मंदार गांव में आलू के खेतों की दर्शनीय छटा, अब यह न कहें कि गांवों के लोगों ने मेहनत करना छोड़ दिया।
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05/04/20229:23 pm
✍️महीपाल नेगी / नई टिहरी।।
मंदार गांव के भेगल्त तोक में करीब 500 नाली क्षेत्र में डेढ़ सौ परिवारों ने पहाड़ी आलू के बीज इस तरह से लगा लिए हैं। इसके अलावा पूरे गांव क्षेत्र अन्य तोकों में करीब 1000 नाली क्षेत्र में भी आलू के खेत ऐसे सज गए थे। अब यह न कहें कि गांवों के लोगों ने मेहनत करना छोड़ दिया। जबकि यह सड़क से पांच किमी दूर, समुद्र तल से करीब 2000 मीटर की ऊंचाई से भी ऊपर फैला हुआ क्षेत्र है।
गत वर्ष आलू के समुचित बीज न मिलने के कारण गांव में अनेक खेत खाली रह गए थे। लेकिन इस बार गांव वालों ने सुदूर सीमांत गांव गंगी से आलू के बीज मंगा कर अपने खेतों में लगाए हैं।गांव के निवासी पूर्व बी डी सी सदस्य विजयपाल रावत का कहना है कि गांव के लोग और भी क्षेत्र में आलू की फसल बो सकते हैं लेकिन जंगली जानवरों – सूअर और मृग के कारण काफी नुकसान होता है। यदि सरकार इन चकों पर तार बाड़ कर दे तो फसल के सुरक्षित होने से किसान प्रति वर्ष पूरे क्षेत्र में आलू की और भी अच्छी फसल उगा सकते हैं। स्थानीय स्तर पर उपयोग के अलावा यह आलू निकट के बाजारों में भी मुंह मांगे दाम पर बिकता है। आलू की खेती पूरी तरह जैविक है और बीज भी पारंपरिक पहाड़ी। तो इंतजार कीजिए करीब पांच महिने का। अगस्त तक आलू की फसल तैयार मिलेगी।
बहुत सुंदर यह मेरे गांव का दृश्य है भेगलत तोक दो हिस्सों में बटा हुआ है दूसरा वाला हिस्सा 80% बंजर हो चुका है क्योंकि यहां जंगली जानवरों का बहुत ही ज्यादा आतंक है खासकर के सुअर, स्याही (शोलू), बारहसिंघा का। मंदार गांव में लगभग हर जगह आलू की बहुत ही अच्छी खेती होती है लेकिन जंगली जानवरों के कारण खासकर बंदरों का आतंक कुछ सालों में बहुत ही ज्यादा बढ़ गया है- महेश सिंह रावत, मंदार गांव
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मंदार गांव में आलू के खेतों की दर्शनीय छटा, अब यह न कहें कि गांवों के लोगों ने मेहनत करना छोड़ दिया।
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✍️महीपाल नेगी / नई टिहरी।।
मंदार गांव के भेगल्त तोक में करीब 500 नाली क्षेत्र में डेढ़ सौ परिवारों ने पहाड़ी आलू के बीज इस तरह से लगा लिए हैं। इसके अलावा पूरे गांव क्षेत्र अन्य तोकों
में करीब 1000 नाली क्षेत्र में भी आलू के खेत ऐसे सज गए थे। अब यह न कहें कि गांवों के लोगों ने मेहनत करना छोड़ दिया। जबकि यह सड़क से पांच किमी दूर, समुद्र तल से
करीब 2000 मीटर की ऊंचाई से भी ऊपर फैला हुआ क्षेत्र है।
गत वर्ष आलू के समुचित बीज न मिलने के कारण गांव में अनेक खेत खाली रह गए थे। लेकिन इस बार गांव वालों ने सुदूर सीमांत गांव गंगी से आलू के बीज मंगा कर अपने
खेतों में लगाए हैं।गांव के निवासी पूर्व बी डी सी सदस्य विजयपाल रावत का कहना है कि गांव के लोग और भी क्षेत्र में आलू की फसल बो सकते हैं लेकिन जंगली जानवरों -
सूअर और मृग के कारण काफी नुकसान होता है। यदि सरकार इन चकों पर तार बाड़ कर दे तो फसल के सुरक्षित होने से किसान प्रति वर्ष पूरे क्षेत्र में आलू की और भी अच्छी
फसल उगा सकते हैं। स्थानीय स्तर पर उपयोग के अलावा यह आलू निकट के बाजारों में भी मुंह मांगे दाम पर बिकता है। आलू की खेती पूरी तरह जैविक है और बीज भी
पारंपरिक पहाड़ी। तो इंतजार कीजिए करीब पांच महिने का। अगस्त तक आलू की फसल तैयार मिलेगी।
बहुत सुंदर यह मेरे गांव का दृश्य है भेगलत तोक दो हिस्सों में बटा हुआ है दूसरा वाला हिस्सा 80% बंजर हो चुका है क्योंकि यहां जंगली जानवरों का बहुत ही ज्यादा
आतंक है खासकर के सुअर, स्याही (शोलू), बारहसिंघा का। मंदार गांव में लगभग हर जगह आलू की बहुत ही अच्छी खेती होती है लेकिन जंगली जानवरों के कारण खासकर बंदरों का
आतंक कुछ सालों में बहुत ही ज्यादा बढ़ गया है- महेश सिंह रावत, मंदार गांव