पहाडी क्षेत्रों में जमीन को रूखा बना रहे हैं चीड़ के पेड़, वनाग्नि की घटनाओं ने बढ़ाई चिंता
1 min read12/04/2022 1:49 pm
- पहाड़ के जंगलों में बढ़ते चीड़ ने बढ़ाई चिंता
- पहाडी क्षेत्रों में जमीन को रूखा बना रहे हैं चीड़ के पेड़
- भूस्खलन में बढ़ोतरी और जलस्रातों को नुकसान पहुंचाने में चीड़ का अहम रोल
सतीश गैरोला / कर्णप्रयाग। पहाड़ी क्षेत्रों में बांज, मोरू, खरसू, बुरांश, काफल, अगिंयार, फनियाट के जंगलों में चीड़ के पेड़ों की बढ़ती संख्या से इन बहुउपयोगी वनों अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। यदि समय रहते चीड़ के पौधों के विस्तार पर रोक नहीं लगाई गई तो इन उपयोगी वनों पर संकट के बादल छा सकते हैं। इतना ही नहीं इनकी प्रजाति समाप्त भी हो सकती है।
पर्यावरणविद् तथा वनस्पति वैज्ञानिक इन जीवनदायी वनों की घटती संख्या से चिंतित हैं। जानकार बताते है कि पूर्व में उत्तरकाशी के वरूणावत तथा कर्णप्रयाग के दयूड़ी डांडा में हुए भूस्ख्लन का मुख्य कारण चीड़ के जंगल रहे हैं। कर्णप्रयाग ब्लाक के जाख, कलियाड़ी, भटग्वाली, नंदासैंण, जखेट, खेती, पिंडवाली, बडेत, छांतोली, पुनगांव, बिसोंणा, किरसाल, मजियाड़ी, भलसों, गिंवाड़, बेड़ी, छिमटा, बेनीताल, चोंडली के जंगलों में लगातार चीड़ के पौधों की संख्या बढ़ रही है। चीड़ की जड़ से निकलने वाला एलीलोपैथी रसायन और पत्तियों से लिगिनिग की मात्रा ज्यादा होने से पीरूल नहीं सड़ता है, जिससे चीड़ के पेड़ों के नीचे नई वनस्पतियां जम नहीं पाती हैं।
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–क्या नुकसान हैं चीड़ से
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वैज्ञानिक बताते है कि चीड़ का एक वयस्क पेड़ जमीन से प्रतिदिन 54 लीटर पानी खींचता है जबकि वाष्पीकरण की मात्रा शून्य है। जिससे जलस्रोत सूख रहे हैं। अन्य पैदावार भी समाप्त हो रही है और घास की कमी भी हो रही है। इससे जंगलों में आग लगने का खतरा भी बना रहता है।
क्या फायदे हैं चौड़ी पत्ती वाले पेड़ों से
बांज का पेड़ प्रतिदिन 12 लीटर पानी वाष्पीकरण करता है, जबकि भूमि से एक बूंद भी पानी नहीं लेता है। जल स्तर में बढ़ोतरी करता है और भूस्खलन रोकता है।
जंगलों में लगी आग ने भी बढ़ाई चिंता
पहाड़ी क्षेत्रों के जंगलों में आग लगने के बाद प्राकृतिक जल स्रोत सूखने, आग से जंगली फलों एवं चारा-पत्ती को हुए नुकसान और वन्य जीवों के ठिकानों पर अवैध कब्जे से दुर्लभ जीवों के सामने जान बचाने का संकट पैदा हो गया है। जीवन रक्षा के लिए वन्य जीवों का आबादी के बीच आना वन विभाग की कार्य प्रणाली पर भी सवाल पैदा करता है। लगातार मानव आबादी में गुलदारों की घुसपैठ की घटना के बाद जंतु वैज्ञानिक चिंतित हैं।
क्या कहते हैं पर्यावरणविद्
जाने-माने पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट कहते हैं कि चीड़ की बेहताशा बढ़ोतरी ने पर्यावरण को खासा नुकसान पहुंचाया है। जंगलों में खाली स्थानों में बांज के पौधे लगाने चाहिए। नई पीढ़ी को जागरूक होकर चौड़ी पत्ती वाले वनों की उपयोगिता को समझना होगा। लगातार बढ़ रहे धरती के तापमान एवं मौसम में हो रहे परिवर्तन का असर हमारी वनस्पितियों पर देखा जा रहा है। इससे भी वनों का विकास और विस्तार प्रभावित हो रहा है।
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पहाडी क्षेत्रों में जमीन को रूखा बना रहे हैं चीड़ के पेड़, वनाग्नि की घटनाओं ने बढ़ाई चिंता
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