प्रिय हिमालय, यह कोई तिलिस्म तो नहीं, “माँ मनणा का प्राकृतिक श्रृंगार”
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13/07/202211:11 am
अभिषेक अजय पंवार ” गौंडारी” / दस्तक पहाड़ न्यूज पोर्टल ब्यूरो – देवभूमि उत्तराखंड के पग-पग पर करोड़ों देवी-देवताओं का वास है, देवभूमि-उत्तराखंड के कई तीर्थ धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ प्राकृतिक ,नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर और लबालब हैं।
इन्हीं तीर्थ स्थलों में मद्यमहेश्वर घाटी के मुख्य गाँव माँ राकेश्वरी(रामेश्वरी) स्थली राँसी से लगभग 32 किमी दूर स्थित माँ मनाणा माई का नाम सर्वप्रमुख है।माँ मनणा माई का मन्दिर प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब एवं हिमालय की गोद में युग-युगों से विराजमान है, माता के मन्दिर के चारों तरफ हरी-भरी वादियां , मखमली चारागाह, मन्दानी नदी की कल-कल कलरव करती आवाज इस स्थान पर चार चाँद लगा देते हैं। मंन्दिर के चारों तरफ बरसात व शरद ऋतु में मिलों दूर जहाँ तक नजर दौड़ाओ वहाँ तक विभिन्न प्रजाति के रंग विरंगें पुष्पों-राज्य पुष्प ब्रह्मकमल, कुखुड़ी-मुखुड़ी, जया-विजया, इन्द्राणी, रातों की रानी, कपूर, कचरी, दौलूं, अरचू,भुज्यढु, शताम्मबरी, बारुण हल्दी, बंज्रदंती, पाषाण देव, फलपंजा,अतीस, कुटगी, किरमोला, हथजड़ी जटामांसी, कुषण,कीड़ा जड़ी, मीठा जड़ी, सहित अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ चारों तरफ बुग्याल तथा मंदिर के प्रांगण को सुसज्जित कर मानव मूल को आकर्षित करते हैं, यहाँ से चमचमाती हिमालय की श्वेत चादर युक्त हिमखंडो को दृष्टि गोचर किया जा सकता है, यहाँ से प्रकृति की भव्य सुन्दरता को अति निकट से निहारने पर मानव खुद को स्वर्ग में विराजमान महसूस कर सकता है, प्रकृति प्रेमियों हेतु यह स्थान सर्वौपरि है। वह ,खुद को प्रकृति का हिस्सा बनाकर अनंत आनंद की अनुभूति कर सकता है।
प्रकृति के मध्य स्थित इस धाम तक पहुंचने के लिए प्रकृति की गोद में दुर्गम रास्तों से चलते हुए सन्यरा बुग्याल,कनरा वडार,पटुड़ी धार, शौंली धार विनायक धार, शिला समुद्र ,छंदरशी,डोवरा और मन्दानि नदी तथा अनेक स्थानों को पार करते हुए पहुंचा जा सकता है। माँ मनणा माई धाम तक पहुँचने हेतु रांसी गाँव के किसी गाइड” की सहायता ली जा सकती है।
प्रिय हिमालय,
यह कोई तिलिस्म तो नहीं?
