अरखुण्ड गांव के युवा रविन्द्र झिंक्वाण ने बदली बदहाली की तस्वीर, आपदा से तबाह ज़मीं पर बोए खुशहाली के बीज
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28/02/20227:14 am
✍️हेमन्त चौकियाल / अगस्त्यमुनि
जिस भूभाग का प्राकृतिक आपदा ने भूगोल ही बदल दिया था, उस धरा को अपनी बुद्धिमत्ता, मेहनत व इच्छा शक्ति के बल पर सजा व संवार कर युवाओं को एक उदाहरण प्रस्तुत किया है जनपद रूद्रप्रयाग के जखोली विकास खण्ड के ग्राम पंचायत अरखुण्ड के युवा रवीन्द्र झिंक्वाण ने। अरखुण्ड ग्राम पंचायत के निलै सेरा नामक तोक में उद्यमिता के पर्याय बन चुके युवा रविन्द्र झिंक्वाण ने विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी छोटी अवस्था व विपरीत पारिवारिक परिस्थितियों के बाबजूद भी 2003 में अतिवृष्टि से अचानक लणगाड़ में आई बाढ़ के कारण तथा पुनः 2013 की आपदा में पूरी तरह नष्ट हो चुके निलै सेरा को न केवल अपनी मेहनत से पुन:आबाद किया बल्कि उसे एक पर्यटक स्थल का स्वरूप देने की ओर भी पहला सफल कदम भी बढ़ाया है।
इस बात की प्रेरणा कहाँ से मिली, के जबाब में रविन्द्र कहते हैं कि अपने चाचा जगमोहन सिंह झिंक्वाण और चाची मंजू झिंक्वाण की प्रेरणा से उन्होंने इस स्थल को विकसित करने की सोची। पहले चरण में इस स्थल पर रविन्द्र ने सुन्दर फुलवाड़ी व देशी – विदेशी प्रजाति की मछलियों का पालन शुरू करके इस स्थल को अति रमणीक बना दिया है।विभिन्न स्थानीय प्रजाति के पौधों का रोपण कर रविन्द्र, पर्यावरण संरक्षण की दशा में कदम बढ़ाते हुए पर्यावरण के संवर्द्धन का भी बेहतरीन नमूना पेश कर रहे हैं। रविन्द्र ने मत्स्य विभाग से कुछ इमदाद लेकर 20 गुणा 12 गुणा 1.5 मीटर के 3 तालाब बनाकर मछली पालन शुरू किया, इसके पीछे वे रूद्रप्रयाग के पूर्व जिलाधिकारी (अब प्रधानमंत्री कार्यालय में सचिव) श्री मंगेश घिल्डियाल जी की प्रेरणा मानते हैं।
रविन्द्र झिंक्वाण बताते हैं कि वर्ष 2018 में जिलाधिकारी जी द्वारा हाट गांव में रात्रि-विश्राम के समय उन्होने कृषि के क्षेत्र में कुछ करने के उद्देश्य से तत्कालीन जिलाधिकारी रूद्रप्रयाग श्री मंगेश घिल्डियाल जी से बातचीत की । मैंने जिलाधिकारी जी को अपनी योजना बताई। जिलाधिकारी जी ने निलै सेरा के भौगोलिक स्वरूप व पानी की उपलब्धता को जानकर, रविन्द्र को फूलों की खेती और मत्स्य पालन करने की सलाह दी। बश फिर क्या था, रविन्द्र ने प्रोत्साहन पाकर अपने सपने को साकार करने की ठान ली। विपरीत पारिवारिक परिस्थितियों के बीच धीरे – धीरे ही सही, रविन्द्र अपने सपने को साकार करने की पहली सीढ़ी पर तो पहुंच ही गया है। रविन्द्र ने सिल्वरकॉश, रोहू, ग्रासकॉपर, सिल्वर कॉर्प के साथ-साथ स्थानीय प्रजाति की 20 हजार से अधिक मछलियाँ इन तालाबों में पाली हैं। रविन्द्र का हुनर केवल यहीं तक सीमित नहीं है, समाजसेवा के लिए भी रविन्द्र बड़ा दिल रखते हैं। वे न केवल युवा उद्यमी है बल्कि बहुत होनहार आर्टिस्ट भी हैं। कोरोना काल में अपने ग्रामीण समाज में कोरोना के प्रति बचाव के लिए रखी जाने वाली सावधानियों को लेकर रविन्द्र ने गाँव के ही युवा सुमित राणा और कुछ अन्य युवाओं के साथ मिलकर, गाँव के रास्तों, मकानों की दीवारों को
