श्रावण माह में पुण्यदायक है कोटेश्वर तीर्थ के दर्शन, जानिए क्या है महात्म्य इतिहास
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21/07/20228:19 am
दस्तक पहाड़ न्यूज पोर्टल ब्यूरो ।÷ केदारनाथ की धरती पर रुद्रप्रयाग से करीब तीन किमी आगे अलकनंदा नदी के तट पर प्राचीन गुफा है। यह स्थल कोटेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रसिद्ध स्थल को लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं। मंदिर के महंत शिवानंद गिरी बताते हैं कि श्रीकोटेश्वर महादेव का स्कंदपुराण में वर्णन है। भगवान कोटेश्वर जहां पर आज वर्तमान स्थित है उस आश्रम का नाम पूर्वकाल में ब्रह्माआश्रम था। यह ब्रह्माजी की तपस्थली थी। कालांतर में एक कोटी ब्रह्म राक्षस हुए। उन्होंने अपने आत्मोद्धार और राक्षसी योगी से मुक्ति पाने के लिए भगवान शंकर की उपासना इस क्षेत्र में की। भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन दिए। भगवान शंकर से कोटी राक्षस ने दो वरदान मांगे। भगवान एक तो हमें इस राक्षस योनी से मुक्ति दिला दीजिए। कोटी ब्रह्म राक्षस ने दूसरा वर मांगते हुए कहा कि राक्षसों का संपूर्ण वंश समाप्त होने वाला है। ऐसे में हमारा नाम आने वाले काल में अमर रहे, संसार के लोग हमें याद रखें ऐसा वर दीजिए। भगवान महादेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हें दोनों वरदान दिए। पहले तो उन्हें राक्षस योनी से मुक्त किया और फिर इस गुफा में विराजमान हुए। भगवान शंकर ने कहा कि इस ब्रह्मआश्रम में वह कोटेश्वर महादेव के रूप में जाने जाएंगे। जो भी जिस कामना से मेरा पूजन करेगा मैं उसे तुरंत फल प्रदान करूंगा।
दूसरी पौराणिक मान्यता के अनुसार भस्मासुर नामक राक्षस ने तपस्या कर शिव से किसी भी व्यक्ति के सिर पर हाथ रखने पर भस्म करने का वरदान मांगा लिया था। वरदान पाने के बाद राक्षस ने भगवान शिव को भस्म करने की सोची। भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शिव इसी गुफा में छिपे थे। इस दौरान शिव ने भगवान विष्णु का ध्यान किया और कुछ समय के लिए यहां रहे थे। आखिरकार भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धरकर भस्मासुर को खुद के ही सिर पर हाथ रखने को मजबूर कर दिया। हाथों को ढंकना पड़ा और भस्मासुर राख बन गया। इस तरह विष्णु ने राक्षस को मार डाला।
अलकनंदा का विहंगम दृश्य मन को भा जाता है
इस गुफा वाले मंदिर के आसपास शांतिमय और सम्मोहित कर देने वाला माहौल है। सीधी खड़ी बड़ी चट्टानों के बीच से निकलते पेड़ और चट्टानों पर लगी विशेष किस्म की वनस्पतियों के बीच शांत अलकनंदा की सुंदरता देखते ही बनती है। गुफा के अंदर प्राकृतिक रूप से बनी मूर्तियां और शिवलिंग प्राचीन काल से स्थापित हैं। गुफा के बाहर कल-कल बहती अलकनंदा का विहंगम दृश्य मन को भा जाता है। यह भी मान्यता है कि कौरवों की मृत्यु के बाद जब पांडव मुक्ति का वरदान मांगने के लिए भगवान शिव को खोज रहे थे तो शिव इसी इसी गुफा मे ध्यानमग्न थे।
भव्य होता है महाशिवरात्रि का उत्सव
यहां पानी गुफा की छत से सीधे और लगातार शिव लिंग पर गिरता रहता है। महाशिवरात्रि के दिन कोटेश्वर महादेव मंदिर में बड़ा उत्सव मनाया जाता है। कोटेश्वर महादेव की मूर्ति चार सालों में एक बार पालकी में लाई जाती है। इसमें फूलों, गहने और एक सोने का मुकुट होता है। मूर्ति एक आकर्षक और डिजाइनर सुनहरा छाता के नीचे रखी गई है। मंदिर को भव्य तरीके से सजाया जाता है। यहां पूजा और महाशिवरात्रि पर हवन किया जाता है। गुफा के समीप बने मंदिर में मंदिर में देवी पार्वती, भगवान हनुमान, भगवान गणेश और देवी दुर्गा की मूर्तियां भी स्थापित हैं।
