भाजपा के शासन काल में बेरोजगारी चरम पर होती है तो महंगाई भी आम जन की कमर तोड़ कर रख देती है। यहां अच्छे दिन केवल पार्टी नेताओं के आते है जो दिनों दिन धनपति बनते जा रहे है। वहीं भाजपा द्वारा जिले स्तर पर बनाऐ गए आलीशान कार्यालय भी उनके अच्छे दिनों के सबूत है। डबल इंजन के नाम पर मांगे गए वोट और 2017 के भाजपा का घोषणा पत्र के संकल्प अभी अधूरे ही है, ऐसे में देखना होगा कि भाजपा कैसे पहाड़ के रूठे वोटरों को रिझा पाती है।
पहाड़ों में हो रही झमाझम बारिश और बर्फवारी ने चुनावी रैलियों, जनसभाओं को अपने ठंडे आगोश में लेकर फीका कर दिया है तो ठंड से पहाड़ों में तेजी से फैल रहे वायरल ने भी राजनीतिक दलों की परेशानियां बड़ा दी है। हालांकि सरकार ने कोविड की नई गाइडलाइन जारी कर जहां नेताओं को रैलियों के आयोजन की छूट दे दी है वहीं स्कूलें खोलकर सब कुछ सामान्य होने की बात भी स्वीकार ली है। बहुत से लोग इसे चुनावी स्टंट करार दे रहे, चुनावी महौल बना रहे इसके लिए जानबूझकर कोविड जांचों को लगभग बंद कर दिया है, जिससे कोविड के नए केस आने कम हो गए है। हालांकि कोविड से मौत के आंकड़े अभी भयावह है, लेकिन चुनावों के मध्यनजर सरकार न कोई कोविड बुलेटिन जारी कर रही है और नहीं अतिरिक्त सर्तकता।
उत्तराखण्ड समेत देश के पांच राज्य में चुनाव सिर पर है, जिसके लिए सभी राजनीतिक दल जोर शोर लगा रहे है। स्टार प्रचारकों की ताबड़तोल वर्चुएल रैलियों के बाद बाद जनसभाएं को भी हरी झंडी मिल चुकी है। कांग्रेस की आरे से जहां राहुल गांधी एकमात्र स्टार प्रचारक बने है वहीं भाजपा की तरफ से पीएम मोदी, अमित शाह, वी के सिंह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा जनता के बीच पहुंच रहे है। उत्तराखण्ड में भी इन सभी नेताओं की रैलियां होनी है। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह रूद्रप्रयाग में डूअर-टू-डूअर कम्पेन कर चुके है तो वही मोदी और जे पी नड्ड भी श्रीनगर और अगस्त्यमुनि में रैली कर रहे है। कांग्रेस के उत्तराखण्ड सुप्रीमो हरीश रावत ने चार धाम चार काम का नारा दिया है वहीं भाजपा ने एक बार फिर डबल इंजन सरकार के भरोसे वोट मांगती नजर आ रही है। हालांकि इस बार मोदी लहर पहाड़ों में बेअसर है क्योंकि सूबे की भाजपा सरकार ने बीते पांच सालों में तीन-तीन मुख्यमंत्री देकर कोई ठोस उपलब्धि उत्तराखण्ड को नहीं दी है। बीते चुनावों में श्रीनगर रैली में मोदी ने पहाड़ की जवानी और पहाड़ के पानी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की थी लेकिन सूबे में उनकी डबल इंजन वाली सरकार इस वायदे पर खरी नहीं उतरी। कार्यकाल के अंत में भाजपा सरकार ने भर्ती तो खोली लेकिन परीक्षाओं को तय समय पर करवाना ही भूल गई। रोजगार देने में भाजपा सरकार की हमेशा जमकर आलोचना होती रही है। आम जन का कहना है कि आदर्शवादिता वाली भाजपा अब जुमले वाली पार्टी बन कर रह गई है। भाजपा के शासन काल में बेरोजगारी चरम पर होती है तो महंगाई भी आम जन की कमर तोड़ कर रख देती है। यहां अच्छे दिन केवल पार्टी नेताओं के आते है जो दिनों दिन धनपति बनते जा रहे है। वहीं भाजपा द्वारा जिले स्तर पर बनाऐ गए आलीशान कार्यालय भी उनके अच्छे दिनों के सबूत है। डबल इंजन के नाम पर मांगे गए वोट और 2017 के भाजपा का घोषणा पत्र के संकल्प अभी अधूरे ही है, ऐसे में देखना होगा कि भाजपा कैसे पहाड़ के रूठे वोटरों को रिझा पाती है।
देश और दुनिया सहित स्थानीय खबरों के लिए जुड़े रहे दस्तक पहाड़ से।
खबर में दी गई जानकारी और सूचना से क्या आप संतुष्ट हैं? अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
बादलों के घेरे में फंसे बीजेपी के स्टार प्रचारक! क्या मोदी-नड्डा की रेली होगी असरदार ?
