गुलदार से भिड़ा, लड़ा और बचाई भाई की जान, जानिए रोंगटे खड़े करने वाले रूद्रप्रयाग जिले के वीर बालक की कहानी
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13/12/20223:38 pm
दीपक बेंजवाल / रूद्रप्रयाग। ।
दस्तक पहाड न्यूज- पहाड़ की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में जीवन जीना सरल नहीं है, यहाँ प्रकृति जितनी परीक्षा लेती है उसमें जंगल के खूंखार जानवर से आमना सामना होना भी आम है। फिर क्या बूढ़े और क्या बच्चे हर कोई ऐसे क्षणों का डटकर मुकाबला भी करता है। ऐसी ही वीरतापूर्वक कहानी है रूद्रप्रयाग जिले के बहादुर बच्चे नितिन की। बता दें, रुद्रप्रयाग के तमिण्ड गांव निवासी नितिन का सामना चंडिका मंदिर जाते हुए रास्ते में गुलदार से हो गया था। अदम्य साहस का परिचय देते हुए नितिन ने गुलदार से अपनी और अपने भाई की भी जान बचा ली। घटनाक्रम के अनुसार 18 वर्षीय नितिन 12 जुलाई 2021 की सुबह अपने बड़े भाई सुमित के साथ नारी देवी चंडिका मंदिर महायज्ञ में जा रहा था। रास्ते में डाडू तोक के पास पानी के स्रोत से वह पानी पीने लगा। इस बीच उसका बड़ा भाई कुछ आगे निकल गया, तभी पहले से घात लगाए बैठा गुलदार नितिन पर झपट गया। नितिन को तीन मीटर नीचे की ओर धकेलकर फिर उस पर झपटा। नितिन ने गुलदार से संघर्ष में उसके दोनो पंजों को पकड़ लिया, जो लहूलुहान होने के बावजूद अपने जीवन के लिए संघर्ष करता रहा। कुछ देर बाद नितिन का बड़ा भाई मौके पर पहुंच गया और उसने गुलदार पर पत्थर फेंके। इस बीच गुलदार नितिन को छोड़कर उसके भाई की और दौड़ पड़ा। इसी बीच नितिन के हाथ एक डंडा लगा और उसने गुलदार पर तेजी से प्रहार करते हुए शोर मचाना शुरू कर दिया। बच्चे की आवाज सुनकर ग्रामीण पहुंचे तो गुलदार भाग गया। लहूलुहान नितिन ने हिम्मत न हारते हुए न केवल खुद को सुरक्षित रखा बल्कि भाई की जान भी बचाई। नितिन की इस बहादुरी से हर कोई कायल है। उसकी इस बहादुरी के लिए उसका नाम राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए भेजा गया है।
राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार भारत में हर वर्ष 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर बहादुर बच्चों को दिए जाते हैं। भारतीय बाल कल्याण परिषद ने 1957 में ये पुरस्कार शुरु किये थे। पुरस्कार के रूप में एक पदक, प्रमाण पत्र और नकद राशि दी जाती है। सभी बच्चों को विद्यालय की पढ़ाई पूरी करने तक वित्तीय सहायता भी दी जाती है। 26 जनवरी के दिन ये बहादुर बच्चे हाथी पर सवारी करते हुए गणतंत्र दिवस परेड में सम्मिलित होते हैं। उत्तराखंड में अबतक कुल 14 बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार मिला है। इनमें से जिला देहरादून से सर्वाधिक चार बच्चे शामिल हैं। उत्तराखंड में अबतक कुल 14 बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार मिला है। इनमें से जिला देहरादून से सर्वाधिक चार बच्चे शामिल हैं। इनमें हरीश राणा,टिहरी गढ़वाल, 2003 माजदा,हरिद्वार,2004, पूजा कांडपाल,अल्मोड़ा,2007 प्रियांशु जोशी,देहरादून,2010 स्व. श्रुति लोधी,देहरादून,2010 स्व. कपिल नेगी,रुद्रप्रयाग,2011 मोनिका उर्फ मनीषा (मरणोपरांत),चमोली,2014 लाभांसु,देहरादून,2014 अर्जुन,टिहरी गढ़वाल,2015 सुमित ममगाईं,देहरादून,2016 पंकज सेमवाल,टिहरी गढ़वाल,2017 राखी,पौड़ी गढ़वाल,2019 सनी,नैनीताल,2020 मोहित चंद्र उप्रेती,पिथौरागढ़,2020 को वीरता पुरस्कार मिला है।
