नीलकंठ भट्ट  / देहरादून  - एक व्यक्ति 1000 किमी पैदल चल जाए। वही व्यक्ति बारिश में सम्बोधन दे और जनता बारिश में भी श्रोता बनी रहे। तमिल, मलयालम, तेलगु भाषी क्षेत्रो से होकर कन्नड़ भाषी क्षेत्र में बगैर विवाद के पहुंच चुका हो, अब तक उसे न भाषाई दिक्कत का सामना करना पड़ा, न धर्म की छींटाकशी से दो चार होना पड़ा। उसे क्षेत्रीय प्रतिरोध भी नहीं दिखा। उसे अब तक न बुखार छू पाया न जुकाम। ये उस व्यक्ति के बेहतर स्वास्थ्य, स्टेमिना और प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हां उसकी पदयात्रा से नोयडा में एसी के भीतर बैठे कुछ चारनभाटों को अवश्य नजला हो गया है, जो शायद ही कभी ठीक हो पाए।

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ऐसे व्यक्ति को 8 साल से न सिर्फ पप्पू बताया जा रहा है बल्कि एक षड्यंत्र के तहत मंदबुद्धि साबित करने के प्रयास भी होते रहे हैं। उसने अपनी पदयात्रा से साबित कर दिया है कि वो वर्तमान में अपने समकक्ष नेतृत्व से अधिक फुर्तीला है, अपने कदमों से पूरे देश को नापने की क्षमता रखता है। उसे अब तक पैदल यात्रा में निर्विवाद रूप से जन समर्थन और हौसला मिला है। परन्तु उसकी असल परीक्षा गोबर पट्टी में प्रवेश के साथ आरंभ होगी। जहां पग पग पर उसे धर्म, क्षेत्र, जाति, सम्प्रदाय के नाम पर विषधर मिलेंगे, हर दिन एक नए षड्यंत्र रचते शकुनि मिलेंगे, चप्पे चप्पे पर सत्ता प्रायोजित गोदी मीडिया के बिछाए जाल मिलेंगे। विभीषण और जयचंद रूपी भितरघाती राह रोकेंगे। ये देखना वेहद दिलचस्प रहेगा कि गोबर पट्टी में उसके प्रवेश के बाद क्या क्या गुल खिलते हैं। वैसे भी इस पट्टी की 35 फीसद जनता पप्पू नाम रटते रटते पिछले 8 साल में कब खुद पप्पू बन गई, उसे खुद ही पता नहीं।