केदारनाथ विधान सभा क्षेत्र में चुनावी रण के अन्तिम चरण में सभी प्रत्याशियों द्वारा अपनी पूरी ताकत झोंक देने के बाद भी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है। अभी भी यहां त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। यहां की सीट तीन रावतों के संघर्ष में फंसी नजर आ रही है। भाजपा की शैलारानी रावत, कांग्रेस के मनोज रावत तथा निर्दलीय कुलदीप रावत के बीच आगे बढ़ने की जंग जारी है।
वर्ष 2017 में हुए चुनाव में कांग्रेस के मनोज रावत पहली बार चुनाव लड़े तो उनका मुकाबला जहां कांग्रेस बगावत कर भाजपा में शामिल हुई पूर्व विधायक शैलारानी रावत से था वहीं भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ी दो बार भाजपा से विधायक रही आशा नौटियाल से भी था। इस चुनाव में सबको चौंकाते हुए निर्दलीय कुलदीप रावत ने सबको पछाड़ते हुए चुनाव जीतने की कगार पर पहुंच गये थे। आखिर में वे 13 हजार वोट पाकर आठ सौ वोटों से हारकर दूसरे नम्बर पर रहे। वहीं भाजपा से बगावत कर पूर्व विधायक आशा नौटियाल लगभग 11 हजार वोट लाकर तीसरे नम्बर पर रही। शैलारानी रावत दस हजार से अधिक वोट लाकर चौथे स्थान पर ही रह पाई। कांग्रेस के मनोज रावत पहली बार चुनाव लड़े और लगभग 14 हजार वोट पाकर चुनाव जीते।
इस बार के चुनावों में भाजपा ने इस सीट को जीतने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाया है। भाजपा के लिए यह राहत की बात रही कि यहां सीधे तौर पर तो कोई बगावत नहीं हुई परन्तु भीतरघात की सम्भावना बनी रही। भीतरघात की सम्भावना को तब बल मिला जब चुनाव प्रचार के पहले सप्ताह में बड़े दावेदार कहीं नजर नहीं आये। परन्तु जैसे जैसे प्रचार में तेजी आई तथा राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की आमद होने लगी वैसे वैसे भाजपा में एकजुटता भी बढ़ने लगी। पहले गृहमंत्री अमित शाह का रूद्रप्रयाग दौरा तथा बाद में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के अगस्त्यमुनि दौरे ने पूरा परिदृष्य ही बदल गया। भीतरघात की किसी भी सम्भावना को दरकिनार कर सभी दावेदार एक मंच से और एक स्वर से भाजपा को जिताने का संकल्प दोहराने लगे। इससे भाजपा की स्थिति काफी मजबूत हुई है। रही सही कसर प्रधानमंत्री मोदी के श्रीनगर दोरे ने पूरी कर दी। मोदी जी इसे अपना प्रिय क्षेत्र घोषित कर चुके है, तथा इस सीट पर भाजपा को जिताने की मार्मिक अपील भी वे कर चुके हैं। अगर यह काम कर गई तो भाजपा इस बार पिछली हार का बदला ले सकती है। कांग्रेस के मनोज रावत के लिए भले ही कोई राष्ट्रीय या प्रदेश स्तरीय नेता प्रचार के लिए न आया हो फिर भी वे पिछले पांच वर्षों में किए गये कार्यों को लेकर जनता से दोबारा आशीर्वाद मांग रहे हैं। गांव गांव में लाइब्रेरी शराब बनाम किताब का नारा बुलन्द कर रही है। तो विधान सभा के अमर शहीदों की याद में बनाये गये स्मारक, शहीदों के सम्मान को बढ़ा रहे हैं। वहीं मांगल एवं खुदेड़ गीतों