दीपक बेंजवाल /अगस्त्यमुनि फेसबुक यूजर्स शिवसिंह और अनिल रावत ने न केवल कुलदीप राणा बल्कि समाज के लिए लड़ रहे तमाम पत्रकारों की भावना को भी ठेस पहुंचाई है। पत्रकारिता का कार्य हर

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शोषित और पीड़ितों की आवाज है, वो भी ऐसे दौर में जब लोग सामाजिक सरोकारों पर चुप्पी साधने लगे है। तब एक पत्रकार ही होता है जो अपनी जानमाल की परवाह न करते हुए भी जनसरोकारों के लिए लड़ता है, अपनी आवाज और कलम बुलंद करता है। पत्रकार हूं, संवेदना लिखता हूं / कभी दर्द तो कभी सच लिखता हूं, फिर भी कई बार शोषित हो जाता हूं, कई बार उलाहनाएं भी झेलता हूं, पत्रकार हूं संवेदना लिखता हूं। तुम्हारी चाहत की कलम खिलाता हूं, कभी आतंकियों, कभी दबंगों, कभी आंदोलनों से गुजरता हूं। थप्पड़ तो कभी धक्के खाता हूं, पत्रकार हूं संवेदना लिखता हूं। राजनीति लिखता हूं, रणनीति बन जाता हूं, सच की छलनी परोसता हूं, कभी दस्तावेजों पे तो, कभी चौराहे पे कुचल जाता हूं, पत्रकार हूं संवेदना लिखता हूं।औरों के लिए लड़ता हूं, पर अपने लिए कहां बोल पाता हूं! हां मैं पत्रकार कहलाता हूं ‘खबरों की खबर वह रखते हैं अपनी खबर हमेशा ढकते हैं दुनिया भर के दर्द को अपनी खबर बनाने वाले अपने वास्ते बेदर्द होते हैं’ (विनायक विजेता) पत्रकार होने का मतलब क्या होता है? ये पत्रकार दिखते कैसे हैं? क्या पत्रकार चापलूस होते हैं? न जाने कितने ऐसे सवाल, जो हम सभी के मन में समाचार पढ़ते या देखते हुए आते हैं। आने भी चाहिए, क्योंकि ये पेशा है ही ऐसा कि सवाल उठना लाजिमी है। देश-दुनिया की सभी घटनाओं पर पत्रकारों की नज़र रहती है। खबरों के संकलन से लेकर दर्शकों तक पहुंचाने तक के क्रम में एक पत्रकार को कितनी मेहनत करनी पड़ती है, उसे शायद आप नहीं महसूस कर सकेंगे, क्योंकि आप पत्रकार नहीं हैं। मॉर्निंग में बिना ब्रेक और ब्रेकफास्ट के साथ, हाथ में बूम माईक लेकर और नोट-कॉपी के साथ कलम लिए, जब एक पत्रकार घर से निकलता है तो देखने वालों को सुपरस्टार जैसा लगता है। लेकिन।।। थोड़ा सा रुक कर आप उस पत्रकार से पूछिएगा कैसे हैं आप? वो पत्रकार मुस्कुराते हुए आपको जवाब देगा कि बढ़िया है। जबकि सच्चाई ये है कि उसके दिल में कई चीज़ें एक साथ चल रही होती है। बॉस के साथ मॉर्निंग मीटिंग, डेली प्लान, स्टोरी आइडिया और शाम को रिपोर्ट सबमिट करना। इन सब के बीच में उसकी ज़िंदगी और उसके परिवार का कहीं जिक्र नहीं है। हालांकि परिवार वाले शेखी बघारते रहते हैं कि बेटा शहर में बड़ा पत्रकार है। हम आपको यहां ज्ञान नहीं देना नहीं चाहते हैं, बस पत्रकारों की ज़िंदगी पर थोड़ा प्रकाश डालना चाहते हैं। एक खबर के लिए पत्रकार को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कभी ज़ख्म खा जाते हैं, तो कहीं चोटिल हो जाते हैं।  