आह!ऐसा भ्रम हो रहा है कि विविध एवं भाँति-भाँति रङ्ग के प्रफुल्लित फूलों(कुखुड़ी-मुखुड़ी) से सुशोभित, अलंकृत मनणी-मंदानी वैली बुला रही हो।ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे श्वेत हिम-मुकुटित शिखर, हिमालय के आँगन में वसन्तोसव का आगमन हुआ हो।
हे! हिमालय मैं, अपने मन, मस्तिष्क और हृदय के तुमुल को अभिव्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ। ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो रही है,लग रहा है कि इस सावन भी हिमालय-मिलन की अगाधता,आशा और उत्सुकता धरी की धरी रह जाएगी।
प्रिय हिमालय, यह कोई तिलिस्म तो नहीं, “माँ मनणा का प्राकृतिक श्रृंगार”
दस्तक पहाड़ की से ब्रेकिंग न्यूज़:
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अभिषेक अजय पंवार " गौंडारी" / दस्तक पहाड़ न्यूज पोर्टल ब्यूरो - देवभूमि उत्तराखंड के पग-पग पर करोड़ों देवी-देवताओं का वास है, देवभूमि-उत्तराखंड के कई तीर्थ
धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ प्राकृतिक ,नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर और लबालब हैं।
इन्हीं तीर्थ स्थलों में मद्यमहेश्वर घाटी के मुख्य गाँव माँ राकेश्वरी(रामेश्वरी) स्थली राँसी से लगभग 32 किमी दूर स्थित माँ मनाणा माई का नाम सर्वप्रमुख
है।माँ मनणा माई का मन्दिर प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब एवं हिमालय की गोद में युग-युगों से विराजमान है, माता के मन्दिर के चारों तरफ हरी-भरी वादियां , मखमली
चारागाह, मन्दानी नदी की कल-कल कलरव करती आवाज इस स्थान पर चार चाँद लगा देते हैं। मंन्दिर के चारों तरफ बरसात व शरद ऋतु में मिलों दूर जहाँ तक नजर दौड़ाओ वहाँ
तक विभिन्न प्रजाति के रंग विरंगें पुष्पों-राज्य पुष्प ब्रह्मकमल, कुखुड़ी-मुखुड़ी, जया-विजया, इन्द्राणी, रातों की रानी, कपूर, कचरी, दौलूं, अरचू,भुज्यढु,
शताम्मबरी, बारुण हल्दी, बंज्रदंती, पाषाण देव, फलपंजा,अतीस, कुटगी, किरमोला, हथजड़ी जटामांसी, कुषण,कीड़ा जड़ी, मीठा जड़ी, सहित अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ
चारों तरफ बुग्याल तथा मंदिर के प्रांगण को सुसज्जित कर मानव मूल को आकर्षित करते हैं, यहाँ से चमचमाती हिमालय की श्वेत चादर युक्त हिमखंडो को दृष्टि गोचर
किया जा सकता है, यहाँ से प्रकृति की भव्य सुन्दरता को अति निकट से निहारने पर मानव खुद को स्वर्ग में विराजमान महसूस कर सकता है, प्रकृति प्रेमियों हेतु यह
स्थान सर्वौपरि है। वह ,खुद को प्रकृति का हिस्सा बनाकर अनंत आनंद की अनुभूति कर सकता है।
प्रकृति के मध्य स्थित इस धाम तक पहुंचने के लिए प्रकृति की गोद में दुर्गम रास्तों से चलते हुए सन्यरा बुग्याल,कनरा वडार,पटुड़ी धार, शौंली धार विनायक धार,
शिला समुद्र ,छंदरशी,डोवरा और मन्दानि नदी तथा अनेक स्थानों को पार करते हुए पहुंचा जा सकता है। माँ मनणा माई धाम तक पहुँचने हेतु रांसी गाँव के किसी गाइड" की
सहायता ली जा सकती है।
प्रिय हिमालय,
यह कोई तिलिस्म तो नहीं?
आह!ऐसा भ्रम हो रहा है कि विविध एवं भाँति-भाँति रङ्ग के प्रफुल्लित फूलों(कुखुड़ी-मुखुड़ी) से सुशोभित, अलंकृत मनणी-मंदानी वैली बुला रही हो।ऐसा प्रतीत हो
रहा है जैसे श्वेत हिम-मुकुटित शिखर, हिमालय के आँगन में वसन्तोसव का आगमन हुआ हो।
हे! हिमालय मैं, अपने मन, मस्तिष्क और हृदय के तुमुल को अभिव्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ। ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो रही है,लग रहा है कि इस सावन भी हिमालय-मिलन की
अगाधता,आशा और उत्सुकता धरी की धरी रह जाएगी।
📌हिमालय से मिलन की स्पृहा में।
✍- अभिषेक पंवार 'गौण्डारी'
फोटो साभार- Kalam Bisht Kalam Bisht
❗नोट- कृपया हिमालय में सभ्य मानव बनकर ही दस्तक दें। प्रकृति विरुद्ध कोई भी कृत्य न करें!