यूक्रेन रूस युद्ध के बीच ज्यादा चर्चा वहां फंसे हुए स्टूडेंट्स की है, ये स्टूडेंट्स यूक्रेन में एमबीबीएस करने गये थे और फंस गए। लेकिन विदेशों से डिग्री लेने वालो का दूसरा पहलू चिन्ताजनक है। बीते 15 सालों में विदेशों से मेडिकल की डिग्री लेकर लौटे औसतन 77 फीसदी भारतीय छात्र ‘मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया’ (एमसीआई) द्वारा आयोजित अनिवार्य जांच परीक्षा पास करने में नाकाम रहे।

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  यूक्रेन रूस युद्ध के बीच ज्यादा चर्चा वहां फंसे हुए स्टूडेंट्स की है, ये स्टूडेंट्स यूक्रेन में एमबीबीएस करने गये थे और फंस गए। लेकिन विदेशों से डिग्री लेने वालो का दूसरा पहलू चिन्ताजनक है। बीते 15 सालों में विदेशों से मेडिकल की डिग्री लेकर लौटे औसतन 77 फीसदी भारतीय छात्र ‘मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया’ (एमसीआई) द्वारा आयोजित अनिवार्य जांच परीक्षा पास करने में नाकाम रहे। आलम ये है कि इनमें से अधिकांश या तो कम्पाउन्डर काम कर रहे हैं या डाक्टर के साथ असिस्टेंट बन गए हैं। इन छात्रों में अधिकतर ने यूक्रेन, उजेबिकस्तान, अजरबेजान, बिस्बैक, किरगिजस्तान से बीस-बीस लाख में एमबीबीएस किया लेकिन भारत में डाक्टरी लाइसेंस के लिए जरूरी स्क्रीनिंग टेस्ट MCI पास नहीं कर पाए। दरअसल देश के बाहर के किसी चिकित्सा संस्थान से ‘प्राइमरी मेडिकल क्वालिफिकेशन’ की डिग्री लेने वाला कोई नागरिक अगर एमसीआई में या किसी राज्य की चिकित्सा परिषद में प्राविजनल या स्थायी रूप से पंजीकरण कराना चाहता है तो उसे एमसीआई द्वारा राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन्स - एनबीई) के माध्यम से संचालित जांच परीक्षा उत्तीर्ण करने की जरूरत होती है। यह जांच परीक्षा ‘फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन’ (एफएमजीई) कहलाती है। आरटीआई कानून के अंतर्गत एनबीई द्वारा मुहैया कराए गए आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2004 में एमसीआई द्वारा संचालित परीक्षा में सफल उम्मीदवारों की संख्या 50 फीसदी से अधिक थी जो बाद के सालों में घटती चली गई और एक बार तो यह प्रतिशत केवल 4 रहा। सितंबर 2005 में इस परीक्षा में सफल छात्रों का प्रतिशत 76.8 था जो सर्वाधिक था। तब इस परीक्षा में 2,851 छात्र बैठे और 2,192 छात्र पास हुए थे।मार्च 2008 में परीक्षा देने वाले 1,851 छात्रों में से 1,087 छात्र पास हुए और यह प्रतिशत 58.7 रहा।