सुखी दुखी जखी रौला त्वेथे नि बिसरौला, फेगू मां दुर्गा देवी से बिछुड़ने पर क्यों भावुक हुए दिवारा यात्री
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26/08/20229:53 pm
दीपक बेंजवाल / दस्तक पहाड़ न्यूज ब्यूरो :- सुखी दुखी जखी रौला त्वेथे नि बिसरौला / तेरो मान सम्मान, तेरा गीत गूंज्योला…. पहाड़ के सुप्रसिद्ध लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी की इन पंक्तियों के साथ जन जन में आशीर्वाद बिखेरती आठ गांव और तीन सौ साठ तीर्थ पुरोहित समाज की आराध्य देवी मां भगवती फेगू दुर्गा देवी की पगयात्रा ढेड माह के भ्रमण के उपरांत बृहस्पतिवार को अपने मूल मंदिर पहुंच गई है। मंदिर पहुंचने पर मां दुर्गा और सभी देवरियां यात्रियों का फूल मालाओं से स्वागत किया गया। ग्रामीणों को आशीर्वाद देने के बाद डोली को मंदिर की परिक्रमा कराने के बाद मंदिर में विराजमान करा दिया गया है।
बता दें कि फेगू दुर्गा देवी हर छः साल में अन्नकूट पूजा के लिए केदारनाथ मंदिर जाती है। इस दौरान फेगू से केदारनाथ तक वो तकरीबन दौ सौ से भी अधिक छोटे बड़े गांवों का भ्रमण कर अपने भक्तों की कुशलक्षेम पूछती है।
10 जुलाई को फेगू मंदिर से प्रारंभ हुई मां भगवती दुर्गा की इस कठिन यात्रा भ्रमण को भक्तों ने नंगे पांव, एक वक्त के भोजन, दो वक्त के स्नान और पूर्णतः सात्विक नियमों के साथ पूरा किया। इस संपूर्ण कार्यक्रम में प्राचीन काल से चली आ रही दैविक और लोक परंपराओं का विशेष ख्याल रखा गया, जिसमें यात्रा मार्ग में आने वाले विभिन्न देवी देवताओं के मठ मंदिरों में सेवा भेंट, उनके अवतारी मानव पश्वाओं को जागृत कर भ्रमण की आज्ञा लेना, क्षेत्र की दिशा ध्याण का विशेष सम्मान करने के साथ घर घर जाकर भक्तों की कुशलक्षेम पूछना प्रमुख होता है। इस दौरान देवी और ग्रामीणों के बीच सवालों और भावों का आदान प्रदान करने वाले तपनिष्ठ देवरा यात्रियों की श्रद्धा, भक्ति, विश्वास ने हर किसी को देवी के भावों में बांध लेते हैं। वास्तव में देवरा यात्रा में देवी के वाहक अर्थात देवरा यात्री ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। तकरीबन ढेड माह तक देवी और देवरा यात्रियों का संबंध इतना प्रगाढ़ हो जाता है कि हर पल वो देवी का ही सानिध्य चाहने लगते है, देवी भी अपनी चल विग्रह डोली के साथ उनके कंधों में खूब हिलोरे लेती हुई प्रसन्न भाव से यात्रा करती है। जगत माता और भक्तवत्सल पुत्रों का यह संबंध अद्भुत होता है। अब जब देवरा यात्रा पूर्ण हो कर अपने मूल स्थान पर वापस आ चुकी है तभी सभी दिवारी भक्त माता से विदा लेते है। बृहस्पतिवार मां दुर्गा से भक्तों की विदाई का यह दृश्य सभी को भावुक कर गया। पुनः अगले छः साल बाद देवरा का आयोजन का वायदा कर सभी भक्त अपनी दुर्गा माता से विदाई लेकर अपने अपने घरों को लौट चुके है।
दिवारा यात्रा में फेगू दुर्गा देवी मंदिर समिति अध्यक्ष पुरुषोत्तम तिवारी, मठपति दौलत सिंह दुमागा, शिव प्रसाद शुक्ला, सुरेन्द्र प्रसाद पुरोहित, विशालमणी सेमवाल, सचिव भारत भूषण बिष्ट, पुजारी राजन सेमवाल, संतोष सेमवाल, हकूकधारी आठ गांव तीन सौ साठ तीर्थ पुरोहित समाज के लोग साथ चल रहे है। दिवारा में सामिल दिवारीयों में हरीश शुक्ला, रजनीश शुक्ला, पंकज बगवाड़ी, अजय जुगरान, दुर्गेश रूवाड़ी, शिशुपाल दुमागा, मोहन रूवाड़ी, जीत सिंह रावत, प्रदीप सजवाण, राजीव नेगी, सुनील नेगी समेत 80 से भी अधिक भक्तों ने नंगे पांव देवरा यात्रा पूर्ण की है।
