रहस्य: रूद्रप्रयाग के वो तीन गांव, जहां होली मनाना है अभिशाप ! जानिए क्यों
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17/03/20227:28 am
देशभर में रंगों का त्यौहार होली (Holi) धूमधाम से मनाई जा रही है, मगर रुद्रप्रयाग (Rudraprayag) जिले के तीन गांव ऐसे हैं, जहां होली का त्यौहार नहीं खेला जाता है. पहले कभी इन गांवों में किसी ने होली खेलने की कोशिश की तो गांव में हैजा जैसी बीमारी ने जन्म ले लिया और लोगों को अकाल मौत का शिकार होना पड़ा। ऐसे में ग्रामीण लोगों में पुनः होली खेलने की हिम्मत नहीं हो पाई और तब से लेकर आज तक यह परंपरा कायम है।
जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर बसे इन तीन गांवों की बसागत 20 वीं सदी के मध्य की मानी जाती है। बताया जाता है कि जम्मू-कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार अपने यजमान और काश्तकारों के साथ करीब 370 वर्ष पूर्व यहां आकर बस गए थे। ये लोग, तब अपनी ईष्टदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति और पूजन सामग्री को भी साथ लेकर आए थे, जिसे गांव में स्थापित किया गया। आराध्य को वैष्णो देवी की बहन माना जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी कुलदेवी को होली का हुड़दंग पसंद नहीं है, इसलिए वे सदियों से होली का त्योहार नहीं मनाते हैं। बताते हैं कि डेढ़ सौ वर्ष पूर्व इन गांवों में होली खेली गई तो, तब यहां हैजा फैल गया था और बीमारी से कई लोगों की मौत हो गई थी। तब से आज तक गांव में होली नहीं खेली गई है।
एचएनबी केंद्रीय विवि श्रीनगर गढ़वाल के लोक संस्कृति और निष्पादन केंद्र के पूर्व निदेशक व क्वीली गांव के निवासी प्रोफेसर डीआर पुरोहित बताते हैं कि गांव में उनकी 15 पीढ़ी हो गई हैं। जब से होश संभाला है, होली न खेलनी की बात सुनी हैं।
प्रोफेसर डी आर पुरोहित
पुरोहित पूर्वजों का हवाला देते हुए वे बताते हैं कि उनकी कुलदेवी को होली के रंग अच्छे नहीं लगते हैं, इसलिए यह त्योहार नहीं मनाया जाता है। जौंदला के अनूप नेगी का कहना है कि उन्होंने अपने दादा से सुना था कि एक बार कुछ लोगों ने होली पर एक-दूसरे को रंग लगाया था, तो नुकसान हुआ था। गांव में कई लोग बीमार हो गए थे।71 वर्षीय ग्रामीण चन्द्रशेखर पुरोहित ने बताया कि उन्होंने आज तक गांव में किसी को भी होली खेलते हुए नहीं देखा है। कुछ लोग इसे देवी का दोष बताते हैं, मगर ज्यादातर क्षेत्रपाल भेल देव का ही दोष मानते हैं. बाकी आस-पास के गांवों में होली खेली जाती है. पुराने लोगों की धारणा यह रही कि जब-जब होली खेली गई, तब-तब परिणाम गलत आये। ऐसे में ग्रामीणों ने होली खेलना ही बंद कर दिया।
क्वीली गांव
दो बार घटना घटने के बाद तीसरी बार किसी ने भी होली खेलने की हिम्मत तक नहीं की. ऐसा नहीं है कि इन गांवों के लोगों को होली मनाना पसंद नहीं है, बल्कि होली तो वो मनाना चाहते हैं. लेकिन होली खेलने के बाद बीमारी फैलने की अफवाहों ने उन्हें परेशान कर दिया है. जिससे लोग मन मारकर होली नहीं खेल पाते हैं। जहां आस-पास के गांवों के बच्चों होली खेलकर मनोरंजन करते हैं. वहीं इन तीन गांवों के बच्चों को होली न मना पाने का हमेशा मलाल रहता है।
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रहस्य: रूद्रप्रयाग के वो तीन गांव, जहां होली मनाना है अभिशाप ! जानिए क्यों