सजग करने वाले संदेशों और चित्रों से पाट दिया था। खाली समय में रविन्द्र अब देश – विदेश की महान विभूतियों जिनमें स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांँधी, जवाहर लाल नेहरू, शास्त्री, सुभाष,सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, रविन्द्र नाथ टैगोर, जिम कार्बेट आदि 50 से अधिक महापुरुष सम्मिलित हैं, के चित्रों के साथ-साथ स्थानीय महापुरुषों व प्राकृतिक दृश्यों को अपनी तूलिका से पोस्टरों में उतार चुके हैं।भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हुए रविन्द्र ने बताया कि यदि उन्हें लघु सिंचाई, उद्यान विभाग, कृषि विभाग से मदद मिले तो वे इस स्थल पर सुरक्षा दीवार तथा सिंचाईं के लिए रिजर्व टैंक आदि बनाकर अपने साथ अन्य उत्साही युवाओं को भी रोजगार का अवसर उपलब्ध करवा सकते हैं। रविन्द्र बताते हैं कि हाल फिलहाल उन्हें जंगली जानवरों और नजदीक के गधेरे के लगातार बहाव की दिशा बदलते रहने के कारण सुरक्षा दीवार की अत्यंत बड़ी जरूरत है।
हेमन्त चौकियाल
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अरखुण्ड गांव के युवा रविन्द्र झिंक्वाण ने बदली बदहाली की तस्वीर, आपदा से तबाह ज़मीं पर बोए खुशहाली के बीज
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✍️हेमन्त चौकियाल / अगस्त्यमुनि
जिस भूभाग का प्राकृतिक आपदा ने भूगोल ही बदल दिया था, उस धरा को अपनी बुद्धिमत्ता, मेहनत व इच्छा शक्ति के बल पर सजा व संवार कर युवाओं को एक उदाहरण प्रस्तुत
किया है जनपद रूद्रप्रयाग के जखोली विकास खण्ड के ग्राम पंचायत अरखुण्ड के युवा रवीन्द्र झिंक्वाण ने। अरखुण्ड ग्राम पंचायत के निलै सेरा नामक तोक में
उद्यमिता के पर्याय बन चुके युवा रविन्द्र झिंक्वाण ने विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी छोटी अवस्था व विपरीत पारिवारिक परिस्थितियों के बाबजूद भी 2003 में
अतिवृष्टि से अचानक लणगाड़ में आई बाढ़ के कारण तथा पुनः 2013 की आपदा में पूरी तरह नष्ट हो चुके निलै सेरा को न केवल अपनी मेहनत से पुन:आबाद किया बल्कि उसे एक
पर्यटक स्थल का स्वरूप देने की ओर भी पहला सफल कदम भी बढ़ाया है।
इस बात की प्रेरणा कहाँ से मिली, के जबाब में रविन्द्र कहते हैं कि अपने चाचा जगमोहन सिंह झिंक्वाण और चाची मंजू झिंक्वाण की प्रेरणा से उन्होंने इस स्थल को
विकसित करने की सोची। पहले चरण में इस स्थल पर रविन्द्र ने सुन्दर फुलवाड़ी व देशी - विदेशी प्रजाति की मछलियों का पालन शुरू करके इस स्थल को अति रमणीक बना
