दीपक बेंजवाल/ दस्तक पहाड़ ।। अपने हक के लिऐ कब चेतेगे हम पहाड़ी ? 1000 नाली कृर्षि भूमि अधिग्रहण के बाद भी रूद्रप्रयाग ( थाती बड़मा) में सैनिक स्कूल का निर्माण लटका

Featured Image

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी उत्तराखंड को सैनिक धाम मानते हैं। इसी वजह से रक्षा मंत्रालय ने शैक्षणिक सत्र 2022-23 के लिए देशभर में खोले जाने वाले 21 नए सैनिक स्कूलों में से उत्तराखंड के हिस्से में भी एक सैनिक स्कूल खोलने की मंजूरी दी है। उत्तराखंड के लिए यह गौरवशाली उपलब्धि है।रक्षा मंत्रालय प्रदेश सरकार अथवा निजी स्कूल या एनजीओ के साथ पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड में इन स्कूलों का संचालन करेगा। उत्तराखंड में यह स्कूल देहरादून भाऊवाला स्थित जीआरडी वर्ल्‍ड स्कूल में संचालित होगा।   बता दें, राज्य में इससे पहले एक मात्र सैनिक स्कूल घोड़ाखाल था। जिसका पूरा संचालन रक्षा मंत्रालय करता है। हालांकि रुद्रप्रयाग जिले में भी सैनिक स्कूल खोलने की कवायद पिछले कई साल से चल रही है। इसको स्वीकृति भी मिल गई थी, पर मामला अब भी अधर में लटका हुआ है। केंद्र और राज्य सरकारों नई घोषणा पर खुश हैं लेकिन पुरानी पर सब मौन साधे हैं। मोदीजी पहाड़ के लोग आपसे उम्मीद लगाए हैं, हमारी सैनिक स्कूल के साथ न्याय कीजिए। नौनिहालो के भविष्य की राह देखती पहाड़ की उन अनगिनत आँखो का दर्द कौन समझेगा जिन्होने आज से दस साल पहले अपनी 1000 नाली उपयोगी कृर्षि भूमि सरकार को निशुल्क दान कर दी। 2012 में रूद्रप्रयाग जिले में सैनिक स्कूल की स्थापना के लिऐ जखोली ब्लाक के थाती ग्राम सभा ने दिगधार बड़मा गाँव में अपनी बहूमूल्य कृर्षि योग्य भूमि, चारागाह को निशुल्क दान देने के लिऐ एक सामुहिक शपथ पत्र सरकार को दिया जिसके फलस्वरूप 2013 में तत्कालीन सैनिक कल्याण मंत्री डा हरक सिंह रावत की घोषणा की और बकायदा अगस्त्यमुनि में इसका शिलान्यास हुआ। डा रावत ने इसके लिऐ 11 करोड़ रूपये भी स्वकृत करवाऐ जो भूमि समतलीकरण, पुस्ता और सड़क निर्माण पर खर्च किऐ जा चुके है। यह सपना साकार होता तो उत्तराखण्ड का दूसरा व देश का 26 वा सैनिक स्कूल बनता। लेकिन सैनिक धाम को प्रचारित करने वाले प्रधानमंत्री मोदीजी पहाड़ के साथ न्याय नहीं कर पाए। और डबल इंजन की सरकार होते हुए भी पिछले 10 सालों से यह मामला लटका हुआ है। इस समय देश की रक्षा सेवाओ के शीर्ष पदो पर उत्तराखण्डी मौजूद है। सैनिक स्कूल खुलने से यह परंपरा आगे भी मौजूद रहने की आशा को ऊर्जा देती। इस स्कूल से पहाड़ में विकास की नई आधारशिला रखी जा रही थी। यह पहाड़ के विकास में विकास का अहम सपना भी था जिससे पहाड़ को नयी पहचान मिलनी भी तय थी। लेकिन आशा और उम्मीदे पहाड़ के हिस्से में आसानी से नही आती है इस स्कूल को भी राजनीति का शिकार होना पड़ा। जिससे पिछले सालो से यहा निर्माण कार्य बंद है। राज्य बनने के बाद पलायन रोकने के लिऐ यह जरूरी है कि इन सूदूरवर्ती क्षेत्रो में उच्च शिक्षण संस्थानो, शोध संस्थानो, सैन्य प्रशिक्षण संस्थानो, कृर्षि विश्वविद्यालयो की स्थापना हो जिससे देश दुनिया के तमाम छात्र यहा आयेगे साथ ही हमारे नौनिहाल भी उच्च शिक्षा की ओर प्रेरित होगे। वीरान हो रहे इन पहाड़ो में अप्रत्यक्ष रूप से इससे गाँवो में रोजगार बड़ेगा फिर चाहे वो आवागमन हो, दुकान होटल हो या बुनियादी सुविधाऐ। सरकार को सोचना चाहिऐ कि पहाड़ो की खूबसूरती दिखलाने के साथ साथ शिक्षा, प्रशिक्षण, शोध के लिऐ भी पहाड़, देश दुनिया के लिऐ आकर्षण का केन्द्र बने। इस हक के लिऐ अब वक्त आ गया है कि पहाड़वासी अपनी चेतना को जागृत करे। राजनिति को परे रखकर नेता अपने अपने क्षेत्रो में विकास की नयी पहचानो के लिऐ आगे आऐ। सैनिक स्कूल खुलना नितांत आवश्यक है , यह हमारे पहाड़ का हक भी बनता है, देश पर गढ़वाल का अहसान है जब भी कोई युद्ध हुआ है गढ़वाल के रणबांकुरों ने अपनी जान न्यौछावर की है , सवाल उठता है कि हम और हमारे लोग सेना मे सेवा करें उनके बच्चों के लिए उनके घर मे सैनिक स्कूल बनाने पर ईतनी हीलाहवाली नहीं होनी चाहिए थी, क्या हमारा गढ़वाल क्षेत्र केवल सैनिकों की फैक्टरी बनकर रहेगा, सैनिकों के घरगांव के बच्चों को अच्छी शिक्षा का प्रबंध अच्छे स्वास्थ्य का प्रबंध भी चाहिए, सरकारों की लापरवाही से बहुत सवाल खड़े होंगे , बात उठेगी तो दूर तक जायेगी। रूद्रप्रयाग जिले के दोनो विधायको, जनप्रतिनिधियो, बुद्धिजिवियो, समाजसेवियो और पत्रकार मित्रो से अपील है सैनिक स्कूल की इस माँग को अपने अपने स्तर से उठाऐ। यह हम सबकी लड़ाई है बल्कि कहे तो पूरे पहाड़ की लड़ाई है। कल इसी स्कूल से पहाड़ का कोई नौनिहाल देश की रक्षा सेवा मे अफसर बनकर सेवा देगा तो गर्व हम सभी को होगा। अगर सहमत है तो शेयर करे,  लिखे, इस स्कूल की लड़ाई हर तरह से लड़े ...कवि दुष्यंत की इन पंक्तियो के साथ.. हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में, हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।