अजय रावत / पौड़ी  दस्तक पहाड़ न्यूज पोर्टल ब्यूरो- सनातन पंथ में तरनी को मां के समान महत्ता प्रदान की गई है, हिमालय से प्रकट होने वाली सरिताओं के पावन व पवित्र स्वरूप की महत्ता तो और भी अधिक मानी गयी है। किन्तु यह लोमहर्षक दृश्य शिव के परम धाम केदार से निकलने वाली जलमाला का है, जिसमें धूर्त पशु स्वरूप हो चुके इंसानों द्वारा इस तरह से अपशिष्ट को इन जलधाराओं से तिरोहित किया जा रहा है। ध्यान रहे इस जलधारा के अंश सोनप्रयाग, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग से प्रयागराज तक पंहुचते

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हैं, जिस जलधारा के आचमन मात्र से करोड़ों सनातनी अपने आत्मिक व दैहिक पापों से मुक्ति की अपेक्षा रखते हैं।  शिव के धाम को जा रही तथाकथित "शिव की बारात" के फलस्वरूप सैकड़ों टन कूड़े कचरे को यूं पवित्र नदियों में विसर्जित किया जा रहा है, इंसानी मल मूत्र के साथ पशुओं के मलमूत्र व शवों का पड़ाव भी ये नदियां बन रही हैं, क्या यह सब कुकृत्य या बलात्कार नहीं तो क्या..? सरकार व इसके प्राधिकरणों व निकायों की बात करना तो इस प्रदेश के गठन के समय से ही बेमानी साबित होता आया है लेकिन धिक्कार है उन पर्यावरण के ठेकेदारों पर, जो पर्यावरण के नाम पर फर्श से अर्श तक पंहुच चुके हैं। अच्छा हो ऐसे पर्यावरण के ठेकेदार पंच प्रयाग से प्रयागराज तक जहां उचित लगे सशरीर इन सरिताओं में विलीन हो जाएं.. ( लेखक सचिव, पलायन एक चिंतन  एवं पत्रकार है)