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देशभर में रंगों का त्यौहार होली (Holi) धूमधाम से मनाई जा रही है, मगर रुद्रप्रयाग (Rudraprayag) जिले के तीन गांव ऐसे हैं, जहां होली का त्यौहार नहीं खेला जाता है. पहले
कभी इन गांवों में किसी ने होली खेलने की कोशिश की तो गांव में हैजा जैसी बीमारी ने जन्म ले लिया और लोगों को अकाल मौत का शिकार होना पड़ा। ऐसे में ग्रामीण लोगों
में पुनः होली खेलने की हिम्मत नहीं हो पाई और तब से लेकर आज तक यह परंपरा कायम है।
जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर बसे इन तीन गांवों की बसागत 20 वीं सदी के मध्य की मानी जाती है। बताया जाता है कि जम्मू-कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार अपने
यजमान और काश्तकारों के साथ करीब 370 वर्ष पूर्व यहां आकर बस गए थे। ये लोग, तब अपनी ईष्टदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति और पूजन सामग्री को भी साथ लेकर आए थे,
जिसे गांव में स्थापित किया गया। आराध्य को वैष्णो देवी की बहन माना जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी कुलदेवी को होली का हुड़दंग पसंद नहीं है, इसलिए वे
सदियों से होली का त्योहार नहीं मनाते हैं। बताते हैं कि डेढ़ सौ वर्ष पूर्व इन गांवों में होली खेली गई तो, तब यहां हैजा फैल गया था और बीमारी से कई लोगों की
मौत हो गई थी। तब से आज तक गांव में होली नहीं खेली गई है।
[caption id="attachment_26082" align="alignleft" width="960"] कुरझण गांव[/caption]
एचएनबी केंद्रीय विवि श्रीनगर गढ़वाल के लोक संस्कृति और निष्पादन केंद्र के पूर्व निदेशक व क्वीली गांव के निवासी प्रोफेसर डीआर पुरोहित बताते हैं कि गांव
में उनकी 15 पीढ़ी हो गई हैं। जब से होश संभाला है, होली न खेलनी की बात सुनी हैं।
[caption id="attachment_26084" align="alignleft" width="951"] प्रोफेसर डी आर पुरोहित[/caption]
पुरोहित पूर्वजों का हवाला देते हुए वे बताते हैं कि उनकी कुलदेवी को होली के रंग अच्छे नहीं लगते हैं, इसलिए यह त्योहार नहीं मनाया जाता है। जौंदला के अनूप
नेगी का कहना है कि उन्होंने अपने दादा से सुना था कि एक बार कुछ लोगों ने होली पर एक-दूसरे को रंग लगाया था, तो नुकसान हुआ था। गांव में कई लोग बीमार हो गए थे।71
वर्षीय ग्रामीण चन्द्रशेखर पुरोहित ने बताया कि उन्होंने आज तक गांव में किसी को भी होली खेलते हुए नहीं देखा है। कुछ लोग इसे देवी का दोष बताते हैं, मगर
ज्यादातर क्षेत्रपाल भेल देव का ही दोष मानते हैं. बाकी आस-पास के गांवों में होली खेली जाती है. पुराने लोगों की धारणा यह रही कि जब-जब होली खेली गई, तब-तब
परिणाम गलत आये। ऐसे में ग्रामीणों ने होली खेलना ही बंद कर दिया।
[caption id="attachment_26083" align="alignleft" width="1080"] क्वीली गांव[/caption]
दो बार घटना घटने के बाद तीसरी बार किसी ने भी होली खेलने की हिम्मत तक नहीं की. ऐसा नहीं है कि इन गांवों के लोगों को होली मनाना पसंद नहीं है, बल्कि होली तो वो
मनाना चाहते हैं. लेकिन होली खेलने के बाद बीमारी फैलने की अफवाहों ने उन्हें परेशान कर दिया है. जिससे लोग मन मारकर होली नहीं खेल पाते हैं। जहां आस-पास के
गांवों के बच्चों होली खेलकर मनोरंजन करते हैं. वहीं इन तीन गांवों के बच्चों को होली न मना पाने का हमेशा मलाल रहता है।