दस्तक पहाड़ न्यूज पोर्टल ब्यूरो- बुधवार सुबह अगस्त्यमुनि से रुद्रप्रयाग लोकल सवारी ले जा रही एक गाड़ी में रामपुर से बैठी सवारी ने अचानक तिलवाड़ा बाजार में उतारने के लिए ड्राइवर को आवाज़ दी, तो ड्राइवर को मजबूरी में बाजार में गाड़ी रोकनी पड़ी। सवारी ने बड़ा नोट देकर समय को थोड़ा और खींच लिया, सेकेंड में हुई इस देरी पर आगबबूला हुए पुलिस के जवान ने गाड़ी पर जोर से डंडा दे मारा। सवारी को खुले देते देते के बीच जवान ने जोर से दो डंडे और दे मारे और ड्राइवर को डांटने लगा। गाड़ी पर पड़े तीन डंडो से आहत ड्राइवर ने जवान से कहा दो तीन डंडे और मार लिजिए साहब। दरअसल पुलिस जवान को न गाड़ी पर पड़ने वाले निशानो की चिंता हुई, न बुजुर्ग सवारी की लाचारगी और न गरीब ड्राइवर की मजबूरी दिखी। ड्राइवर की प्रतिक्रिया ने उसे गुस्से से भर दिया, फिर आव ना ताव उसने ड्राइवर का कालर

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पकड़ते हुए चाबी खींच डाली। ड्राइवर के यह बोलने पर कि आप चाबी नहीं निकल सकते है पर चाबी तो दे दी लेकिन आगे चौकी पर देख लेने की धमकी दे डाली। ड्राइवर जब आगे चौकी पर पहुंचा तो वहां तैनात साहब और खतरनाक निकले। गाड़ी रोककर ड्राइवर को अपशब्द तो बोले गए ही सीट बैल्ट और ओवर सवारी के नाम पर 4200 का चालान भी काट दिया। जबकि गाड़ी में मौजूद सवारियों के अनुसार ड्राइवर ने सीट बैल्ट पहनी थी और अपने परमिट के हिसाब से सवारियां ही बिठाई थी लेकिन चालान में जबरदस्ती सीट बैल्ट न पहनने और सवारी जादा बिठाने का चालान काट दिया गया। बेचारा गरीब ड्राइवर, सड़क पर रोज चलना है सोचकर सब कुछ स्वीकार कर लिया। उसे मालूम हो चुका था कि कांस्टेबल को थोड़ा बोला तो ये हाल हुआ, साहब को जवाब दिया तो चलना भी मुश्किल हो जाएगा। बाल बच्चे पालने है सो उसने ये जुल्म चुपचाप सह लिया। लेकिन गाड़ी में बैठी एक सवारी को यह घटना बेहद नागवार गुजरी। सवारी ने एसपी कार्यालय में फोन कर शिकायत करनी चाही लेकिन वहां किसी ने फोन नहीं उठाया। बाद में उसने घटना को दस्तक से साझा किया। यह घटना बहुत सारे सवाल भी उठाती है। यात्रा काल में स्थानीय सवारी और स्थानीय ड्राइवरों के लिए क्या सरकार, पुलिस और प्रशासन को कोई सहूलियत नहीं देनी चाहिए ? जिन लोकल गाड़ियों में बैठकर पुलिस पीआरडी होमगार्ड फ्री में स्टाफ बोलकर सवारी करते है, उनके साथ बदसलूकी करते हुए दरियादिली क्यों गायब हो जाती है। माना गलती पर चालान बनता है लेकिन किसी की गाड़ी पर डंडे मारना और पारिवारिक जनों के लिए अपशब्द बोलना क्या कानून के दायरे में आता है। लाचारी, मजबूरी में सह लिया तो ठीक लेकिन किसी के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा कर किसी भी हद तक जलील करने का अधिकार किसने दिया। क्या गरीब आदमी जीना भी छोड़ दे साहब। वर्दी का रौब है सो हर बार आम आदमी लाचार हो जाता है। वास्तव में ऐसी घटनाएं न केवल मानवता को शर्मसार करती है बल्कि इंसानियत को भी खत्म कर देती है। हमारा मकसद पुलिस के जवानों का मनोबल गिराना नहीं है लेकिन कभी कभार ऐसी दहशत भरी हरकतों से आमजन का विश्वास हमेशा हमेशा के लिये उनके लिए मर जाता है। सो सिर्फ नारों में नहीं हकीकत में मित्र पुलिस की भूमिका निभाइये साहब। कल आपके बच्चे, पारिवारिक जन भी इन परिस्थितियों से गुजरे तो बड़ा दिल मत दिखाऐगा साहब! बुधवार सुबह मैक्स ड्राइवर के साथ तिलवाड़ा में हुई ये बदसलूकी चर्चा का विषय बनी है। यात्रा के नाम पर लोकल सवारियों को बैठाना, उतारना इन दिनों किसी गुनाह से कम नहीं है, आलम ये है कि कोई कुछ सेकेंड रूक जाए तो डाट डपट, बदसलूकी के साथ गाड़ी पर डंडो की बरसात और चालान भी भुगतना पड़ सकता है। जी हां केदारघाटी में ये इन दिनों आम है। पुलिस अपनी ड्यूटी निभा रही है लेकिन सवाल ये है कि आम आदमी यात्रा काल में क्या सफर करे ही नहीं। अगर करे तो फिर उसे अपने बाजारों में उतरने, चढ़ने को लेकर पुलिस के कोप का भजन क्यों बनना पड़ रहा है। नोट : यह संपूर्ण घटना गाड़ी में बैठी सवारी के शब्दों में है। ड्राइवर बिचारा पीड़ित है और किसी भी प्रकार की शिकायत नहीं रखता है, आखिर उसे हर रोज सड़क पर चलना है, तो माई-बाप से पंगा क्यों। रही बात हम लिखने वालों की तो जुल्म पर कलम उठेगी, फिर बात दूर तलक जाए या पत्थर बन चुके साहबों के दिलों में समां कर चुभ जाएँ ।