हेमन्त चौकियाल / अगस्त्यमुनि पहाड़ से पलायन बढ़ने का एक बड़ा और मुख्य कारण यहाँ की स्वास्थ्य सेवाओं का खस्ताहाल होना है, अधिकांश हास्पिटलों में डाक्टर नहीं हैं, जहां डाक्टर हैं तो

Featured Image

वहाँ आवश्यक उपकरण नहीं हैं, ऐसे में यहाँ वे लोग जो पलायित नहीं हैं, उनकी स्वास्थ्य की देखभाल भगवान भरोसे है। जी हाँ! भगवान के भरोसे। ये हम झूठ नहीं कह रहे, ऐसा मरीजों का कहना है। रूद्रप्रयाग जनपद के सौड़ी, गिंवाला गाँव स्थित हैल्पेज इण्डिया उत्तराखंड के हास्पिटल में कार्यरत कन्सल्टेन्ट फिजियोथैरेपिस्ट रंग लाल यादव उनके मरीजों के लिए किसी भगवान से कम नहीं हैं।बहुत पैसा खर्च करने के बाद ठीक होने वाले लकवा जैसी खतरनाक बीमारी का इलाज डा० रंगलाल यादव हैल्पेज इंडिया उत्तराखंड नामक संस्था द्वारा सुलभ करवाए गये उपकरणों से निःशुल्क करते हैं, इसके लिए वे किसी भी मरीज से एक भी पैसा नहीं लेते, उल्टे बहुत से गरीबों को वे अपनी जेब से आने-जाने का खर्चा अलग से देते हैं। कन्सल्टेंट फिजियोथैरेपिस्ट रंगलाल यादव ने बताया कि केदारनाथ आपदा के बाद वे किसी मित्र की सलाह पर फाटा (रूद्रप्रयाग) में आये थे, तब फाटा में सिर्फ एक बेड के अस्पताल से ये सेवा कार्य प्रारंभ हुआ था। वर्ष 2015 में सौड़ी में 16 बेड का अस्पताल बन जाने के बाद वे यहाँ आ गये और तब से यहीं पर लकवाग्रस्त मरीजों की सेवा में लगे हैं। फीजियोथैरेपिस्ट कन्सल्टेंट श्री रंगलाल यादव जी ने हेमंत चौकियाल को दिए गये साक्षात्कार में बताया कि बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उनके पारिवारिकजनों ने अपने किसी जानकार आर्थोपैडिक सर्जन की सलाह पर फीजियोथैरेपिस्ट बनने के लिये प्रेरित किया। वर्ष 2004 में उन्होंने देहरादून के *विहाइब* कॉलेज में फीजियोथैरेपी की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। 2009 में पढ़ाई पूरी कर काठमांडू के *बीर हास्पिटल* से उन्होंने अपनी *इन्टर्नशिप* पूरी की। इन्ट्नर्शिप पूरी करने के बाद उन्होंने डॉ०अजय यादव (जो अब कनाडा में हैं) के हास्पिटल में उनके निर्देशन में काम शुरू किया।यहाँ पर रहकर मैंने डा० अजय यादव के निर्देशन में इस विधा की बारीकियों को सीखा। जब डा०अजय यादव जी को लगा कि मैं इस विधा भी काफी कुछ अनुभव ले चुका हूँ तो उन्होंने मुझे विराट नगर के अपने दूसरे हास्पिटल में फीजियोथैरेपि के हेड के रूप में नियुक्त कर दिया, जो उन्होंने हाल में ही खोला था। 2009 से 2012 तक मैंने इस हास्पिटल में रहते हुए लगभग रोजाना 60से 70मरीजों को अपनी सेवायें दी। अचानक 2012 में मुझे लगा कि अभी और कुछ पढ़ाई करनी चाहिए, जिसके लिए मैं देहरादून लौट आया। लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था, अपने किसी रिश्तेदार के कहने पर एक छोटी सी जगह (एक कमरे) से मुझे हास्पिटल प्रारंभ करना पड़ा, लेकिन बहुत कम समय में ही यहां भी मरीजों की संख्या प्रतिदिन 60 से अधिक पहुंचने लगी, अभी हास्पिटल को बड़ा करने की कवायद चल ही रही थी कि अचानक जून 2013 में केदारना आपदा ने पहाड़ के जन जीवन को तहस नहस कर डाला। अपने एक जूनियर की सलाह पर मैं देहरादून का अपना क्लिनिक एक दूसरे दोस्त के हवाले कर 18 नवम्बर 2013 को मैंने सामाजिक संस्था हैल्पेज इण्डिया के फाटा स्थित हास्पिटल में योगदान देना प्रारंभ किया। जब 2015 में एन डी टी वी के सहयोग से गिंवाला में 18 बेड का स्वास्थ्य एवं नैदानिक केन्द्र अस्पताल खोला गया, जिसे केदारघाटी वृद्ध ग्राम नाम दिया गया, में मैं योगदान हेतु आ गया। यहाँ पर विशेषकर लकवाग्रस्त मरीजों का इलाज किया जाता है। कालीमठ के 78 वर्षीय पूर्व प्रधान छोटिया लाल, गिंवाला गाँव के 83 वर्षीय हरि सिंह, गढ़वाल श्रीनगर के सुमन सिंह नेगी आदि ने बताया कि उनके द्वारा विभिन्न अस्पतालों में मंहगे से मंहगे इलाज के बाद जब उन्होंने रंगलाल यादव के बारे में सुना, उन्होंने यहाँ आकर अपना इलाज करवाया तो उन्हें आश्चर्यजनक रूप से इच्छित परिणाम मिले। अगस्त्यमुनि की पूर्व जिला पंचायत सदस्य दीपा देवी ने बताया कि विगत जुलाई माह में हृदयाघात के कारण लकवाग्रस्त होने पर उन्होंने देहरादून के एक नामी अस्पताल में प्राथमिक इलाज करवाया, लेकिन उन्हें डा० यादव की सेवा पर पूर्ण विश्वास था तो वापस आकर उन्होने रंगलाल यादव से इलाज प्रारंभ करवाया, एक महीने से कम समय में ही वे 95 फीसदी पहले की ही तरह स्वस्थ हो चुकी हैं। नेपाल के मूल निवासी यादव इससे पहले दून के एक प्रतिष्ठित हास्पिटल में कार्यरत थे। बचपन से ही गरीबों के लिए मन में सेवाभाव रखने के कारण उन्होंने पहाड़ को अपनी सेवाओं के लिए चुना। खाली होते पहाड़ के लोगों के बीच सुविधा सम्पन्न महानगरों से आकर सेवा भाव से बीमारों की तीमारदारी में लगे डा० रंगलाल यादव सरीखे व्यक्ति यहाँ के लोगों के लिए किसी भगवान से कतई कम नहीं। [caption id="attachment_25293" align="alignleft" width="576"] लेखक - हेमन्त चौकियाल[/caption]