अखिलेश डिमरी / देहरादून :- मीठा मीठा म्याऊं कड़वा कड़वा हट अगर जानना समझना हो तो कांग्रेस के स्वघोषित गाड़ गदरों के लाल , मुख्यमंत्रियों के प्रबल दावेदारों व असल में पार्टी की दुर्गति के लिए जिम्मेदार लोगों से समझिये।
चंपावत उप चुनाव में पार्टी द्वारा घोषित प्रत्याशी को भले ही कांग्रेस के प्रवक्ता कार्यकर्ता मजबूत प्रत्याशी घोषित करते न थकें लेकिन मेरी समझ से असलियत ये है कि कांग्रेस के किसी गुट नें बी जे पी को वाक ओवर देने की कोई डील ही की है वरना प्रत्याशी के चयन का हासिल बिल्कुल अलग होता।
सवाल जीतने और हारने का नहीं बल्कि सवाल इस बात का है कि आप खुद में लड़ने की क्षमताओं से लबरेज हैं या नहीं, अगर कांग्रेस इस चुनाव को सच में गम्भीरता से ले रही होती और वाक ओवर देने के मूड में न होती तो चंपावत उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अथवा मुख्यमंत्री इन वेटिंग प्रीतम सिंह जैसे चेहरों पर दांव खेलती या बहुत हुआ तो चंपावत से कांग्रेस के टिकट पर लड़ने वाले पूर्व विधायक खर्कवाल ही चुनाव लड़ते।
फिलहाल कांग्रेस की दशा और इनके स्वनामधन्य स्वघोषित बड़े बड़े नेताओं को देखते हुए मेरा यकीन है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत नें तो इस चुनाव में इच्छा भी न जताई होगी और यदि किसी नें प्रस्ताव भी दिया होगा तो भी अनसुना या बहानेबाजी कर दी गयी होगी और खर्कवाल चुनाव क्यों न लड़ रहे होंगे इस पर भी ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत हो तो फिर कुछ कहना सोचना ही बेकार है।
दरअसल कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व उर्फ हाई कमान शायद इस बात को अभी तक नही स्वीकार पा रहा कि इनके सो कॉल्ड बड़े नेता सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री बनने की जुगत में सेनापति का पद स्वीकार करते हैं शेष मोर्चे पर सबसे पहले यही लोग रण छोड़ कर भागने के एक्सपर्ट हैं और इनसे जितनी जल्दी हो किनारा कर लेना ही बेहतर होगा।
इनका कुल जमा हासिल यह है कि फिलहाल सत्ता से दूर रहते हुए आगामी पाँच साल इन्हें भी तो अपने निजी काम करवाने है ये फिर सक्रिय होंगे तब नगर निगम चुनावों में चरस बोयेंगे, 2024 के लोक सभा चुनावों में चरस बोयेंगे और 2027 के विधानसभा चुनावों में फिर उठ खड़े होंगे क्योंकि इन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए तमाम प्रपंच जो करने हैं। फिलहाल ये सब रण छोड़ चुके हैं इन्हें केवल और केवल मुख्यमंत्री बनना है कार्यकर्ता और सच्चा सिपाही तो इनके बयान मात्र हैं।
कांग्रेस पार्टी के लिए दक मुफ्त की सलाह है कि उन्हें अगर पार्टी को जिंदा रखना है तो ऊर्जावान कार्यकर्ताओं को तरजीह दे उन पर विश्वास जताए इन आउट डेटेड हुए बाबाली स्वनामधन्य सो कॉल्ड बड़े नेताओं और विकास पुरषों से जितनी जल्दी हो किनारा कर ले इनका जब मौका लगेगा ये झोला पकड़ कर निकल लेंगे ये तय मानिये वरना इनसे कहिये कि मोर्चे पर आयें और ईमानदारी से कमान सम्भालें।
एक बात और कि ये पार्टी छोड़ कर जाने वालों का सम्बंध दिल्ली नगर निगम के चुनावों से भी पाया जा सकता है ढूंढ खोज कर लीजिए ।