दस्तक पहाड़ की से ब्रेकिंग न्यूज़:
भारत में सशक्त मीडिया सेंटर व निष्पक्ष पत्रकारिता को समाज में स्थापित करना हमारे वेब मीडिया न्यूज़ चैनल का विशेष लक्ष्य है। खबरों के क्षेत्र में नई क्रांति लाने के साथ-साथ असहायों व जरूरतमंदों का भी सभी स्तरों पर मदद करना, उनको सामाजिक सुरक्षा देना भी हमारे उद्देश्यों की प्रमुख प्राथमिकताओं में मुख्य रूप से शामिल है। ताकि सर्व जन हिताय और सर्व जन सुखाय की संकल्पना को साकार किया जा सके।
कालिका काण्डपाल / अगस्त्यमुनि
भाजपा के शासन काल में बेरोजगारी चरम पर होती है तो महंगाई भी आम जन की कमर तोड़ कर रख देती है। यहां अच्छे दिन केवल पार्टी नेताओं के आते है जो दिनों दिन धनपति
बनते जा रहे है। वहीं भाजपा द्वारा जिले स्तर पर बनाऐ गए आलीशान कार्यालय भी उनके अच्छे दिनों के सबूत है। डबल इंजन के नाम पर मांगे गए वोट और 2017 के भाजपा का
घोषणा पत्र के संकल्प अभी अधूरे ही है, ऐसे में देखना होगा कि भाजपा कैसे पहाड़ के रूठे वोटरों को रिझा पाती है।
पहाड़ों में हो रही झमाझम बारिश और बर्फवारी ने चुनावी रैलियों, जनसभाओं को अपने ठंडे आगोश में लेकर फीका कर दिया है तो ठंड से पहाड़ों में तेजी से फैल रहे वायरल
ने भी राजनीतिक दलों की परेशानियां बड़ा दी है। हालांकि सरकार ने कोविड की नई गाइडलाइन जारी कर जहां नेताओं को रैलियों के आयोजन की छूट दे दी है वहीं स्कूलें
खोलकर सब कुछ सामान्य होने की बात भी स्वीकार ली है। बहुत से लोग इसे चुनावी स्टंट करार दे रहे, चुनावी महौल बना रहे इसके लिए जानबूझकर कोविड जांचों को लगभग
बंद कर दिया है, जिससे कोविड के नए केस आने कम हो गए है। हालांकि कोविड से मौत के आंकड़े अभी भयावह है, लेकिन चुनावों के मध्यनजर सरकार न कोई कोविड बुलेटिन जारी
कर रही है और नहीं अतिरिक्त सर्तकता।
उत्तराखण्ड समेत देश के पांच राज्य में चुनाव सिर पर है, जिसके लिए सभी राजनीतिक दल जोर शोर लगा रहे है। स्टार प्रचारकों की ताबड़तोल वर्चुएल रैलियों के बाद
बाद जनसभाएं को भी हरी झंडी मिल चुकी है। कांग्रेस की आरे से जहां राहुल गांधी एकमात्र स्टार प्रचारक बने है वहीं भाजपा की तरफ से पीएम मोदी, अमित शाह, वी के
सिंह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा जनता के बीच पहुंच रहे है। उत्तराखण्ड में भी इन सभी नेताओं की रैलियां होनी है। हाल ही में गृह मंत्री अमित
शाह रूद्रप्रयाग में डूअर-टू-डूअर कम्पेन कर चुके है तो वही मोदी और जे पी नड्ड भी श्रीनगर और अगस्त्यमुनि में रैली कर रहे है। कांग्रेस के उत्तराखण्ड
सुप्रीमो हरीश रावत ने चार धाम चार काम का नारा दिया है वहीं भाजपा ने एक बार फिर डबल इंजन सरकार के भरोसे वोट मांगती नजर आ रही है। हालांकि इस बार मोदी लहर
पहाड़ों में बेअसर है क्योंकि सूबे की भाजपा सरकार ने बीते पांच सालों में तीन-तीन मुख्यमंत्री देकर कोई ठोस उपलब्धि उत्तराखण्ड को नहीं दी है। बीते चुनावों
में श्रीनगर रैली में मोदी ने पहाड़ की जवानी और पहाड़ के पानी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की थी लेकिन सूबे में उनकी डबल इंजन वाली सरकार इस वायदे पर खरी नहीं उतरी।
कार्यकाल के अंत में भाजपा सरकार ने भर्ती तो खोली लेकिन परीक्षाओं को तय समय पर करवाना ही भूल गई। रोजगार देने में भाजपा सरकार की हमेशा जमकर आलोचना होती रही
है। आम जन का कहना है कि आदर्शवादिता वाली भाजपा अब जुमले वाली पार्टी बन कर रह गई है। भाजपा के शासन काल में बेरोजगारी चरम पर होती है तो महंगाई भी आम जन की कमर
तोड़ कर रख देती है। यहां अच्छे दिन केवल पार्टी नेताओं के आते है जो दिनों दिन धनपति बनते जा रहे है। वहीं भाजपा द्वारा जिले स्तर पर बनाऐ गए आलीशान कार्यालय
भी उनके अच्छे दिनों के सबूत है। डबल इंजन के नाम पर मांगे गए वोट और 2017 के भाजपा का घोषणा पत्र के संकल्प अभी अधूरे ही है, ऐसे में देखना होगा कि भाजपा कैसे पहाड़
के रूठे वोटरों को रिझा पाती है।