जज्बे को सलाम: ‘घोस्ट विलेज नहीं…अब कहिए मटियाल गांव’, जानें 2 युवाओं की रिवर्स पलायन की कहानी
1 min read11/09/2022 5:26 am
हिमांशु जोशी / पिथौरागढ़ / दस्तक ठेठ पहाड़ से – दिल में कुछ कर गुजरने का हौसला हो तो बंजर जमीन से भी सोना उगाया जा सकता है. इस कहावत को सच करने का काम पिथौरागढ़ के मटियाल गांव के युवा विक्रम सिंह और दिनेश सिंह कर हैं. मटियाल गांव जिले का एक ऐसा गांव है जहां कोई आबादी नहीं रहती. इस गांव के सभी लोग सुविधाओं के अभाव में पलायन कर चुके हैं, जिस कारण यह घोस्ट विलेज घोषित हो गया था.कोरोना की महामारी की वजह से देशभर में लॉकडाउन जैसा समय आया, तो गांव के युवाओं को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. इसमें से विक्रम सिंह मुंबई के एक होटल में, तो दिनेश पानीपत में गाड़ी चलाने का काम करते थे. इन दोनों का बचपन मटियाल गांव में ही बीता था। नौकरी हाथ से जाने के बाद दोनों ने अपने गांव को फिर से आबाद करने की ठानी और वापस आ गए. हालांकि गांव में कोई नहीं रहता था, बस रह गए थे तो बंजर खेत और टूटे मकान. दोनों ने बंजर जमीन में खेती करना शुरू किया. इसके साथ गाय-बकरी पालीं और उसे ही अपना रोजगार बनाया. इन दोनों युवाओं से प्रेरित होकर अन्य लोग भी गांव की ओर लौटने लगे. विपरित परिस्थितियों में ये युवा यहां खेती कर रोजगार कमा रहे हैं, लेकिन इनकी सारी मेहनत पर जंगली जानवरों ने पानी फेर दिया है।
शासन से मांगी मदद
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रिवर्स पलायन का उदाहरण देने वाले इन युवाओं ने अब शासन प्रशासन से मदद मांगी है. दरअसल ये लोग फसल की सुरक्षा के लिए घेराबंदी की मांग कर रहे हैं. हालांकि इन युवाओं की मेहनत का ही नतीजा है कि घोस्ट विलेज से यह जगह मटियाल गांव के नाम से दुबारा अपनी पहचान बना सकी है. इन दोनों युवाओं ने उत्तराखंड में रिवर्स पलायन की एक नजीर पेश की है जिन्हें अब सरकार से मदद की उम्मीद है.
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पिथौरागढ़ की मुख्य विकास अधिकारी ने कही ये बात
पिथौरागढ़ जिले की मुख्य विकास अधिकारी अनुराधा पाल से जब न्यूज़ 18 लोकल ने इन युवाओं की समस्या के बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि इन युवाओं का काम वाकई काबिले तारीफ है. इन युवाओं की मदद करने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है. साथ ही उन्होंने ऐसे सभी युवाओं को हर संभव मदद देने की बात भी की है जो रिवर्स पलायन पर काम करना चाहते हैं।
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