चुनावों में शराब और पैसे की बहती गंगा के बीच बड़ी तादाद में मतदाताओं ने ऐसे "चैंपियनों" के पैसों और शराब का जमकर लुत्फ तो उठाया। लेकिन मतदान करते वक्त मतदाताओं को ठेंगे पर रखने वाले "चैंपियनों" को ही ठेंगा दिखा दिया।

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खुद को चुनावी राजनीति के अखाड़े के "चैंपियन्स" समझने वाले कई बड़बोले नेताओं को विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने धोबी पछाड़ दे मारा। प्रदेश के अलावा उत्तराखंड की सीमा से लगे चीन और नेपाल आदि क्षेत्रों से भी जीत आने का दंभ भरने वाले कई "चैंपियनों" को धूल चटाकर मतदाताओं ने दिखा दिया कि लोकतंत्र के असली चैंपियन कौन हैं। चुनावों में शराब और पैसे की बहती गंगा के बीच बड़ी तादाद में मतदाताओं ने ऐसे "चैंपियनों" के पैसों और शराब का जमकर लुत्फ तो उठाया। लेकिन मतदान करते वक्त मतदाताओं को ठेंगे पर रखने वाले "चैंपियनों" को ही ठेंगा दिखा दिया। यह ठेंगा सिर्फ उन बड़बोले "चैंपियनों" को ही नहीं दिखाया गया, अपितु उनके तमाम ऐसे चेले चपाटों को भी दिखाया गया, जो क्षेत्र में अपना बड़ा जनाधार होने का दावा करते हुए कई बूथों का ठेका लिए थे। यहां मतदाताओं ने इन चेले चपाटों के खिलाफ भी मतदान कर समझाया कि जब वोट हमारा है तो उसका ठेका करने वाले तुम कौन? कुछ ही वर्षों में लपोड़ा लपोड़ से करोड़ों अरबों की सपोड़ा सपोड़ कर फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वाले ऐसे "चैंपियनों" और चेलों को मतदाताओं ने दिखाया कि उनकी चालाकी का स्तर नेताओं से कई गुना आगे पहुंच चुका है। ऐसे "चैंपियनों" का चारों खाने चित होना यह भी साबित करता है कि चेलों चपाटों समेत प्रदेश में मचाई गई लूट खसोट और दंभी आचरण से जनता कतई अनभिज्ञ नहीं है। हां यह जरूर है कि न तो वह उन स्वयंभू "चैंपियनों" और उनके चाण बाणों की जूतम् पैजार सकती और ना ही कॉलर पकड़ सकती। लेकिन हां जो वह कर सकती है, मौका आने पर अपने मत के ब्रह्मास्त्र से उन्हें चारों खाने चित कर उनकी औकात जरूर दिखा सकती है। कि यह शानो शौकत, बड़ी-बड़ी कोठियां, लंबी-लंबी गाड़ियां, सैकड़ों बीघे जमीन, मोटा बैंक बैलेंस आदि सब हमारी बदौलत है। नहीं तो राज्य गठन से पूर्व इनमें से अधिकांश सड़कों पर किस फटीचर हालत में घूमा करते थे, यह किसी से छिपा नहीं। और हमारी दी हुई ताकत से खुद को सर्वशक्तिमान समझने वालों की खुदाई का दावा हम सिरे से खारिज करते हैं। ऐसे "चैंपियनों" और उनके चेले चपाटों की हनक और गलतफहमी तेरहवीं शताब्दी में हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन की कहानी "नंगे राजा" की याद भी दिला गई। जिसमें राजा के नंगे होने के बावजूद चाटुकार राजा की नई पोशाक की तारीफ करते हैं। और सारा राज्य घूमने के बाद ही एक अबोध बालक राजा को उसके नंगे होने का एहसास कराता है। "जिन्हें मतदाता जमीं से आसमां की ऊंचाइयों तक पहुंचाते हैं, बुलंदी पाते ही अपनी औकात भूल जाते हैं"। ✍️ चैन सिंह रावत / सतपुली