से वे अपनी लोक संस्कृति को संरक्षण दे रहे हैं। अगर जनता ने उनके कार्यों पर मुहर लगाई तो आजादी के बाद यह पहली बार होगा कि इस सीट पर कांग्रेस की लगातार तीसरी जीत होगी। निर्दलीय कुलदीप रावत विगत कई वर्षों से क्षेत्र में की गई समाज सेवा का हवाला देते हुए जनता से आशीर्वाद मांग रहे है। पहले भी केदारनाथ की जनता निर्दलीय प्रत्याशी को कई बार अपना आशीर्वाद दे चुकी है। इन सबके साथ ही आप के सुमन्त तिवारी एवं निर्दलीय देवेश नौटियाल अपनी सशक्त उपस्थिति से तीनों की नींद उड़ाये हुए हैं। दोंनो ही युवाओं एवं महिलाओं के समर्थन से अपना जनाधार निरन्तर बढ़ा रहे हैं। इस चुनाव में यह पहली बार देखेने को मिला है कि युवाओं का रूझान न तो राष्ट्रीय दलों की ओर है और न ही क्षेत्रीय दलों की ओर है। क्षेत्र के अधिकांश युवा निर्दलीय कुलदीप रावत के साथ हैं। बाकी या तो आप के सुमन्त तिवारी के साथ हैं या निर्दलीय देवेश नौटियाल के साथ दिख रहे हैं। अब यह तो परिणाम ही बतायेंगे कि ये युवा उनके वोटर भी थे या केवल भीड़ का हिस्सा यह एक सोचनीय विषय है कि आखिर युवा इन दलों से दूर क्यों हो रहे हैं। वहीं यह भी सच है कि केदारनाथ की जनता ने प्रत्याशियों से सहानुभूति भी जताई है तो नाराजगी भी। अब यह तो आने वाली 10 मार्च को ही पता चलेगा कि जनता किस पर सहानुभूति जताती है और किस पर नाराजगी।
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अगस्त्यमुनि / हरीश गुसाईं
केदारनाथ सीट पर आने वाली 10 मार्च को पता चलेगा कि जनता किस पर सहानुभूति जताती है और किस पर नाराजगी।
केदारनाथ विधान सभा क्षेत्र में चुनावी रण के अन्तिम चरण में सभी प्रत्याशियों द्वारा अपनी पूरी ताकत झोंक देने के बाद भी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है।
अभी भी यहां त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। यहां की सीट तीन रावतों के संघर्ष में फंसी नजर आ रही है। भाजपा की शैलारानी रावत, कांग्रेस के मनोज रावत
तथा निर्दलीय कुलदीप रावत के बीच आगे बढ़ने की जंग जारी है।
वर्ष 2017 में हुए चुनाव में कांग्रेस के मनोज रावत पहली बार चुनाव लड़े तो उनका मुकाबला जहां कांग्रेस बगावत कर भाजपा में शामिल हुई पूर्व विधायक शैलारानी रावत
से था वहीं भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ी दो बार भाजपा से विधायक रही आशा नौटियाल से भी था। इस चुनाव में सबको चौंकाते हुए निर्दलीय कुलदीप रावत ने
सबको पछाड़ते हुए चुनाव जीतने की कगार पर पहुंच गये थे। आखिर में वे 13 हजार वोट पाकर आठ सौ वोटों से हारकर दूसरे नम्बर पर रहे। वहीं भाजपा से बगावत कर पूर्व
विधायक आशा नौटियाल लगभग 11 हजार वोट लाकर तीसरे नम्बर पर रही। शैलारानी रावत दस हजार से अधिक वोट लाकर चौथे स्थान पर ही रह पाई। कांग्रेस के मनोज रावत पहली बार
चुनाव लड़े और लगभग 14 हजार वोट पाकर चुनाव जीते।