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सुखी दुखी जखी रौला त्वेथे नि बिसरौला, फेगू मां दुर्गा देवी से बिछुड़ने पर क्यों भावुक हुए दिवारा यात्री
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दीपक बेंजवाल / दस्तक पहाड़ न्यूज ब्यूरो :- सुखी दुखी जखी रौला त्वेथे नि बिसरौला / तेरो मान सम्मान, तेरा गीत गूंज्योला.... पहाड़ के सुप्रसिद्ध लोकगायक
नरेन्द्र सिंह नेगी की इन पंक्तियों के साथ जन जन में आशीर्वाद बिखेरती आठ गांव और तीन सौ साठ तीर्थ पुरोहित समाज की आराध्य देवी मां भगवती फेगू दुर्गा देवी
की पगयात्रा ढेड माह के भ्रमण के उपरांत बृहस्पतिवार को अपने मूल मंदिर पहुंच गई है। मंदिर पहुंचने पर मां दुर्गा और सभी देवरियां यात्रियों का फूल मालाओं से
स्वागत किया गया। ग्रामीणों को आशीर्वाद देने के बाद डोली को मंदिर की परिक्रमा कराने के बाद मंदिर में विराजमान करा दिया गया है।
बता दें कि फेगू दुर्गा देवी हर छः साल में अन्नकूट पूजा के लिए केदारनाथ मंदिर जाती है। इस दौरान फेगू से केदारनाथ तक वो तकरीबन दौ सौ से भी अधिक छोटे बड़े
गांवों का भ्रमण कर अपने भक्तों की कुशलक्षेम पूछती है।
10 जुलाई को फेगू मंदिर से प्रारंभ हुई मां भगवती दुर्गा की इस कठिन यात्रा भ्रमण को भक्तों ने नंगे पांव, एक वक्त के भोजन, दो वक्त के स्नान और पूर्णतः सात्विक
नियमों के साथ पूरा किया। इस संपूर्ण कार्यक्रम में प्राचीन काल से चली आ रही दैविक और लोक परंपराओं का विशेष ख्याल रखा गया, जिसमें यात्रा मार्ग में आने वाले
विभिन्न देवी देवताओं के मठ मंदिरों में सेवा भेंट, उनके अवतारी मानव पश्वाओं को जागृत कर भ्रमण की आज्ञा लेना, क्षेत्र की दिशा ध्याण का विशेष सम्मान करने के
साथ घर घर जाकर भक्तों की कुशलक्षेम पूछना प्रमुख होता है। इस दौरान देवी और ग्रामीणों के बीच सवालों और भावों का आदान प्रदान करने वाले तपनिष्ठ देवरा
यात्रियों की श्रद्धा, भक्ति, विश्वास ने हर किसी को देवी के भावों में बांध लेते हैं। वास्तव में देवरा यात्रा में देवी के वाहक अर्थात देवरा यात्री ही
महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। तकरीबन ढेड माह तक देवी और देवरा यात्रियों का संबंध इतना प्रगाढ़ हो जाता है कि हर पल वो देवी का ही सानिध्य चाहने लगते है,
देवी भी अपनी चल विग्रह डोली के साथ उनके कंधों में खूब हिलोरे लेती हुई प्रसन्न भाव से यात्रा करती है। जगत माता और भक्तवत्सल पुत्रों का यह संबंध अद्भुत
होता है। अब जब देवरा यात्रा पूर्ण हो कर अपने मूल स्थान पर वापस आ चुकी है तभी सभी दिवारी भक्त माता से विदा लेते है। बृहस्पतिवार मां दुर्गा से भक्तों की
विदाई का यह दृश्य सभी को भावुक कर गया। पुनः अगले छः साल बाद देवरा का आयोजन का वायदा कर सभी भक्त अपनी दुर्गा माता से विदाई लेकर अपने अपने घरों को लौट चुके
है।
दिवारा यात्रा में फेगू दुर्गा देवी मंदिर समिति अध्यक्ष पुरुषोत्तम तिवारी, मठपति दौलत सिंह दुमागा, शिव प्रसाद शुक्ला, सुरेन्द्र प्रसाद पुरोहित,
विशालमणी सेमवाल, सचिव भारत भूषण बिष्ट, पुजारी राजन सेमवाल, संतोष सेमवाल, हकूकधारी आठ गांव तीन सौ साठ तीर्थ पुरोहित समाज के लोग साथ चल रहे है। दिवारा में
सामिल दिवारीयों में हरीश शुक्ला, रजनीश शुक्ला, पंकज बगवाड़ी, अजय जुगरान, दुर्गेश रूवाड़ी, शिशुपाल दुमागा, मोहन रूवाड़ी, जीत सिंह रावत, प्रदीप सजवाण, राजीव
नेगी, सुनील नेगी समेत 80 से भी अधिक भक्तों ने नंगे पांव देवरा यात्रा पूर्ण की है।