प्रकृति की हथेली पर मेंहदी सजी ” फूलों की घाटी ” फिर होंगे दीदार
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01/06/20229:09 am
क्रान्ति भट्ट / गोपेश्वर
दस्तक पहाड़ न्यूज पोर्टल ब्यूरो- हिमालय सिर्फ पर्वत श्रृंखला का नाम नहीं है। हिमालय आध्यात्म , धर्म , आस्था , मान्यताओं के साथ साथ धरती पर प्रकति का अनुपम उपहार भी है। प्रकृति के इसी सुन्दर उपहार ” फूलों की घाटी ” के दीदार प्रकृति प्रेमी फिर से कर सकेंगे। आज बुधवार से पर्यटकों , प्रकृति, प्रेमियों के लिये अवलोकनार्थ फूलों की घाटी खुल गयी है।
लगभग 500 प्रजाति के पुष्पों से खिली रहने वाली फूलों की घाटी के सौंदर्य और जैविक विविधता के कारण इसे विश्व धरोहर का भी दर्जा प्राप्त है। उत्तराखंड के चमोली जिले में नन्दा देवी बायोस्फियर क्षेत्रांतर्गत फूलों की घाटी 87.5 वर्ग किमी में फैली है। प्रकृति प्रेमी फ्रेंड स्माइथ ने 1932 में दुनिया को सबसे पहले अपनी किताब बैली आफ फ्लावर से इस सुंदर घाटी से अवगत कराया ।
ब्रिटिश पर्यटक मेरी 1925 के लगभग फूलों की घाटी के दीदार के लिये आयी । और यहीं प्रकृति की गोद में फूलों के बीच सदा सदा के लिये सो गयी । कहते हैं फूलों की तरह बहुत सुन्दर थी मेरी ।उनकी स्मृति का स्टोन आज भी फूलों की घाटी के बीचों है । ( इस की भी कहानी बहुत मर्म स्पर्शी है । अगस्त सितम्बर माह में फूलों की घाटी का सौंदर्य खूब निखरता है ।
हमारे पुराणों , शास्त्रों में इसे नन्द कानन वन के नाम से भी जाना जाता है। पुष्पावती नदी जिसे पुष्प दंड करती भी कहा जाता है। मान्यता है शरद की पूर्णिमा को देवता इस पवित्र नदी में स्नान करने आते हैं। मान्यता है कि भगवान लक्ष्मण जी ने यहीं तप किया था। उनकी साधना से प्रसन्न होकर देवताओं ने स्वर्ग से फूलों की वर्षा की वहीं फूल फूलों की घाटी में खिल उठे। आज भी इसी क्षेत्र में लक्ष्मण जी का मंदिर भी है। जिसे स्थानीय लोग लोकपाल मंदिर के नाम से पुकारते हैं।
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प्रकृति की हथेली पर मेंहदी सजी ” फूलों की घाटी ” फिर होंगे दीदार
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क्रान्ति भट्ट / गोपेश्वर
दस्तक पहाड़ न्यूज पोर्टल ब्यूरो- हिमालय सिर्फ पर्वत श्रृंखला का नाम नहीं है। हिमालय आध्यात्म , धर्म , आस्था , मान्यताओं के साथ साथ धरती पर प्रकति का
अनुपम उपहार भी है। प्रकृति के इसी सुन्दर उपहार " फूलों की घाटी " के दीदार प्रकृति प्रेमी फिर से कर सकेंगे। आज बुधवार से पर्यटकों , प्रकृति, प्रेमियों के
लिये अवलोकनार्थ फूलों की घाटी खुल गयी है।
लगभग 500 प्रजाति के पुष्पों से खिली रहने वाली फूलों की घाटी के सौंदर्य और जैविक विविधता के कारण इसे विश्व धरोहर का भी दर्जा प्राप्त है। उत्तराखंड के चमोली
जिले में नन्दा देवी बायोस्फियर क्षेत्रांतर्गत फूलों की घाटी 87.5 वर्ग किमी में फैली है। प्रकृति प्रेमी फ्रेंड स्माइथ ने 1932 में दुनिया को सबसे पहले अपनी
किताब बैली आफ फ्लावर से इस सुंदर घाटी से अवगत कराया ।
ब्रिटिश पर्यटक मेरी 1925 के लगभग फूलों की घाटी के दीदार के लिये आयी । और यहीं प्रकृति की गोद में फूलों के बीच सदा सदा के लिये सो गयी । कहते हैं फूलों की तरह
बहुत सुन्दर थी मेरी ।उनकी स्मृति का स्टोन आज भी फूलों की घाटी के बीचों है । ( इस की भी कहानी बहुत मर्म स्पर्शी है । अगस्त सितम्बर माह में फूलों की घाटी का
सौंदर्य खूब निखरता है ।
हमारे पुराणों , शास्त्रों में इसे नन्द कानन वन के नाम से भी जाना जाता है। पुष्पावती नदी जिसे पुष्प दंड करती भी कहा जाता है। मान्यता है शरद की पूर्णिमा को
देवता इस पवित्र नदी में स्नान करने आते हैं। मान्यता है कि भगवान लक्ष्मण जी ने यहीं तप किया था। उनकी साधना से प्रसन्न होकर देवताओं ने स्वर्ग से फूलों की
वर्षा की वहीं फूल फूलों की घाटी में खिल उठे। आज भी इसी क्षेत्र में लक्ष्मण जी का मंदिर भी है। जिसे स्थानीय लोग लोकपाल मंदिर के नाम से पुकारते हैं।