गुलदार से भिड़ा, लड़ा और बचाई भाई की जान, जानिए रोंगटे खड़े करने वाले रूद्रप्रयाग जिले के वीर बालक की कहानी
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दीपक बेंजवाल / रूद्रप्रयाग। ।
दस्तक पहाड न्यूज- पहाड़ की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में जीवन जीना सरल नहीं है, यहाँ प्रकृति जितनी परीक्षा लेती है उसमें जंगल के खूंखार जानवर से आमना
सामना होना भी आम है। फिर क्या बूढ़े और क्या बच्चे हर कोई ऐसे क्षणों का डटकर मुकाबला भी करता है। ऐसी ही वीरतापूर्वक कहानी है रूद्रप्रयाग जिले के बहादुर
बच्चे नितिन की। बता दें, रुद्रप्रयाग के तमिण्ड गांव निवासी नितिन का सामना चंडिका मंदिर जाते हुए रास्ते में गुलदार से हो गया था। अदम्य साहस का परिचय देते
हुए नितिन ने गुलदार से अपनी और अपने भाई की भी जान बचा ली। घटनाक्रम के अनुसार 18 वर्षीय नितिन 12 जुलाई 2021 की सुबह अपने बड़े भाई सुमित के साथ नारी देवी चंडिका
मंदिर महायज्ञ में जा रहा था। रास्ते में डाडू तोक के पास पानी के स्रोत से वह पानी पीने लगा। इस बीच उसका बड़ा भाई कुछ आगे निकल गया, तभी पहले से घात लगाए बैठा
गुलदार नितिन पर झपट गया। नितिन को तीन मीटर नीचे की ओर धकेलकर फिर उस पर झपटा। नितिन ने गुलदार से संघर्ष में उसके दोनो पंजों को पकड़ लिया, जो लहूलुहान होने
के बावजूद अपने जीवन के लिए संघर्ष करता रहा। कुछ देर बाद नितिन का बड़ा भाई मौके पर पहुंच गया और उसने गुलदार पर पत्थर फेंके। इस बीच गुलदार नितिन को छोड़कर
उसके भाई की और दौड़ पड़ा। इसी बीच नितिन के हाथ एक डंडा लगा और उसने गुलदार पर तेजी से प्रहार करते हुए शोर मचाना शुरू कर दिया। बच्चे की आवाज सुनकर ग्रामीण
पहुंचे तो गुलदार भाग गया। लहूलुहान नितिन ने हिम्मत न हारते हुए न केवल खुद को सुरक्षित रखा बल्कि भाई की जान भी बचाई। नितिन की इस बहादुरी से हर कोई कायल है।
उसकी इस बहादुरी के लिए उसका नाम राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए भेजा गया है।
राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार भारत में हर वर्ष 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर बहादुर बच्चों को दिए जाते हैं। भारतीय बाल कल्याण परिषद ने 1957 में ये पुरस्कार शुरु
किये थे। पुरस्कार के रूप में एक पदक, प्रमाण पत्र और नकद राशि दी जाती है। सभी बच्चों को विद्यालय की पढ़ाई पूरी करने तक वित्तीय सहायता भी दी जाती है। 26 जनवरी
के दिन ये बहादुर बच्चे हाथी पर सवारी करते हुए गणतंत्र दिवस परेड में सम्मिलित होते हैं। उत्तराखंड में अबतक कुल 14 बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार मिला
है। इनमें से जिला देहरादून से सर्वाधिक चार बच्चे शामिल हैं। उत्तराखंड में अबतक कुल 14 बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार मिला है। इनमें से जिला देहरादून
से सर्वाधिक चार बच्चे शामिल हैं। इनमें हरीश राणा,टिहरी गढ़वाल, 2003 माजदा,हरिद्वार,2004, पूजा कांडपाल,अल्मोड़ा,2007 प्रियांशु जोशी,देहरादून,2010 स्व. श्रुति
लोधी,देहरादून,2010 स्व. कपिल नेगी,रुद्रप्रयाग,2011 मोनिका उर्फ मनीषा (मरणोपरांत),चमोली,2014 लाभांसु,देहरादून,2014 अर्जुन,टिहरी गढ़वाल,2015 सुमित ममगाईं,देहरादून,2016
पंकज सेमवाल,टिहरी गढ़वाल,2017 राखी,पौड़ी गढ़वाल,2019 सनी,नैनीताल,2020 मोहित चंद्र उप्रेती,पिथौरागढ़,2020 को वीरता पुरस्कार मिला है।