मुफ्त की योजनाओं पर लगाम, राज्यों की हालत हो रही है खस्ता, पीएम मोदी ले सकते है कड़े फैसले
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05/04/20223:37 pm
नई दिल्ली: कर्ज के बोझ में डूबे पड़ोसी देश श्रीलंका की आज जो हालत है वैसी ही स्थिति देश के कुछ राज्यों की भी हो सकती है। अगर ये राज्य भारतीय संघ का हिस्सा नहीं होते तो अब तक कंगाल हो चुके होते।
. इसकी वजह है राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों में की जाने वाली लोकलुभावन घोषणाएं जिसे पूरा करने के लिए उन्हें जरूरत से ज्यादा कर्ज लेना पड़ता है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक में, कुछ अधिकारियों ने कई राज्यों की तरफ से घोषित लोकलुभावन योजनाओं पर चिंता जताई और दावा किया कि वे आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं हैं और वे उन्हें श्रीलंका (Sri Lanka) के रास्ते पर ले जा सकती हैं। पीएम मोदी ने शनिवार को 7, लोक कल्याण मार्ग स्थित अपने आवास पर सभी विभागों के सचिवों के साथ चार घंटे की लंबी बैठक की. बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा और कैबिनेट सचिव राजीव गौबा के अलावा केंद्र सरकार के अन्य शीर्ष अधिकारी भी शामिल हुए।सूत्रों ने कहा कि बैठक के दौरान, पीएम मोदी ने अधिकारियों से साफ तौर पर कहा कि वे कमियों के प्रबंधन की मानसिकता से बाहर निकलकर अतिरिक्त के प्रबंधन की नई चुनौती का सामना करें. पीएम मोदी ने प्रमुख विकास परियोजनाओं को नहीं लेने के बहाने के तौर पर ‘गरीबी’ का हवाला देने की पुरानी कहानी को छोड़ने और उनसे एक बड़ा दृष्टिकोण अपनाने के लिए कहा। जान लें कि 2014 के बाद से प्रधानमंत्री की सचिवों के साथ ये नौवीं बैठक थी. सूत्रों ने कहा कि दो सचिवों ने हाल के विधान सभा चुनावों में एक राज्य में घोषित एक लोकलुभावन योजना का उल्लेख किया जो आर्थिक रूप से खराब स्थिति में है. उन्होंने साथ ही अन्य राज्यों में इसी तरह की योजनाओं का हवाला देते हुए कहा कि वे आर्थिक रूप से टिकाऊ नहीं हैं और राज्यों को श्रीलंका के रास्ते पर ले जा सकती हैं।श्रीलंका वर्तमान में इतिहास के सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. लोगों को ईंधन, रसोई गैस के लिए लंबी लाइनों में लगना पड़ रहा है, जरूरी चीजों की आपूर्ति कम है. साथ ही लोग लंबे समय तक बिजली कटौती के कारण हफ्तों से परेशान हैं. ऐसी बैठकों के अलावा, प्रधानमंत्री मोदी ने शासन में समग्र सुधार के लिए नए विचारों का सुझाव देने के लिए सचिवों के 6 क्षेत्रीय समूहों का भी गठन किया है।
जिन राज्यों पर कर्ज का बोझ सबसे ज्यादा है उनमें पंजाब, दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इन राज्यों की लोकलुभावन घोषणाओं की वजह से इनकी वित्तीय सेहत खराब हो चुकी है. इसी तरह छत्तीसगढ़ और राजस्थान ने पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने की घोषणा की है. कई राज्य मुफ्त बिजली दे रहे हैं जो सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ा रहे हैं. भाजपा ने भी उत्तर प्रदेश और गोवा में मुफ्त रसोई गैस देने के साथ ही दूसरी कई लुभावनी घोषणाएं चुनाव में की थीं जिसे पूरे करने का वादा किया गया है।विभिन्न राज्यों के बजट अनुमानों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 में सभी राज्यों का कर्ज का कुल बोझ 15 वर्षों के उच्च स्तर पर पहुंच चुका है. राज्यों का औसत कर्ज उनके जीडीपी के 31.3 फीसदी पर पहुंच गया है. इसी तरह सभी राज्यों का कुल राजस्व घाटा के 17 वर्ष के उच्च स्तर 4.2 फीसदी पर पहुंच गया है. वित्त वर्ष 2021-22में कर्ज और जीएसडीपी (ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) का अनुपात सबसे ज्यादा पंजाब का 53.3 फीसदी रहा।इसका मतलब यह है कि पंजाब का जितना जीडीपी है उसका करीब 53.3 फीसदी हिस्सा कर्ज है. इसी तरह राजस्थान का अनुपात 39.8 फीसदी, पश्चिम बंगाल का 38.8 फीसदी, केरल का 38.3 फीसदी और आंध्र प्रदेश का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 37.6 फीसदी है. इन सभी राज्यों को राजस्व घाटा का अनुदान केंद्र सरकार से मिलता है. महाराष्ट्र और गुजरात जैसे आर्थिक रूप से मजबूत राज्यों पर भी कर्ज का बोझ कम नहीं है. गुजरात का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 23 फीसदी तो महाराष्ट्र का 20 फीसदी है।