दिया है।विभिन्न स्थानीय प्रजाति के पौधों का रोपण कर रविन्द्र, पर्यावरण संरक्षण की दशा में कदम बढ़ाते हुए पर्यावरण के संवर्द्धन का भी बेहतरीन नमूना पेश
कर रहे हैं। रविन्द्र ने मत्स्य विभाग से कुछ इमदाद लेकर 20 गुणा 12 गुणा 1.5 मीटर के 3 तालाब बनाकर मछली पालन शुरू किया, इसके पीछे वे रूद्रप्रयाग के पूर्व
जिलाधिकारी (अब प्रधानमंत्री कार्यालय में सचिव) श्री मंगेश घिल्डियाल जी की प्रेरणा मानते हैं।
रविन्द्र झिंक्वाण बताते हैं कि वर्ष 2018 में जिलाधिकारी जी द्वारा हाट गांव में रात्रि-विश्राम के समय उन्होने कृषि के क्षेत्र में कुछ करने के उद्देश्य से
तत्कालीन जिलाधिकारी रूद्रप्रयाग श्री मंगेश घिल्डियाल जी से बातचीत की । मैंने जिलाधिकारी जी को अपनी योजना बताई। जिलाधिकारी जी ने निलै सेरा के भौगोलिक
स्वरूप व पानी की उपलब्धता को जानकर, रविन्द्र को फूलों की खेती और मत्स्य पालन करने की सलाह दी। बश फिर क्या था, रविन्द्र ने प्रोत्साहन पाकर अपने सपने को
साकार करने की ठान ली। विपरीत पारिवारिक परिस्थितियों के बीच धीरे - धीरे ही सही, रविन्द्र अपने सपने को साकार करने की पहली सीढ़ी पर तो पहुंच ही गया है।
रविन्द्र ने सिल्वरकॉश, रोहू, ग्रासकॉपर, सिल्वर कॉर्प के साथ-साथ स्थानीय प्रजाति की 20 हजार से अधिक मछलियाँ इन तालाबों में पाली हैं। रविन्द्र का हुनर केवल
यहीं तक सीमित नहीं है, समाजसेवा के लिए भी रविन्द्र बड़ा दिल रखते हैं। वे न केवल युवा उद्यमी है बल्कि बहुत होनहार आर्टिस्ट भी हैं। कोरोना काल में अपने
ग्रामीण समाज में कोरोना के प्रति बचाव के लिए रखी जाने वाली सावधानियों को लेकर रविन्द्र ने गाँव के ही युवा सुमित राणा और कुछ अन्य युवाओं के साथ मिलकर, गाँव
के रास्तों, मकानों की दीवारों को
सजग करने वाले संदेशों और चित्रों से पाट दिया था। खाली समय में रविन्द्र अब देश - विदेश की महान विभूतियों जिनमें स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांँधी, जवाहर
लाल नेहरू, शास्त्री, सुभाष,सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, रविन्द्र नाथ टैगोर, जिम कार्बेट आदि 50 से अधिक महापुरुष सम्मिलित हैं, के चित्रों के साथ-साथ
स्थानीय महापुरुषों व प्राकृतिक दृश्यों को अपनी तूलिका से पोस्टरों में उतार चुके हैं।भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हुए रविन्द्र ने बताया कि
यदि उन्हें लघु सिंचाई, उद्यान विभाग, कृषि विभाग से मदद मिले तो वे इस स्थल पर सुरक्षा दीवार तथा सिंचाईं के लिए रिजर्व टैंक आदि बनाकर अपने साथ अन्य उत्साही
युवाओं को भी रोजगार का अवसर उपलब्ध करवा सकते हैं। रविन्द्र बताते हैं कि हाल फिलहाल उन्हें जंगली जानवरों और नजदीक के गधेरे के लगातार बहाव की दिशा बदलते
रहने के कारण सुरक्षा दीवार की अत्यंत बड़ी जरूरत है।
[caption id="attachment_25293" align="alignleft" width="576"] हेमन्त चौकियाल[/caption]