है। इस पूजा में हर पहर भगवान को सूखे चावलों का भोग लगाया जाता है। इस पूजा के लिए पुजारी को दिन और रात्रि निराहार और निंद्रा का त्याग करना पड़ता हैं।
अगस्त्य षष्ठी अथवा छठ पूजन में मंदिर के गर्भगृह में स्थापित समस्त विग्रह को बसंत पंचमी के सूर्योदय में स्नान कराया जाता है। पुनः विग्रहों को तथा स्थान रखकर पूजा भोग लगाया जाता है। अगली षष्ठी तिथि को प्रातः अठोल पूजा भोग के उपरांत रात्रि के चार पहर विशेष पूजा होती हैं। आज की पूजा का संपादन आचार्य सुशील बेंजवाल द्वारा संपादित होगी।
क्या हैं मान्यता –
पहाड़ी क्षेत्रों में भगवान सूर्य को समर्पित इस विशेष छठ पूजा का आयोजन केवल अगस्त्य मंदिर में किया जाता है। नारदीय पुराण के अनुसार महर्षि अगस्त्य साक्षात विष्णु रूप हैं। मान्यता है कि विध्यांचल पर्वत के आकार में वृद्धि के कारण सूर्य का मार्ग रुक जाता है। तब महर्षि अगस्त्य ही सूर्य का मार्ग प्रशस्त करते हैं। तभी से सूर्य भगवान शुक्ल पक्ष की पंचमी-षष्ठी तिथियों में साक्षात रूप से भगवान अगस्त्य इस मंदिर में विराजमान होते हैं। इसी कारण महर्षि अगस्त्य आश्रम में सूर्य पूजा का विशेष फल प्राप्त होता है। भगवान अगस्त्य द्वारा ही भगवान राम को रावण विजय के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र प्रदान किया गया था। युद्ध विजय, आत्मबल और शक्ति सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए इस पूजा का विशेष महत्व है।
देश और दुनिया सहित स्थानीय खबरों के लिए जुड़े रहे दस्तक पहाड़ से।
खबर में दी गई जानकारी और सूचना से क्या आप संतुष्ट हैं? अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
आज पूजे जाते हैं रात्रि के चार पहर भगवान अगस्त्य, जानिए क्या हैं अगस्त्य छठ पूजा
दस्तक पहाड़ की से ब्रेकिंग न्यूज़:
भारत में सशक्त मीडिया सेंटर व निष्पक्ष पत्रकारिता को समाज में स्थापित करना हमारे वेब मीडिया न्यूज़ चैनल का विशेष लक्ष्य है। खबरों के क्षेत्र में नई क्रांति लाने के साथ-साथ असहायों व जरूरतमंदों का भी सभी स्तरों पर मदद करना, उनको सामाजिक सुरक्षा देना भी हमारे उद्देश्यों की प्रमुख प्राथमिकताओं में मुख्य रूप से शामिल है। ताकि सर्व जन हिताय और सर्व जन सुखाय की संकल्पना को साकार किया जा सके।
अगस्त्यमुनि। मंदाकिनी घाटी में स्थित श्री अगस्त्य ऋषि मंदिर में बसंत पंचमी से दो दिवसीय छठ पूजा का आयोजन कल से शुरू हो गया है। उत्तराखंड समेत देश में यह
एकमात्र मंदिर है जहां रात्रि के चार पहर भगवान की पूजा वैदिक मंत्रों और पारंपरिक वाद्यों के साथ की जाती है। इस पूजा में हर पहर भगवान को सूखे चावलों का भोग
लगाया जाता है। इस पूजा के लिए पुजारी को दिन और रात्रि निराहार और निंद्रा का त्याग करना पड़ता हैं।
क्या हैं विधान -
अगस्त्य षष्ठी अथवा छठ पूजन में मंदिर के गर्भगृह में स्थापित समस्त विग्रह को बसंत पंचमी के सूर्योदय में स्नान कराया जाता है। पुनः विग्रहों को तथा स्थान
रखकर पूजा भोग लगाया जाता है। अगली षष्ठी तिथि को प्रातः अठोल पूजा भोग के उपरांत रात्रि के चार पहर विशेष पूजा होती हैं। आज की पूजा का संपादन आचार्य सुशील
बेंजवाल द्वारा संपादित होगी।
क्या हैं मान्यता -
पहाड़ी क्षेत्रों में भगवान सूर्य को समर्पित इस विशेष छठ पूजा का आयोजन केवल अगस्त्य मंदिर में किया जाता है। नारदीय पुराण के अनुसार महर्षि अगस्त्य
साक्षात विष्णु रूप हैं। मान्यता है कि विध्यांचल पर्वत के आकार में वृद्धि के कारण सूर्य का मार्ग रुक जाता है। तब महर्षि अगस्त्य ही सूर्य का मार्ग प्रशस्त
करते हैं। तभी से सूर्य भगवान शुक्ल पक्ष की पंचमी-षष्ठी तिथियों में साक्षात रूप से भगवान अगस्त्य इस मंदिर में विराजमान होते हैं। इसी कारण महर्षि अगस्त्य
आश्रम में सूर्य पूजा का विशेष फल प्राप्त होता है। भगवान अगस्त्य द्वारा ही भगवान राम को रावण विजय के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र प्रदान किया गया था। युद्ध
विजय, आत्मबल और शक्ति सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए इस पूजा का विशेष महत्व है।