केदारघाटी में अब नाचने लगे है सिद्धवा-विद्धवा, जानिए क्यों थम गई थी लोकदेवताओं की ताल और थाप
1 min read
24/03/20225:13 pm
लक्ष्मण नेगी / ऊखीमठ ।।
इन दिनों केदार घाटी के विभिन्न गांवों में अनेक देवी – देवताओं के नृत्य का आयोजन होने से गांवों का वातावरण देवतुल्य बना हुआ है! गांवों में आयोजित होने वाले देवी – देवताओं के नृत्य में ग्रामीणों व धिणाणियां बढ़ – चढ़कर भागीदारी कर रही है।
केदार घाटी के विभिन्न गांवों में इस प्रकार के देव नृत्यों की परम्परा प्राचीन है तथा इस प्रकार के देव नृत्यों का आयोजन मुख्यतः चैत्र मास में ही किया जाता है! इन देव नृत्यों में ऐडी – आछरी नृत्य, सिद्धवा – विद्धवा नृत्य के साथ ही नाग नृत्य का आयोजन मुख्य रूप में किया जाता है! इन नृत्यों का आयोजन ढोल – दमाऊ के बजाय डमरू व कांस की थाली की ध्वनि पर किया जाता है! विगत दो वर्षों में वैश्विक महामारी के कारण लाकडाउन लगने से इस वर्ष अधिक गांवों में इस प्रकार के देव नृत्यों का आयोजन किया जा रहा है। प्रत्येक देव नृत्य के समापन पर भव्य आयोजन की परम्परा भी प्राचीन है! केदार घाटी में पाण्डव व जीतू बगडवाल का नृत्य मुख्य रूप से आयोजित होता है मगर इन नृत्यों के अलावा केदार घाटी के विभिन्न गांवों में ऐडी़ – आछरी नृत्य, सिद्धवा – विद्धवा नृत्य तथा नाग नृत्य की परम्परा भी प्राचीन है! सभी नृत्यों के शुभारंभ में हरी के द्वार हरिद्वार से चौखम्बा हिमालय तक सभी तीर्थों की स्तुति करने का प्रावधान है तथा सभी देवताओं की स्तुति के बाद आयोजित नृत्य से सम्बन्धित गीतों के गायन पर देवता नर रूप में अवतरित होकर नृत्य करते है! सारी निवासी गजपाल भटट् ने बताया कि इन नृत्यों में नाग नृत्य का आयोजन भी मुख्य रूप से किया जाता है तथा नाग नृत्य में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का गुणगान किया जाता है।
बुरुवा निवासी व भेडपालक प्रेम भटट् बताते है कि सिद्धवा – विद्धवा भेड़ पालकों के अराध्य है तथा सिद्धवा – विद्धवा नृत्य में दोनों भाईयों के हिमालयी क्षेत्रों के भ्रमण तथा सुरम्य मखमली बुग्यालों में विचरण करने का वृतान्त अधिक गाया जाता है! कालीमठ निवासी विनीता राणा ने बताया कि ऐड़ी – आछरी नृत्य का आयोजन दोष मुक्त के लिए किया जाता है क्योंकि जब कोई महिला गढ़वाल की ऊंची चोटियों में पाल पीले कपड़े पहनकर जाती है ऐड़ी – आछरियो का दोष माना जाता है तथा ऐड़ी – आछरियो व वन देवियों के दोष को नृत्य के माध्यम से मुक्त माना जाता है! मदमहेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन भटट् बताते है कि इस प्रकार के नृत्यों का आयोजन अब भव्य रूप से होने लगा है तथा सभी नृत्यों में ग्रामीणों द्वारा सहभागिता निभाई जाती है! जिला पंचायत सदस्य परकण्डी रीना बिष्ट बताते है कि इस प्रकार के देव नृत्यों का आयोजन प्राचीन काल से चैत्र मास में किया जाता है तथा चैत्र मास की महिमा का गुणगान युगीन पुरूषों ने बड़े मार्मिक तरीके से किया है! क्षेत्र पंचायत सदस्य उषा भटट् ने बताया कि प्राचीन काल में चैत्र मास में अन्य परम्पराओं का भी आयोजन किया जाता था मगर कुछ परम्परायें विलुप्त हो चुकी है! आचार्य कृष्णानन्द नौटियाल ने बताया कि केदार घाटी अनेक प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान के आयोजन में मुख्य पहचान रखती है इसलिए इस माटी में आयोजित होने वाली पर पौराणिक परम्परा को जीवित रखने की सामूहिक पहल होनी चाहिए !