इस बार के चुनावों में भाजपा ने इस सीट को जीतने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाया है। भाजपा के लिए यह राहत की बात रही कि यहां सीधे तौर पर तो कोई बगावत नहीं हुई
परन्तु भीतरघात की सम्भावना बनी रही। भीतरघात की सम्भावना को तब बल मिला जब चुनाव प्रचार के पहले सप्ताह में बड़े दावेदार कहीं नजर नहीं आये। परन्तु जैसे जैसे
प्रचार में तेजी आई तथा राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की आमद होने लगी वैसे वैसे भाजपा में एकजुटता भी बढ़ने लगी। पहले गृहमंत्री अमित शाह का रूद्रप्रयाग दौरा तथा
बाद में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के अगस्त्यमुनि दौरे ने पूरा परिदृष्य ही बदल गया। भीतरघात की किसी भी सम्भावना को दरकिनार कर सभी दावेदार एक मंच से और
एक स्वर से भाजपा को जिताने का संकल्प दोहराने लगे। इससे भाजपा की स्थिति काफी मजबूत हुई है। रही सही कसर प्रधानमंत्री मोदी के श्रीनगर दोरे ने पूरी कर दी।
मोदी जी इसे अपना प्रिय क्षेत्र घोषित कर चुके है, तथा इस सीट पर भाजपा को जिताने की मार्मिक अपील भी वे कर चुके हैं। अगर यह काम कर गई तो भाजपा इस बार पिछली हार
का बदला ले सकती है। कांग्रेस के मनोज रावत के लिए भले ही कोई राष्ट्रीय या प्रदेश स्तरीय नेता प्रचार के लिए न आया हो फिर भी वे पिछले पांच वर्षों में किए गये
कार्यों को लेकर जनता से दोबारा आशीर्वाद मांग रहे हैं। गांव गांव में लाइब्रेरी शराब बनाम किताब का नारा बुलन्द कर रही है। तो विधान सभा के अमर शहीदों की याद
में बनाये गये स्मारक, शहीदों के सम्मान को बढ़ा रहे हैं। वहीं मांगल एवं खुदेड़ गीतों से वे अपनी लोक संस्कृति को संरक्षण दे रहे हैं। अगर जनता ने उनके कार्यों
पर मुहर लगाई तो आजादी के बाद यह पहली बार होगा कि इस सीट पर कांग्रेस की लगातार तीसरी जीत होगी। निर्दलीय कुलदीप रावत विगत कई वर्षों से क्षेत्र में की गई
समाज सेवा का हवाला देते हुए जनता से आशीर्वाद मांग रहे है। पहले भी केदारनाथ की जनता निर्दलीय प्रत्याशी को कई बार अपना आशीर्वाद दे चुकी है। इन सबके साथ ही
आप के सुमन्त तिवारी एवं निर्दलीय देवेश नौटियाल अपनी सशक्त उपस्थिति से तीनों की नींद उड़ाये हुए हैं। दोंनो ही युवाओं एवं महिलाओं के समर्थन से अपना जनाधार
निरन्तर बढ़ा रहे हैं। इस चुनाव में यह पहली बार देखेने को मिला है कि युवाओं का रूझान न तो राष्ट्रीय दलों की ओर है और न ही क्षेत्रीय दलों की ओर है। क्षेत्र के
अधिकांश युवा निर्दलीय कुलदीप रावत के साथ हैं। बाकी या तो आप के सुमन्त तिवारी के साथ हैं या निर्दलीय देवेश नौटियाल के साथ दिख रहे हैं। अब यह तो परिणाम ही
बतायेंगे कि ये युवा उनके वोटर भी थे या केवल भीड़ का हिस्सा यह एक सोचनीय विषय है कि आखिर युवा इन दलों से दूर क्यों हो रहे हैं। वहीं यह भी सच है कि केदारनाथ की
जनता ने प्रत्याशियों से सहानुभूति भी जताई है तो नाराजगी भी। अब यह तो आने वाली 10 मार्च को ही पता चलेगा कि जनता किस पर सहानुभूति जताती है और किस पर नाराजगी।