असल में दमदार यही हुए जो आंधी में नहीं बहे। उत्तराखंड में मतदान के लिए शहरों में करीब एक महीने मारा-मारी रही। गांवों में इसका खास फर्क नहीं पड़ा। मतदान के दिन भी ग्रामीण अपने कामों में लगे रहे। समय मिला तो वोट दिया, नहीं तो अपने काम निपटाए।
यातायात से वंचित केदारनाथ विधानसभा के जग्गी भगवान गांव अपने गुस्से का इजहार करते हुए चुनाव बहिष्कार किया तो इसी विधानसभा की कालीमठ घाटी के ग्राम पंचायत चिलौण्ड में मात्र एक ग्रामीण ने वोट डाला। 230 मतदाताओं वाला चिलौण्ड गांव भी यातायात से वंचित हैं। धारचूला के 586 मतदाताओं वाले कनार बूथ में एक भी मत नहीं पड़ा। अधिकारियों ने ग्रामीणों को काफी समझाने का प्रयास किया, लेकिन लोग वोट डालने नहीं गए। बेरीनाग के हीपा गांव में 456 मतदाता हैं, जिनमें से सिर्फ 12 लोगों ने वोट दिए। इसके लिए भी दिनभर अधिकारी और प्रत्याशियों के दलाल लोगों को समझाते रहे। इसके अलावा और भी कई जगह यही हाल रहे। वोट देकर एक दिन की सोहरत पाने के खयाल से बहुतेरे दूर रहे।
…पहाड़ों की हालत खराब है। न रोजगार है न ही बीमार पडऩे पर इलाज संभव है। शिक्षा का भी यहां बुरा हाल है। नेता पहाड़ियों को अपमानित कर रहे हैं, इसके खिलाफ भी कोई बोलने वाला नहीं है।
…सत्ताधारी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने राजधानी देहरादून में कहा कि पहाड़ से पलायन करने वाले महानगरों में स्लम बस्तियों में रहते हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने रुद्रपुर रैली में कह दिया कि उनके पास दूर पहाड़ से एक बुजुर्ग महिला का मैसेज आया था। महिला ने कहा कि उनके बेटे महानगरों में हैं, कोई उन्हें नहीं पूछता, मोदी जी ने ही कोरोना के समय उन जैसे बुजुर्गों को भोजन दिया। हालांकि प्रधानमंत्री बाचाल है, उनकी समझ में नहीं आता कि पहाड़ की बुजुर्ग महिला उन्हें मैसेज कर ही नहीं सकती, लेकिन मोदी समर्थक विक्षिप्त हैं।
…प्रधानमंत्री की इन बातों पर खूब तालियां बजीं। पर यह पहाड़वासियों का घोर अपमान था। यहां के बेटे ऐसे नहीं होते कि वह मां-बाप का ध्यान न रखते हों। पहाड़ से जाने वालों के पास रोजगार की मजबूरी है। राजनीतिक पार्टियों ने पहाड़ों को खोखला और खाली कर दिया है। अब उनका अपमान भी किया जा रहा है। हालांकि लोग मुखर नहीं हैं, लेकिन समय आने पर अपनी नारजगी भी दिखाते हैं।
..गांव वालों का कहना है, हमें रोजगार चाहिए, सम्मान जनक पगार चाहिए..
पहाड़ के जनपक्ष पर पैनी नजर रखने वाले लेखक चन्द्रशेखर जोशी निरन्तर सक्रियता से आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।
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पीड़ा उनकी समझें जहां शून्य रहा मतदान ! हकीकत से मुंह न मोड़ें सरकार, संज्ञान ले चुनाव आयोग
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चन्द्रशेखर जोशी / दस्तक ठेठ पहाड़ से
असल में दमदार यही हुए जो आंधी में नहीं बहे। उत्तराखंड में मतदान के लिए शहरों में करीब एक महीने मारा-मारी रही। गांवों में इसका खास फर्क नहीं पड़ा। मतदान के
दिन भी ग्रामीण अपने कामों में लगे रहे। समय मिला तो वोट दिया, नहीं तो अपने काम निपटाए।
यातायात से वंचित केदारनाथ विधानसभा के जग्गी भगवान गांव अपने गुस्से का इजहार करते हुए चुनाव बहिष्कार किया तो इसी विधानसभा की कालीमठ घाटी के ग्राम
पंचायत चिलौण्ड में मात्र एक ग्रामीण ने वोट डाला। 230 मतदाताओं वाला चिलौण्ड गांव भी यातायात से वंचित हैं। धारचूला के 586 मतदाताओं वाले कनार बूथ में एक भी मत
नहीं पड़ा। अधिकारियों ने ग्रामीणों को काफी समझाने का प्रयास किया, लेकिन लोग वोट डालने नहीं गए। बेरीनाग के हीपा गांव में 456 मतदाता हैं, जिनमें से सिर्फ 12
लोगों ने वोट दिए। इसके लिए भी दिनभर अधिकारी और प्रत्याशियों के दलाल लोगों को समझाते रहे। इसके अलावा और भी कई जगह यही हाल रहे। वोट देकर एक दिन की सोहरत
पाने के खयाल से बहुतेरे दूर रहे।
...पहाड़ों की हालत खराब है। न रोजगार है न ही बीमार पडऩे पर इलाज संभव है। शिक्षा का भी यहां बुरा हाल है। नेता पहाड़ियों को अपमानित कर रहे हैं, इसके खिलाफ भी
कोई बोलने वाला नहीं है।
...सत्ताधारी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने राजधानी देहरादून में कहा कि पहाड़ से पलायन करने वाले महानगरों में स्लम बस्तियों में रहते हैं। इसके अलावा
प्रधानमंत्री ने रुद्रपुर रैली में कह दिया कि उनके पास दूर पहाड़ से एक बुजुर्ग महिला का मैसेज आया था। महिला ने कहा कि उनके बेटे महानगरों में हैं, कोई
उन्हें नहीं पूछता, मोदी जी ने ही कोरोना के समय उन जैसे बुजुर्गों को भोजन दिया। हालांकि प्रधानमंत्री बाचाल है, उनकी समझ में नहीं आता कि पहाड़ की बुजुर्ग
महिला उन्हें मैसेज कर ही नहीं सकती, लेकिन मोदी समर्थक विक्षिप्त हैं।
...प्रधानमंत्री की इन बातों पर खूब तालियां बजीं। पर यह पहाड़वासियों का घोर अपमान था। यहां के बेटे ऐसे नहीं होते कि वह मां-बाप का ध्यान न रखते हों। पहाड़ से
जाने वालों के पास रोजगार की मजबूरी है। राजनीतिक पार्टियों ने पहाड़ों को खोखला और खाली कर दिया है। अब उनका अपमान भी किया जा रहा है। हालांकि लोग मुखर नहीं
हैं, लेकिन समय आने पर अपनी नारजगी भी दिखाते हैं।
..गांव वालों का कहना है, हमें रोजगार चाहिए, सम्मान जनक पगार चाहिए..
[caption id="attachment_26037" align="alignleft" width="150"] पहाड़ के जनपक्ष पर पैनी नजर रखने वाले लेखक चन्द्रशेखर जोशी निरन्तर सक्रियता से आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।[/caption]