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अखिलेश डिमरी / देहरादून :- मीठा मीठा म्याऊं कड़वा कड़वा हट अगर जानना समझना हो तो कांग्रेस के स्वघोषित गाड़ गदरों के लाल , मुख्यमंत्रियों के प्रबल दावेदारों व
असल में पार्टी की दुर्गति के लिए जिम्मेदार लोगों से समझिये।
चंपावत उप चुनाव में पार्टी द्वारा घोषित प्रत्याशी को भले ही कांग्रेस के प्रवक्ता कार्यकर्ता मजबूत प्रत्याशी घोषित करते न थकें लेकिन मेरी समझ से असलियत
ये है कि कांग्रेस के किसी गुट नें बी जे पी को वाक ओवर देने की कोई डील ही की है वरना प्रत्याशी के चयन का हासिल बिल्कुल अलग होता।
सवाल जीतने और हारने का नहीं बल्कि सवाल इस बात का है कि आप खुद में लड़ने की क्षमताओं से लबरेज हैं या नहीं, अगर कांग्रेस इस चुनाव को सच में गम्भीरता से ले रही
होती और वाक ओवर देने के मूड में न होती तो चंपावत उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अथवा मुख्यमंत्री इन वेटिंग प्रीतम सिंह जैसे चेहरों पर दांव
खेलती या बहुत हुआ तो चंपावत से कांग्रेस के टिकट पर लड़ने वाले पूर्व विधायक खर्कवाल ही चुनाव लड़ते।
फिलहाल कांग्रेस की दशा और इनके स्वनामधन्य स्वघोषित बड़े बड़े नेताओं को देखते हुए मेरा यकीन है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत नें तो इस चुनाव में इच्छा भी
न जताई होगी और यदि किसी नें प्रस्ताव भी दिया होगा तो भी अनसुना या बहानेबाजी कर दी गयी होगी और खर्कवाल चुनाव क्यों न लड़ रहे होंगे इस पर भी ज्यादा दिमाग
लगाने की जरूरत हो तो फिर कुछ कहना सोचना ही बेकार है।
दरअसल कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व उर्फ हाई कमान शायद इस बात को अभी तक नही स्वीकार पा रहा कि इनके सो कॉल्ड बड़े नेता सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री बनने की जुगत
में सेनापति का पद स्वीकार करते हैं शेष मोर्चे पर सबसे पहले यही लोग रण छोड़ कर भागने के एक्सपर्ट हैं और इनसे जितनी जल्दी हो किनारा कर लेना ही बेहतर होगा।
इनका कुल जमा हासिल यह है कि फिलहाल सत्ता से दूर रहते हुए आगामी पाँच साल इन्हें भी तो अपने निजी काम करवाने है ये फिर सक्रिय होंगे तब नगर निगम चुनावों में
चरस बोयेंगे, 2024 के लोक सभा चुनावों में चरस बोयेंगे और 2027 के विधानसभा चुनावों में फिर उठ खड़े होंगे क्योंकि इन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए तमाम प्रपंच
जो करने हैं। फिलहाल ये सब रण छोड़ चुके हैं इन्हें केवल और केवल मुख्यमंत्री बनना है कार्यकर्ता और सच्चा सिपाही तो इनके बयान मात्र हैं।
कांग्रेस पार्टी के लिए दक मुफ्त की सलाह है कि उन्हें अगर पार्टी को जिंदा रखना है तो ऊर्जावान कार्यकर्ताओं को तरजीह दे उन पर विश्वास जताए इन आउट डेटेड हुए
बाबाली स्वनामधन्य सो कॉल्ड बड़े नेताओं और विकास पुरषों से जितनी जल्दी हो किनारा कर ले इनका जब मौका लगेगा ये झोला पकड़ कर निकल लेंगे ये तय मानिये वरना इनसे
कहिये कि मोर्चे पर आयें और ईमानदारी से कमान सम्भालें।
एक बात और कि ये पार्टी छोड़ कर जाने वालों का सम्बंध दिल्ली नगर निगम के चुनावों से भी पाया जा सकता है ढूंढ खोज कर लीजिए ।