दस्तक पहाड न्यूज । उत्तराखंड बसंत पंचमी का पर्व हिंदू धर्म में बहुत ही श्रद्धा और भक्तिभाव से मनाया जाता है।. इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।. सभी धर्मों में ज्ञान के महत्व को बताया गया है। बसंत पंचमी का पर्व ज्ञान के महत्व को भी दर्शाता है। बसंत पंचमी की तिथि पंचांग के अनुसार आरंभ हो चुकी है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी के नाम से जाना जाता है। बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा की जाती है। ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद बेंजवाल के

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अनुसार, इस साल बसंत पंचमी का दिन बहुत ही विशेष होने वाला है। माघ की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 25 जनवरी को दोपहर 12:35 से शुरू होकर 26 जनवरी सुबह 10:29 मिनट तक रहेगी। सर्वोदय पंचमी 26 जनवरी को होने से इसी दिन बसंत पंचमी मनाई जाएगी। वहीं अबूझ मुहूर्त के रूप में मान्यता प्राप्त होने से इस दिन शादी-विवाह की भी धूम रहेगी और अन्य शुभ-मांगलिक कार्य भी संपन्न होंगे। इस बार गुरुवार के दिन बंसत पंचमी का पर्व पड़ रहा है। गुरुवार का संबंध भगवान विष्णु से है। विशेष बात ये है कि पंचमी की तिथि भी विष्णु जी की पूजा के लिए उत्तम मानी गई है. इसके साथ ही कई शुभ योग भी इस दिन बन रहे हैं, जो बसंत पंचमी के महत्व को कई गुणा बढ़ा देते हैं।. इस दिन शिक्षा का प्रारंभ, किस शुभ कार्य को करने के लिए किसी भी प्रकार के मुहूर्त को देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। बसंत पंचमी पर विद्यारंभ संस्कार में ऐसे करें गणपति एवं सरस्वती पूजन गणपति पूजन: बच्चे के हाथ में रोली, अक्षत, पुष्प देकर सर्व प्रथम गणपति के इस मंत्र का जाप करते हुए गणेश जी की प्रतिमा पर अर्पित कराएं- गणानां त्वा गणपति हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपति हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति हवामहे, वसोमम। आहमजानि गभर्धमात्वमजासि गभर्धम्। गणपतये नम:। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥ सरस्वती पूजन : एक फूल में हल्दी, रोली लगाएं और अक्षत संग इन सभी चीजों को बच्चे के हाथ में दें. अब इस मंत्र को बोलते हुए मां सरस्वती को चरणों में ये सामग्री अर्पित कर दें - पावका न: सरस्वती, वाजेभिवार्जिनीवती। यज्ञं वष्टुधियावसु:। सरस्वत्यै नम:। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि। दवात पूजन : दवात के बिना कलम अधूरी मानी जाती है. दवात के लिए स्याही या खड़िया को पूजा की चौकी पर स्थापित करें. अब इसपर मौली, रोली, अक्षत, पुष्प आदि बच्चे के हाथ से अर्पित कराएं. इस मंत्र का जाप करें - देवीस्तिस्रस्तिस्रो देवीवर्योधसं, पतिमिन्द्रमवद्धर्यन्। जगत्या छन्दसेन्द्रिय शूषमिन्द्रे, वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज।। पट्‌टी पूजन: पट्‌टी यानी स्लेट, इसके पूजन के लिए संतान द्वारा मंत्रोच्चार के साथ पूजा स्थल पर स्थापित पट्टी पर पूजन सामग्री से उपासना करें. पट्‌टी पूजन के लिए मंत्र - सरस्वती योन्यां गर्भमन्तरश्विभ्यां, पतनी सुकृतं बिभर्ति। अपारसेन वरुणो न साम्नेन्द्र, श्रियै जनयन्नप्सु राजा॥ गुरु पूजन : विद्यारंभ संस्कार में गुरु पूजन का भी महत्व है. गुरु पूजन के लिए यदि बच्चे के गुरु उपस्थित हों तो उनकी पूजा की जानी चाहिए नहीं तो प्रतीक रूप में नारियल की पूजा की जानी चाहिए. गुरु को तिलक करें, पुष्प, माला, कलावा, फल आदि अर्पित करें और बालक से आरती करवाएं. मंत्र - बृहस्पते अति यदयोर्ऽ, अहार्द्द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु, यद्दीदयच्छवसऽ ऋतप्रजात, तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये, त्वैष ते योनिबृर्हस्पतये त्वा॥ श्री गुरवे नम:। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि। हवन : विद्यारंभ संस्कार का अंतिम चरण है हवन. हवन सामग्री में कुछ मिष्ठान मिलाकर पांच बार मंत्रोच्चार के साथ बच्चे से 5 बार आहूति डलवाएं. मंत्र - ऊं सरस्वती मनसा पेशलं, वसु नासत्याभ्यां वयति दशर्तं वपु:। रसं परिस्रुता न रोहितं, नग्नहुधीर्रस्तसरं न वेम स्वाहा। इदं सरस्वत्यै इदं न मम। बसंत पंचमी पर बन रहहाई 5 शुभ योग, जानें सरस्वती पूजन का उत्तम मुहूर्त शिव योग -सुबह 03:10 - दोपहर 03:29 सर्वार्थ सिद्धि योग - 25 जनवरी, शाम 06:57 - 26 जनवरी, सुबह 07:12 सिद्ध योग -26 जनवरी, दोपहर 03:29 - 27 जनवरी, दोपहर 1:22 रवि योग -25 जनवरी, शाम 06:57 - 26 जनवरी, सुबह 07:12 बसंत पंचमी पर- गुरुवार का दिन सरस्वती पूजा का समय - सुबह 07.07 - दोपहर 12.35 बसंत पंचमी पूजा विधि बसंत पंचमी के दिन पूजा के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नानादि कर साफ कपड़े पहन लें. फिर मां सरस्वती की प्रतिमा या मूर्ति को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें. अब रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, पीले या सफेद रंग के पुष्प, पीली मिठाई और अक्षत अर्पित करें. पूजा के स्थान पर वाद्य यंत्र और किताबों को भी रखें फिर मां सरस्वती की वंदना का पाठ करें। बसंत पंचमी पर पीले रंग का विशेष महत्व इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनते हैं। पूजा में पीले पुष्प और मिष्ठान को चढ़ाया जाता है।बसंत पंचमी का ज्योतिषीय महत्व भी है।जिन लोगों की कुंडली में बुध या बृहस्पति ग्रह अशुभ फल दे रहा है, तो इस दिन विशेष पूजा और मंत्र का जाप कर काफी हद तक इन ग्रहों की अशुभता को दूर किया जा सकता है. इस दिन विधि पूर्वक पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। बसंत पंचमी क्यों मनाई जाती है, जानें सरस्वती पूजा से जुड़ी रोचक कथा बसंत पंचमी का पर्व मां सरस्वती के अवतरण दिवस में रूप में मनाया जाता है। हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ब्रह्माजी संसार के भ्रमण पर निकले हुए थे। उन्होंने जब सारा ब्रह्माण्ड देखे तो उन्हें सब मूक नजर आया। यानी हर तरफ खामोशी छाई हुई थी। इसे देखने के बाद उन्हें लगा कि संसार की रचना में कुछ कमी रह गई है। इसके बाद ब्रह्माजी एक जगह पर ठहर गए और उन्होंने अपने कमंडल से थोड़ा जल निकालकर छिड़क दिया। तो एक महान ज्योतिपुंज में से एक देवी प्रकट हुई। जिनके हाथों में वीणा थी और चेहरे पर बहुत ज्यादा तेज। यह देवी थी सरस्वती, उन्होंने ब्रह्माजी को प्रणाम किया। मां सरस्वती के अवतरण दिवस के रूप में बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है।ब्रह्माजी ने सरस्वती से कहा कि इस संसार में सभी लोग मूक है। ये सभी लोग बस चल रहे हैं इनमें आपसी संवाद नहीं है। ये लोग आपस में बातचीत नहीं कर पाते हैं। इसपर देवी सरस्वती ने पूछा की प्रभु मेरे लिए क्या आज्ञा है? ब्रह्माजी ने कहा देवी आपको अपनी वीणा की मदद की इन्हें ध्वनि प्रदान करो। ताकि ये लोग आपस में बातचीत कर सकें। एक दूसरे की तकलीफ को समझ सकें। इसके बाद मां सरस्वती ने सभी को आवाज प्रदान करी।