हे बाबा केदार ! इन मौका परस्त नेताओं को सदबुद्धि दे, ज्ञान दे

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विपिन सेमवाल / गुप्तकाशी / वरिष्ठ पत्रकार


कई नेता गत 20 वर्षों से चुनाव जीत कर दुबारा वोट मांगते पोस्टर में नज़र आये,गोमती दादी को अभी भी कई ऐसे चेहरे याद आने लगे, जो हमेशा बड़ा अस्पताल, डॉक्टर और संसाधन दिलवाने के कोरे वायदे करते थे।और जीतने के बाद , देहरादून अपने बच्चों का इलाज/ शिक्षा के लिए ये बड़े नेता देहरादून रहते हैं।

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गोमती दादी का रोम – रोम दर्द कर रहा था। बता रहे हैं कि गुम चोट लगी है। लिसलिसा रक्त किश्तों में जाघों के बीच से अनवरत बह रहा था। गोमती दादी ने इशारों में कई बार बताया कि अब बचना दुष्कर है। सांसें चंद बाकी हैं। सफर लम्बा है। गांव वालों ने ( मिलाक ) एकत्रित करके कुछ पैसे की व्यवस्था कर दी थी। असल में गोमती दादी का जवान बेटा केदार आपदा में ‘शायद ‘स्वर्ग सिधार गया, शायद इसलिए क्योंकि 8 वर्ष हो गए , अब ननकू बिटिया भी पूरे 10 की हो गई है। गोमती दादी की इकलौती ब्वारी को गोधूली बेला पर रीछ ने फाड़ दिया था, निर्भाग घास का भारा भी तो पहाड़ जैसा उठा रही थी, उफ! दर्दनाक मौत!!

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अब दोनों नातिनियों के जीवन निर्वाह का जिम्मा गोमती दादी के सिर । सुबह- सुबह बच्चों को निद्रा की आगोश में छोड़ बांज काटने चले गयी , पांव सूखी टहनी पर था, कमज़ोर टहनी दादी के अधेड़ भार का संवरण नही कर पाया, टहनी के साथ ही दादी भी भरभराकर गिर गई। होश नही आया। वो तो अच्छा हुआ ,कि लोगों ने खोज बीन कर ली। मिली भी तो, अचेतन अवस्था में। सड़क मार्ग गांव से 4 किमी दूर था। खटिया में रक्तिम अचेतन शरीर को रख उबड़ – खाबड़ , पथरीले रास्तों का सफर शुरू हुआ। अब 2 घण्टे बाद ब्रान्च रोड, फिर 15 किमी बाद मुख्य रोड। बामुश्किल एक ही तैनात डॉक्टर/ फॉर्मेसिष्ट द्वारा बृद्ध खून से विहीन शरीर को देखा जाएगा। एक्स-रे नही है, खून की जरूरत पड़ सकती है, गुम चोट में अल्ट्रा साउंड की कमी है। फिर वही संसाधन ना होने का रोना। फिर घूम फिरकर ऋषिकेश/ देहरादून की ओर कूच। सूर्य संताप करते हुए उदय हो रहा था। मुख पर सुनहरी किरण के आलिंगन से गोमती दादी को हल्का होश आने लगा। वो पीड़ा से कराहने लगी। उसे अपने अंतिम हश्र का अंदाजा था, बोलना चाह रही ही, लेकिन मुंह में आवाज नही थी। गला सूखने के साथ रुंध सा गया था। रास्ते की दीवारों पर कई नेताओं के प्रणाम वाली मुद्रा में वोट मांगते पोस्टर नज़र आये। कई नेता गत 20 वर्षों से चुनाव जीत कर दुबारा वोट मांगते पोस्टर में नज़र आये,गोमती दादी को अभी भी कई ऐसे चेहरे याद आने लगे, जो हमेशा बड़ा अस्पताल, डॉक्टर और संसाधन दिलवाने के कोरे वायदे करते थे।और जीतने के बाद , देहरादून अपने बच्चों का इलाज/ शिक्षा के लिए ये बड़े नेता देहरादून रहते हैं। क्यों केवल चुनाव के समय इनके दर्शन होते हैं। हम कितने भोले हैं, सब कुछ जानने के बाद भी इन कम्बख्तों को ही चुनते हैं। गोमती दादी की इच्छा हो रही थी, कि काश इस समय ऐसी घटना इन नेताओं के परिवार के साथ घटती। काश, दादी को ये नेता अभी नज़र आते, तो दो थप्पड़ वो जरूर मुंह पर छाप देती। दादी ने उठने की नाकाम कोशिश की, लेकिन शरीर का बोझिल ढांचा उठने की गवाही नहीं दे रहा था। दादी की सांसे उखड़ने लगी, उसके चेहरे के सामने दोनों अबोध नातिनियों का चेहरा घूमने लगा। खटिया कंपकपाने लगी, जोर की हिचकी के साथ, गोमती दादी का शरीर, सांसों के बंधन से हमेशा के लिए मुक्त हो गया। नेताजी का पोस्टर चेहरा इस बार अधिक जोर से हंसने लगा। जैसे कि चिढ़ा रहा ,हो कि तुम्हारी यही नियति है, तुम्हें ऐसे ही हौले – हौले मौत की आगोश में जाना है।। तुम गरीब थे, गरीब ही मरोगे…तुम्हें ठोकरें खाने के लिए ही इस धरा पर अवतरित होना है, ताकि हम जैसे लोग तुमसे वोट ऐंठ सकें।

हे! बाबा केदार……इन मौका परस्त नेताओं को सद्बुद्धि दे, ज्ञान दे।

 

 

 

 

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