हरीश गुसाई  / अगस्त्यमुनि। दस्तक पहाड न्यूज ब्यूरो। अगस्त्यमुनि नगर क्षेत्र में सरकारी विभाग अपनी परिसम्पतियों को लेकर कहीं से भी गम्भीर नहीं दिखते हैं। जब कोई योजना परवान चढ़ती है तो उसे भूमि की दरकार होती है कई लोग अपनी निजी भूमि इस हेतु दान भी करते हैं। परन्तु विभागीय लापरवाही इतनी है कि वे समय रहते दान अथवा खरीद की भूमि को अपने नाम नहीं करवाते हैं। ऐसे में उस भूमि पर अवैध कब्जे होने लगते हैं। ऐसा ही नगर क्षेत्र अगस्तयमुनि में भी दिख रहा है जहां सरकारी विभागों की परिसम्पतियों को

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कब्जाने का सिलसिला रूकने का नाम नहीं ले रहा है। कुछ दिन पूर्व दस्तक ने लोनिवि के भवन पर बिहारी मजदूरों का कब्जा करने की खबर प्रकाशित की थी। अब ताजा मामला उद्यान विभाग की जमीन को लेकर है। जहां पर कुछ स्थानीय लोगों ने अपनी जमीन बताकर कृषि मण्डी के भवनों पर कब्जा करने के साथ ही अपना निर्माण भी प्रारम्भ कर दिया है। स्थानीय लोग जहां इसे अपनी नाप खेत की भूमि बता रहे हैं। तो 60 वर्ष से उस जमीन पर काबिज उद्यान विभाग को अपनी जमीन ढ़ूंडे नहीं मिल रही है। अब प्रश्न उठ रहा है कि आखिर उद्यान विभाग पिछले 60 वर्षों से उस भूमि पर किस हैसियत से अपनी नर्सरी चला रहा था? दरअसल वर्ष 1963-64 में अगस्त्यमुनि में राजकीय आदर्श उद्यान केन्द्र खुला और इस हेतु विभाग ने 25 नाली सरकारी भूमि तो 50 नाली विभिन्न खातेदारों की भूमि अधिगृहित की थी। और तब से ही विभाग उक्त भूमि पर अपनी नर्सरी चला रहा है। वर्ष 2003 में एक शासनादेश के तहत प्रदेश में उद्यान विभाग के 54 उद्यानों को उत्तरांचल सैनिक पुनर्वास कल्याण सोसाइटी देहरादून को हस्तांतरित करने कर दिया गया। जिसमें अगस्त्यमुनि स्थित राजकीय आदर्श उद्यान की कुल दो हैक्टेयर भूमि सैनिक पुनर्वास कल्याण सोसाइटी को हस्तांतरित की गई।   वर्ष 2015-16 में अगस्त्यमुनि में पूर्व विधायक प्रताप सिंह पुष्पाण के नाम पर कृषि मण्डी खोलने की घोषणा होने के बाद विभाग की 20 नाली भूमि मण्डी परिषद को दी गई। वर्ष 2018 में इस पर कार्य प्रारम्भ हुआ। और मण्डी परिषद का भवन एवं दुकाने बनने लगी। इसी दौरान चार धाम परियोजना के तहत राष्ट्रीय राजमार्ग की चैड़ाई बढ़ाने के साथ ही कई जगहों पर बाई पास रोड़ बनाने की योजना स्वीकृत हुई। जिसके तहत अगस्त्यमुनि में बाई पास रोड़ की स्वीकृति हुई जो कि थाने के बगल से होते हुए उद्यान विभाग की जमीन के एक बडे़ हिस्से से होकर गुजरते हुए नाकोट, धान्यू, बनियाड़ी होते हुए पेट्रोल पम्प तक बनना है। जब इस पर सर्वे हुआ और मुआवजा बंटने लगा तब पता चला कि सरकारी भूमि के अतिरिक्त अन्य कोई भी नाप खेत विभाग के नाम नहीं है। ऐसे में जिन लोगों के नाम की भूमि से बाई पास सड़क कटी उन्हें तो मुआवजा मिल गया। वहीं बाकी लोग अपनी नाप खेत पर कब्जा करने लगे। यह देखकर कृषि मण्डी का निर्माण करने वाली संस्था ने भी निर्माण कार्य अधूरा छोड़ दिया। जिस पर अब स्थानीय खातेदार अपना कब्जा कर रहे हैं। यहां यह देखकर अचरज होता है कि वर्ष 2004 में उद्यान विभाग खाता खतौनी नम्बरों के साथ दो हैक्टेयर (100 नाली) भूमि उत्तरांचल सैनिक पुनर्वास कल्याण सोसाइटी देहरादून को हस्तांतरित कर देता है जबकि उसके नाम पर कोई भी जमीन नहीं थी। वहीं 2018 में उद्यान विभाग 25 नाली सरकारी भूमि तथा 50 नाली भूमि विभिन्न खातेदारों से वर्ष 1963-64 में खरीदी बताकर लोनिवि राष्ट्रीय राजमार्ग के अधिशासी अभियन्ता से उक्त भूमि का किसी भी खातेदार को मुआवजा भुगतान न करने को कह रहा है। जिसकी सूचना जिलाधिकारी कार्यालय को की जा रही है। अब यहां प्रश्न उठता है कि जो भूमि विभाग के नाम ही नहीं है उस भूमि पर इतने वर्षों से किस हैसियत से उद्यान विभाग अपनी नर्सरी चला रहा था? वहीं जो खातेदार उक्त जमीन अपने नाम की बता रहे हैं वे 60 वर्षों से चुप क्यों थे? इस सम्बन्ध में जब जिला उद्यान अधिकारी योगेन्द्र चैधरी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि यह बात उनके संज्ञान में है। उन्होंने इस सम्बन्ध में उद्यान अधिकारी चमोली के साथ ही तहसील ऊखीमठ एवं रूद्रप्रयाग से भी जानकारी मांग थी। यहां तक कि निदेशालय से भी इस सम्बन्ध में जानकारी मांगी गई परन्तु कहीं से भी कोई खरीदनामा या दान नामा की प्रति नहीं मिल पाई। वहीं इस सम्बन्ध में जिलाधिकारी मयूर दीक्षित का कहना है कि इस प्रकरण की जांच की जायेगी। अगर किसी भी व्यक्ति का सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा पाया जायेगा तो उसके खिलाफ कार्यवाही की जायेगी।