अंकिता के पिता को लालची ठहरा देना भी वही मानसिकता है जो विनोद आर्य और उसके बेटे पुलकित आर्य और उसके उन साथियों की है जिन्होंने अंकिता की हत्या की ।
1 min read28/09/2022 11:57 am


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मान्यवर जोशी जी, नमस्कार, आपके इस लिखे हुए को पढ़ा और आपकी इस लाइन पर कि “मुझे पता है आप पढ़ने वालों में से कई बहादुर अब अपनी म्यान से तलवारें निकाल कर मेरा सर कलम करने को दौड़ेंगे …” तो आपको विश्वाश दिलाता हूँ कि आपके साथ ऐसा कत्तई नहीं होगा उसके कारण हैं कि आपके नाम के आगे जोशी लिखा हुआ है और प्रोफ़ाइल डिटेल्स में भी शायद संघ या किसी राजनैतिक विशेष वैचारिक संगठन का जिक्र नहीं इसलिये आपका कहा शायद सामान्य तर्कशील व बुद्धिमत्ता पूर्ण है।
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हालांकि जो आपने लिखा है उस पर सिर्फ इतना सा कहना है कि एक बाप जो पिछले 6 दिनों से अपनी बेटी के लिए दरबदर फिर रहा हो उसकी मनोस्थिति को समझे बिना लालची कह देना इतना भी सरल नहीं।
मरहूम अंकिता भंडारी की जगह अपनी बेटी और उनके पिताजी की जगह खुद को रख कर देखता हूँ तो समझ आता है कि 6 दिनों के बाद मेरी मनोस्थिति क्या होती …? जनता के क्रोध जज्बात और विरोध का सम्मान करते हुए भी एक हद के बाद एक पिता के सब्र और मानसिक स्थिति की इंतिहा को समझना भी उतना ही संजीदा विषय है जितना कि अंकिता की पीड़ादायक मौत ।
पर हमें क्या हम तो बौद्धिकवाद का चोला उठा कर जब चाहें किसी अभागे बाप को हिज्जे लगा कर अपने तर्कों से लालची कहना शुरू कर दें क्या फर्क पड़ता है क्योंकि हम पहाड़ी होने की कबीलाई मानसिकता से सराबोर तो हैं ही और इसका फायदा भी हमे समझ आता ही है।
माफ कीजियेगा जोशी जी अंकिता के पिता को क्यों मुआवजा और उसके परिवार से किसी एक को सरकारी नौकरी क्यों न मिले इसका कोई व्यावहारिक कारण बताया दीजिये…?इतने दिनों बाद अंकिता भण्डारी के पिता औऱ उसके परिवार को देख कर भी अगर हमें उनकी आर्थिक स्थिति समझ न आती हो तो लड़ाइयां और सवाल ही बेईमानी हैं।
ज्यादा बेहतर होता कि हम उठ खड़े होते और कहते कि अंकिता के परिवार को आर्थिक मदद हम मिल कर करेंगे और जोशी जी यकीन मानिए महज एक एक रुपये की मदद से ही करोड़ रुपये की मदद हो जाती उसके बाद कुछ इस तरह की बात होती तो सवाल भी सही माने जाते और आक्षेप भी।
माफ कीजिये पर अंकिता की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु को बिना उसके परिवार की सहायता किसी आंदोलन के आधार के रूप में देखते हुए अंकिता के पिता को लालची ठहरा देना भी वही मानसिकता है जो विनोद आर्य और उसके बेटे पुलकित आर्य और उसके उन साथियों की है जिन्होंने अंकिता की हत्या की ।
खैर ..! अपमान क्रोध और संजीदगी के बीच की महीन रेखा समझ न आती हो तो नीचे आपकी पोस्ट के स्क्रीन शॉट के साथ एक वीडियो भी चस्पा है उसे भी देख लीजिएगा समझना शायद आसान हो जाये।
तमाम हुज्जत के बाद सवाल जिंदा हैं और हमे पहला सवाल ही हल होते हुए नहीं दिखता कि वो वी आई पी गेस्ट आखिर था कौन …?
– अखिलेश डिमरी
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जो करता है एक लोकतंत्र का निर्माण।
यह है वह वस्तु जो लोकतंत्र को जीवन देती नवीन
अंकिता के पिता को लालची ठहरा देना भी वही मानसिकता है जो विनोद आर्य और उसके बेटे पुलकित आर्य और उसके उन साथियों की है जिन्होंने अंकिता की हत्या की ।
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