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श्रावण माह में पुण्यदायक है कोटेश्वर तीर्थ के दर्शन, जानिए क्या है महात्म्य इतिहास
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दस्तक पहाड़ न्यूज पोर्टल ब्यूरो ।÷ केदारनाथ की धरती पर रुद्रप्रयाग से करीब तीन किमी आगे अलकनंदा नदी के तट पर प्राचीन गुफा है। यह स्थल कोटेश्वर महादेव
मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रसिद्ध स्थल को लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं। मंदिर के महंत शिवानंद गिरी बताते हैं कि श्रीकोटेश्वर महादेव का स्कंदपुराण
में वर्णन है। भगवान कोटेश्वर जहां पर आज वर्तमान स्थित है उस आश्रम का नाम पूर्वकाल में ब्रह्माआश्रम था। यह ब्रह्माजी की तपस्थली थी। कालांतर में एक कोटी
ब्रह्म राक्षस हुए। उन्होंने अपने आत्मोद्धार और राक्षसी योगी से मुक्ति पाने के लिए भगवान शंकर की उपासना इस क्षेत्र में की। भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन
दिए। भगवान शंकर से कोटी राक्षस ने दो वरदान मांगे। भगवान एक तो हमें इस राक्षस योनी से मुक्ति दिला दीजिए। कोटी ब्रह्म राक्षस ने दूसरा वर मांगते हुए कहा कि
राक्षसों का संपूर्ण वंश समाप्त होने वाला है। ऐसे में हमारा नाम आने वाले काल में अमर रहे, संसार के लोग हमें याद रखें ऐसा वर दीजिए। भगवान महादेव ने उन्हें
आशीर्वाद दिया और उन्हें दोनों वरदान दिए। पहले तो उन्हें राक्षस योनी से मुक्त किया और फिर इस गुफा में विराजमान हुए। भगवान शंकर ने कहा कि इस ब्रह्मआश्रम
में वह कोटेश्वर महादेव के रूप में जाने जाएंगे। जो भी जिस कामना से मेरा पूजन करेगा मैं उसे तुरंत फल प्रदान करूंगा।
दूसरी पौराणिक मान्यता के अनुसार भस्मासुर नामक राक्षस ने तपस्या कर शिव से किसी भी व्यक्ति के सिर पर हाथ रखने पर भस्म करने का वरदान मांगा लिया था। वरदान
पाने के बाद राक्षस ने भगवान शिव को भस्म करने की सोची। भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शिव इसी गुफा में छिपे थे। इस दौरान शिव ने भगवान विष्णु का ध्यान किया और
कुछ समय के लिए यहां रहे थे। आखिरकार भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धरकर भस्मासुर को खुद के ही सिर पर हाथ रखने को मजबूर कर दिया। हाथों को ढंकना पड़ा और
भस्मासुर राख बन गया। इस तरह विष्णु ने राक्षस को मार डाला।
अलकनंदा का विहंगम दृश्य मन को भा जाता है
इस गुफा वाले मंदिर के आसपास शांतिमय और सम्मोहित कर देने वाला माहौल है। सीधी खड़ी बड़ी चट्टानों के बीच से निकलते पेड़ और चट्टानों पर लगी विशेष किस्म की
वनस्पतियों के बीच शांत अलकनंदा की सुंदरता देखते ही बनती है। गुफा के अंदर प्राकृतिक रूप से बनी मूर्तियां और शिवलिंग प्राचीन काल से स्थापित हैं। गुफा के
बाहर कल-कल बहती अलकनंदा का विहंगम दृश्य मन को भा जाता है। यह भी मान्यता है कि कौरवों की मृत्यु के बाद जब पांडव मुक्ति का वरदान मांगने के लिए भगवान शिव को
खोज रहे थे तो शिव इसी इसी गुफा मे ध्यानमग्न थे।
भव्य होता है महाशिवरात्रि का उत्सव
यहां पानी गुफा की छत से सीधे और लगातार शिव लिंग पर गिरता रहता है। महाशिवरात्रि के दिन कोटेश्वर महादेव मंदिर में बड़ा उत्सव मनाया जाता है। कोटेश्वर
महादेव की मूर्ति चार सालों में एक बार पालकी में लाई जाती है। इसमें फूलों, गहने और एक सोने का मुकुट होता है। मूर्ति एक आकर्षक और डिजाइनर सुनहरा छाता के
नीचे रखी गई है। मंदिर को भव्य तरीके से सजाया जाता है। यहां पूजा और महाशिवरात्रि पर हवन किया जाता है। गुफा के समीप बने मंदिर में मंदिर में देवी पार्वती,
भगवान हनुमान, भगवान गणेश और देवी दुर्गा की मूर्तियां भी स्थापित हैं।