दीपक बेंजवाल / जोशीमठ दस्तक पहाड न्यूज- पहाड़ के सीने को छलनी करने वाली जल विद्युत परियोजनाओं के खिलाफ अब जनता में जबर्दस्त गुस्सा है, खासकर जोशीमठ में बर्बादी की तस्वीर खीचने वाली सरकारी स्वामित्व वाली राष्ट्रीय तापविद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी) के खिलाफ लोग मुखर हो गए है। जहां एक ओर लोग विरोध प्रदर्शनों में ‘एनटीपीसी गो बैक’ के पोस्टर और प्लेकार्ड दिखा रहे, वही अब यह पोस्टर जगह-जगह दुकानों पर भी लगे दिखाई दे रहे हैं।

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बाजार में लोगों का कहना है कि इस कंपनी की वजह से उनके घरों में दरारें आ रही हैं। इसलिए इस कंपनी को हटाकर ही वे चैन लेंगे। जनता का साफ साफ कहना है कि एनटीपीसी पर जोशीमठ वालों से 2010 में किया गया समझौता लागू नहीं करने पर आपराधिक मुकदमा दर्ज होना चाहिए और 1000 करोड़ का हर्जाना वसूलना चाहिए। यदि मकानों और संपत्ति का बीमा किया गया होता तो सुरंगों (पावर व बाईपास टनल) में भारी विस्फोट करने से एनटीपीसी बचती या बीमा कंपनी नजर रखती। बीमा होने पर जो नुकसान एनटीपीसी या बीमा कंपनी को भरना पड़ता, वह भार अब केंद्र या राज्य सरकार पर पड़ेगा। इसलिए कम से कम उत्तराखंड राज्य सरकार को एन टीपीसी पर मुकदमा दर्ज कर देना चाहिए। उधर सरकारी स्वामित्व वाली राष्ट्रीय तापविद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी) ने बिजली मंत्रालय से कहा है कि इसकी परियोजना की इस क्षेत्र के जमीन धंसने में कोई भूमिका नहीं है। उसने कहा कि तपोवन विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना से जुड़ी 12 किलोमीटर लंबी सुरंग जोशीमठ शहर से एक किलोमीटर दूर है और जमीन से कम से कम एक किलोमीटर नीचे है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय को लिखे पत्र कम्पनी ने लिखा है कि तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना के उत्पादन के लिए बांध स्थल पर पानी के अंतर्ग्रहण को बिजलीघर से जोड़ने वाली एक हेड ट्रेस टनल (एचआरटी) “जोशीमठ शहर के नीचे से नहीं गुजर रही है”. एनटीपीसी ने पत्र में लिखा, “सुरंग जोशीमठ शहर की बाहरी सीमा से लगभग 1.1 किमी की क्षैतिज दूरी पर है और जमीनी सतह से लगभग 1.1 किमी नीचे है.” एनटीपीसी ने कहा कि जोशीमठ में जमीन धंसने का मामला काफी पुराना है जो पहली बार 1976 में देखा गया था। एनटीपीसी ने राज्य सरकार द्वारा उसी साल नियुक्त एम.सी. मिश्रा समिति का हवाला देते हुए दरारों व जमीन धंसने के लिये “हिल वॉश (चट्टान या ढलान के आधार पर इकट्ठा मलबा), झुकाव का प्राकृतिक कोण, रिसाव के कारण खेती का क्षेत्र और भू-क्षरण” को जिम्मेदार बताया। एनटीपीसी की इस सफाई पर उसकी चालाकी साफ दिखती है, जिस मिश्रा समिति का वह हवाला देकर बचने की कोशिश कर रही है, उस समिति की रिपोर्ट में जोशीमठ के पेयजल श्रोतों के मरम्मत, पुनर्निर्माण की बात और भवनों के बीमे की बात कही गई थी। एनटीपीसी ने तब पेयजल संकट समाधान के लिए बजट दिया लेकिन बीमे को बार-बार टालती रही। दरअसल एनटीपीसी जिस सुरंग को सुरक्षित बता रही है वह शुरू से विवादों के घेरे में है, निर्माण के पहले चरण में अत्याधिक जल रिसाव से एक सुरंग को बंद करना पड़ा था और उसके समान्तर दूसरी सुरंग मे निर्माण शुरू हुआ। लगातार विस्फोटको से किए जा रहे सुरंग निर्माण ने धीरे धीरे जोशीमठ को हिलाना शुरू किया। लोग आवाज उठाते रहे लेकिन एनटीपीसी की दंबगाई नहीं रूकी और आज भी वो अपने को साफ बचाती दिख रही है। जबकि सच नंगी आंखो से एनटीपीसी की पहली सुरंग के नजदीक गुजर रहे बद्रीनाथ राजमार्ग को देखकर ही लगाया जा सकता है जो पिछले कुछ सालो से लगातार दरक रहा है। जोशीमठ हादसे के पीछे सरासर एनटीपीसी जिम्मेदार है जिस पर लोगो के जबरन मौत के मुँह में धकेलने पर दंडात्मक कार्यवाही होनी चाहिए।