देश और दुनिया सहित स्थानीय खबरों के लिए जुड़े रहे दस्तक पहाड़ से।
खबर में दी गई जानकारी और सूचना से क्या आप संतुष्ट हैं? अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
केदारघाटी में अब नाचने लगे है सिद्धवा-विद्धवा, जानिए क्यों थम गई थी लोकदेवताओं की ताल और थाप
दस्तक पहाड़ की से ब्रेकिंग न्यूज़:
भारत में सशक्त मीडिया सेंटर व निष्पक्ष पत्रकारिता को समाज में स्थापित करना हमारे वेब मीडिया न्यूज़ चैनल का विशेष लक्ष्य है। खबरों के क्षेत्र में नई क्रांति लाने के साथ-साथ असहायों व जरूरतमंदों का भी सभी स्तरों पर मदद करना, उनको सामाजिक सुरक्षा देना भी हमारे उद्देश्यों की प्रमुख प्राथमिकताओं में मुख्य रूप से शामिल है। ताकि सर्व जन हिताय और सर्व जन सुखाय की संकल्पना को साकार किया जा सके।
लक्ष्मण नेगी / ऊखीमठ ।।
इन दिनों केदार घाटी के विभिन्न गांवों में अनेक देवी - देवताओं के नृत्य का आयोजन होने से गांवों का वातावरण देवतुल्य बना हुआ है! गांवों में आयोजित होने वाले
देवी - देवताओं के नृत्य में ग्रामीणों व धिणाणियां बढ़ - चढ़कर भागीदारी कर रही है।
केदार घाटी के विभिन्न गांवों में इस प्रकार के देव नृत्यों की परम्परा प्राचीन है तथा इस प्रकार के देव नृत्यों का आयोजन मुख्यतः चैत्र मास में ही किया जाता
है! इन देव नृत्यों में ऐडी - आछरी नृत्य, सिद्धवा - विद्धवा नृत्य के साथ ही नाग नृत्य का आयोजन मुख्य रूप में किया जाता है! इन नृत्यों का आयोजन ढोल - दमाऊ के बजाय
डमरू व कांस की थाली की ध्वनि पर किया जाता है! विगत दो वर्षों में वैश्विक महामारी के कारण लाकडाउन लगने से इस वर्ष अधिक गांवों में इस प्रकार के देव नृत्यों
का आयोजन किया जा रहा है। प्रत्येक देव नृत्य के समापन पर भव्य आयोजन की परम्परा भी प्राचीन है! केदार घाटी में पाण्डव व जीतू बगडवाल का नृत्य मुख्य रूप से
आयोजित होता है मगर इन नृत्यों के अलावा केदार घाटी के विभिन्न गांवों में ऐडी़ - आछरी नृत्य, सिद्धवा - विद्धवा नृत्य तथा नाग नृत्य की परम्परा भी प्राचीन है!
सभी नृत्यों के शुभारंभ में हरी के द्वार हरिद्वार से चौखम्बा हिमालय तक सभी तीर्थों की स्तुति करने का प्रावधान है तथा सभी देवताओं की स्तुति के बाद आयोजित
नृत्य से सम्बन्धित गीतों के गायन पर देवता नर रूप में अवतरित होकर नृत्य करते है! सारी निवासी गजपाल भटट् ने बताया कि इन नृत्यों में नाग नृत्य का आयोजन भी
मुख्य रूप से किया जाता है तथा नाग नृत्य में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का गुणगान किया जाता है।
बुरुवा निवासी व भेडपालक प्रेम भटट् बताते है कि सिद्धवा - विद्धवा भेड़ पालकों के अराध्य है तथा सिद्धवा - विद्धवा नृत्य में दोनों भाईयों के हिमालयी
क्षेत्रों के भ्रमण तथा सुरम्य मखमली बुग्यालों में विचरण करने का वृतान्त अधिक गाया जाता है! कालीमठ निवासी विनीता राणा ने बताया कि ऐड़ी - आछरी नृत्य का
आयोजन दोष मुक्त के लिए किया जाता है क्योंकि जब कोई महिला गढ़वाल की ऊंची चोटियों में पाल पीले कपड़े पहनकर जाती है ऐड़ी - आछरियो का दोष माना जाता है तथा ऐड़ी
- आछरियो व वन देवियों के दोष को नृत्य के माध्यम से मुक्त माना जाता है! मदमहेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन भटट् बताते है कि इस प्रकार के नृत्यों का आयोजन
अब भव्य रूप से होने लगा है तथा सभी नृत्यों में ग्रामीणों द्वारा सहभागिता निभाई जाती है! जिला पंचायत सदस्य परकण्डी रीना बिष्ट बताते है कि इस प्रकार के देव
नृत्यों का आयोजन प्राचीन काल से चैत्र मास में किया जाता है तथा चैत्र मास की महिमा का गुणगान युगीन पुरूषों ने बड़े मार्मिक तरीके से किया है! क्षेत्र
पंचायत सदस्य उषा भटट् ने बताया कि प्राचीन काल में चैत्र मास में अन्य परम्पराओं का भी आयोजन किया जाता था मगर कुछ परम्परायें विलुप्त हो चुकी है! आचार्य
कृष्णानन्द नौटियाल ने बताया कि केदार घाटी अनेक प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान के आयोजन में मुख्य पहचान रखती है इसलिए इस माटी में आयोजित होने वाली पर
पौराणिक परम्परा को जीवित रखने की सामूहिक पहल होनी चाहिए !