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नई दिल्ली: कर्ज के बोझ में डूबे पड़ोसी देश श्रीलंका की आज जो हालत है वैसी ही स्थिति देश के कुछ राज्यों की भी हो सकती है। अगर ये राज्य भारतीय संघ का हिस्सा
नहीं होते तो अब तक कंगाल हो चुके होते।
. इसकी वजह है राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों में की जाने वाली लोकलुभावन घोषणाएं जिसे पूरा करने के लिए उन्हें जरूरत से ज्यादा कर्ज लेना पड़ता
है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक में, कुछ अधिकारियों ने कई राज्यों की तरफ से घोषित लोकलुभावन योजनाओं पर चिंता जताई
और दावा किया कि वे आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं हैं और वे उन्हें श्रीलंका (Sri Lanka) के रास्ते पर ले जा सकती हैं। पीएम मोदी ने शनिवार को 7, लोक कल्याण मार्ग
स्थित अपने आवास पर सभी विभागों के सचिवों के साथ चार घंटे की लंबी बैठक की. बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके
मिश्रा और कैबिनेट सचिव राजीव गौबा के अलावा केंद्र सरकार के अन्य शीर्ष अधिकारी भी शामिल हुए।सूत्रों ने कहा कि बैठक के दौरान, पीएम मोदी ने अधिकारियों से
साफ तौर पर कहा कि वे कमियों के प्रबंधन की मानसिकता से बाहर निकलकर अतिरिक्त के प्रबंधन की नई चुनौती का सामना करें. पीएम मोदी ने प्रमुख विकास परियोजनाओं को
नहीं लेने के बहाने के तौर पर ‘गरीबी’ का हवाला देने की पुरानी कहानी को छोड़ने और उनसे एक बड़ा दृष्टिकोण अपनाने के लिए कहा। जान लें कि 2014 के बाद से
प्रधानमंत्री की सचिवों के साथ ये नौवीं बैठक थी. सूत्रों ने कहा कि दो सचिवों ने हाल के विधान सभा चुनावों में एक राज्य में घोषित एक लोकलुभावन योजना का
उल्लेख किया जो आर्थिक रूप से खराब स्थिति में है. उन्होंने साथ ही अन्य राज्यों में इसी तरह की योजनाओं का हवाला देते हुए कहा कि वे आर्थिक रूप से टिकाऊ नहीं
हैं और राज्यों को श्रीलंका के रास्ते पर ले जा सकती हैं।श्रीलंका वर्तमान में इतिहास के सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. लोगों को ईंधन, रसोई गैस के
लिए लंबी लाइनों में लगना पड़ रहा है, जरूरी चीजों की आपूर्ति कम है. साथ ही लोग लंबे समय तक बिजली कटौती के कारण हफ्तों से परेशान हैं. ऐसी बैठकों के अलावा,
प्रधानमंत्री मोदी ने शासन में समग्र सुधार के लिए नए विचारों का सुझाव देने के लिए सचिवों के 6 क्षेत्रीय समूहों का भी गठन किया है।
किन राज्यों पर है ज्यादा कर्ज
जिन राज्यों पर कर्ज का बोझ सबसे ज्यादा है उनमें पंजाब, दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इन राज्यों की लोकलुभावन घोषणाओं की वजह से
इनकी वित्तीय सेहत खराब हो चुकी है. इसी तरह छत्तीसगढ़ और राजस्थान ने पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने की घोषणा की है. कई राज्य मुफ्त बिजली दे रहे हैं जो सरकारी
खजाने पर बोझ बढ़ा रहे हैं. भाजपा ने भी उत्तर प्रदेश और गोवा में मुफ्त रसोई गैस देने के साथ ही दूसरी कई लुभावनी घोषणाएं चुनाव में की थीं जिसे पूरे करने का
वादा किया गया है।विभिन्न राज्यों के बजट अनुमानों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 में सभी राज्यों का कर्ज का कुल बोझ 15 वर्षों के उच्च स्तर पर पहुंच चुका है.
राज्यों का औसत कर्ज उनके जीडीपी के 31.3 फीसदी पर पहुंच गया है. इसी तरह सभी राज्यों का कुल राजस्व घाटा के 17 वर्ष के उच्च स्तर 4.2 फीसदी पर पहुंच गया है. वित्त वर्ष
2021-22में कर्ज और जीएसडीपी (ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) का अनुपात सबसे ज्यादा पंजाब का 53.3 फीसदी रहा।इसका मतलब यह है कि पंजाब का जितना जीडीपी है उसका करीब
53.3 फीसदी हिस्सा कर्ज है. इसी तरह राजस्थान का अनुपात 39.8 फीसदी, पश्चिम बंगाल का 38.8 फीसदी, केरल का 38.3 फीसदी और आंध्र प्रदेश का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 37.6 फीसदी है. इन
सभी राज्यों को राजस्व घाटा का अनुदान केंद्र सरकार से मिलता है. महाराष्ट्र और गुजरात जैसे आर्थिक रूप से मजबूत राज्यों पर भी कर्ज का बोझ कम नहीं है. गुजरात
का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 23 फीसदी तो महाराष्ट्र का 20 फीसदी है।