इतने जोखिमों के बाद भी कुछ लोग पत्रकारों को निशाना बनाते हैं। ऐसा ही वाकया आज रूद्रप्रयाग जिले में भी सामने आया है। समाज के लिए सजग रहने वाले रूद्रप्रयाग जिले के सक्रिय पत्रकार कुलदीप राणा आजाद की गौचर के नजदीक सारी झालीमठ में हुए भूस्खलन की खबर पर एक फेसबुक यूजर्स शिव सिंह ने अशोभनीय टिप्पणी पर कोतवाली रूद्रप्रयाग में शिकायत दर्ज कराई गई है। शिकायतकर्ता केदारखण्ड एक्सप्रेस न्यूज के सम्पादक कुलदीप राणा ने बताया कि दिनांक 2 मार्च 2022 को उनके द्वारा झालीमठ तोक से भूस्खलन प्रभावितों की रिपोर्ट अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर प्रसारित की गई थी। जिस पर फेसबुक यूजर्स शिवसिंह ने अभद्र टिप्पणी करते हुए उनपर चोरी का आरोप लगाया है। फेसबुक यूजर्स ने टिप्पणी करते हुए लिखा है कि - इससे बड़ा चोर कोई नहीं है, कभी किसी के गुण गाए कभी किसी के गुण गाए उसको बहुत जल्दी ही ही ही ही) इसके बाद दूसरी टिप्पणी में इसी यूजर ने आगे लिखा है - चोर तू क्या पत्रकारिता करेगा पहले अपने बाप का नाम बता कौन सा बहादुर था। इसी खबर पर एक दूसरे फेसबुक यूजर अनिल रावत ने लिखा है कि -चोर है ये। पुलिस को दी गई तहरीर में पत्रकार कुलदीप ने कहा है कि उपरोक्त फेसबुक यूजरों द्वारा किए गए कमेंट से मेरी सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है बल्कि पत्रकारिता के उनके मौलिक अधिकारों का हनन भी किया गया है। यह टिप्पणी उनकी निष्पक्ष पत्रकारिता को दबाने और बदनाम करने की साजिश है, जिसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए। पत्रकार कुलदीप आजाद रूद्रप्रयाग जिले में लंबे समय से निष्पक्ष पत्रकारिता का कार्य कर रहे है। न्यू मीडिया के दौरा में उन्हें सजग पत्रकार के रूप में जाना जाता है। जनसमस्याओं के साथ उन्होंने हमेशा जनपक्ष को सामने रखा है, यही कारण है कि वे शोषकों और दंबगों के निशाने पर भी आते रहे है। झालीमठ वाली खबर पहाड़ के संकटग्रस्त जनजीवन को इंगित करने वाली खबर थी, जिससे वहां के आपदा पीड़ितों की आवाज शासन प्रशासन तक पहुंचाई गई, ऐसे में अभद्र टिप्पणी कर यूजर शिवसिंह और अनिल रावत ने न केवल कुलदीप राणा बल्कि समाज के लिए लड़ रहे तमाम पत्रकारों की भावना को भी ठेस पहुंचाई है। पत्रकारिता का कार्य हर शोषित और पीड़ितों की आवाज है, वो भी ऐसे दौर में जब लोग सामाजिक सरोकारों पर चुप्पी साधने लगे है। तब एक पत्रकार ही होता है जो अपनी जानमाल की परवाह न करते हुए भी जनसरोकारों के लिए लड़ता है, अपनी आवाज और कलम बुलंद करता है। पत्रकारों के लिए अगर ऐसी टिप्पणीयाँ होंगी तो कल कौन समाज में हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ेगा। जान जोखिम में डालकर पत्रकारिता करना कठिन कार्य है, ऐसे में समाज के लोगों से अपील है कि पत्रकारों का मनोबल बढ़ाये, उन पर अभद्र टिप्पणी कर अपनी व्यक्तिगत भड़ासों को न निकाले, आपकी टिप्पणी भविष्य में पूरे समाज के लिए नुकसानदायक होगी। क्योंकि पत्रकारों के साथ ही अन्याय से लड़ने की उम्मीद होती है।