- रहस्यमयी रूपकुंड में बिखेर नगर कंकालों का रहस्य आज तक नहीं जान सका कोई
- समुद्रतल से 5029 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रूपकुंड
- 1942 में सबसे पहले दिखे थे रूपकुंड में बिखेर मानव कंकाल
- गढ़वाल हिमालय में सबसे खूबसूरत झीलों में से एक हैं रूपकुंड की झील
- कुंड में पार्वती की परछाई देख प्रसन्न हुए थे भगवान शिव
- भूमध्य सागरीय और दक्षिण पूर्व एशियाई आबादी के बताए जाते हैं नरकंकाल
- गढ़वाल और डेकन विश्वविद्यालय ने 2003 में ज्योग्राफी चैनल के साथ किया था रूपकुंड के नरकंकालों का अध्ययन
सतीश गैरोला- कर्णप्रयाग
यदि आप पर्यटन में रूचि रखते हैं तो चमोली जिले की रहस्यमयी रूपकुंड झील को देखने आएं। यहां 15 मई से नवंबर पहले सप्ताह तक रोजाना सैकड़ों पर्यटक पहुंचकर प्रकृति का दीदार करते हैं। रूपकुंड उच्च हिमालयी क्षेत्र में एक ऐसी झील है जहां आज भी सैकड़ों नरकंकाल बिखरे हैं।
समुद्रतल से 5029 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रूपकुंड में बिखरे मानव कंकाल आज भी वैज्ञानिकों के लिए खोज का विषय बने हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार चौदहवीं शताब्दी में राजा यशधवन अपने सैनिकों के साथ नंदा राजजात में जा रहे थे। यात्रा जैसे ही रूपकुंड के ऊपर पहाड़ी से होते हुए शिलासमुद्र को जाने लगी तो इसी दौरान ओले पड़े और बर्फीला तूफान आ गया। पूरा क्षेत्र वीरान होने और रास्ता न होने से सेना छंतोलियों सहित रूपकुंड में समा गई थी। यहां आज भी रिंगाल की छंतोलिया बर्फ के नीचे दबी देखी जा सकती हैं।
भगवान शिव ने त्रिलूश गाड़कर बनाया था रूपकुंड
लोक मान्यता है कि सदियों पहले जब भगवान शिव अपनी अर्धांगिनी नंदा अर्थात पार्वती के साथ कैलास पर्वत पर जा रहे थे, तो इसी दौरान मां नंदा को प्यास लग गई और जहां पर आज रूपकुंड है उस स्थान पर प्यास से बेहाल होकर बैठ गई। इस पर भगवान शिव ने चारों तरफ पानी की खोज की, निर्जन वियावान में कहीं पानी नहीं मिला तो शिव अपनी अर्धांगिनी पार्वती के पास बिना पानी लिए पहुंचे। इस पर नंदा देवी और ज्यादा व्याकुल व निढाल हो गई। शिव से मां नंदा की व्याकुलता नहीं देखी गई और वे क्रोधित हो गए। भगवान शिव ने अपना त्रिशुल धरती पर मारा और वहां पर पानी का कुंड बन गया। जैसे ही नंदा अर्थात पार्वती कुंड में अपनी हथेली से पानी पीने लगी तो भगवान शिव को कुंड में पार्वती की परछाई दिखी। इस पर शिव प्रसन्न हो गए और उन्होंने इस कुंड का नाम रूपकुंड रख दिया।
1942 में सबसे पहले दिखे थे रूपकुंड में बिखेर मानव कंकाल
रूपकुंड में बिखरे नरकंकालों को सबसे पहले अंग्रेज रेंजर एचके मधवाल ने देखा था। उसके बाद वैज्ञानिकों ने इस पर कई अध्ययन कर दिये हैं, लेकिन अभी तक रूपकुंड का असली रहस्य पता नहीं चल पाया है। हालांकि हैदराबाद के सेंटर फार सेल्युलर एंड मालिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) ने 10 साल तक गहन अध्ययन और शोध करने के बाद निष्कर्ष निकाला है, उनके अनुसार रूपकुंड के कंकाल भारतीय भूमध्य सागरीय और दक्षिण पूर्व एशियाई आबादी के बताए जा रहे हैं।
800 से 1000 साल पुराने बताए जा रहे हैं कंकाल
रूपकुंड के मानव कंकालों पर गढ़वाल विवि और डेकन विवि ने 2003 में ज्योग्राफी चैनल के साथ विस्तार से अध्ययन किया था। गढ़वाल विवि के पुरातत्व विभाग के डॉ. राकेश भट्ट भी इस अध्ययन टीम में शामिल रहे। अध्ययन में यह निकला था कि रूपकुंड में बिखरे मानव कंकाल 800 से 1000 साल पुराने हैं। हालांकि इसके बाद भी अमेरिका और इंग्लैंड में रूपकुंड मे बिखरे इन नरकंकालों पर शोध जारी है।
ब्रह्म कमल और बर्फ की सफेद चादर से निखरता है रूपकुंड का सौंदर्य
रूपकुंड एक गोलाकार झील है। आसपास खिले ब्रह्म कमल और फैनकमल के फूल कुंड शोभा बढ़ाते हैं। झील के तीन तरफ विशाल पहाड़ी और एक तरफ पहाड़ी पर हल्का ढलान है। इसी ढलान से पर्यटक और नंदा राजजात के यात्री झील तक पहुंचते हैं। प्रत्येक 12 वर्षों में होने वाली राजजात में कई श्रद्धालु इस कुंड में अपने पित्रों को तर्पण देते हैं।
कैसे पहुंचे रूपकुंड
रूपकुंड चमोली जिले के देवाल ब्लॉक में स्थित है। ऋषिकेश से कर्णप्रयाग आने के बाद सीधे वाण गांव तक वाहन से पहुंचा जा सकता है। दूसरे दिन गैरोली पातल में विश्राम करने के बाद वेदनी बुग्याल, पातरनचौणियां होते हुए बगुवाबासा और वहां से रूपकुंड पहुंचते हैं।