दस्तक पहाड न्यूज- महाशिव की सबसे प्रिय केदारघाटी में महाशिवरात्रि सबकी प्रिय होना स्वाभाविक है लेकिन इसका लोक परंपरागत रूप बेहद अनूठा और रोचक है। केदारघाटी के बहुत से गाँवो में इस दिन बरतोई ( व्रत रखने वाले ) मिट्टी से शिव पार्वती के लिंग स्वरूप दो प्रतीक बनाते है। इन प्रतीके पर जौ के दानो को सीधा डुबोकर लगाया जाता है जिसके शीर्ष पर बुराश का सुर्ख फूला हुआ बुरांश लगाया जाता है। साँझ होते ही इन प्रतीको को गाँव की जलधाराओ की शीर्ष पर बने खदरे ( चौकौर स्थान)पर रखा जाता है। इन प्रतीको की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है और प्रसाद के लिऐ मरझे के लय्या ( चौलाई के भुने हुऐ दाने ) और भुजे हुऐ भट्ट ( सोयाबीन ) को रखा जाता है। महाशिवरात्री की पूरी रात इन्हे यू ही रखा जाता है अगली सुबह इन प्रतीको को वापस निकाला लिया जाता है, वहा रखे प्रसाद को सभी में बाँटा जाता है। ये प्रतीक मादेव पारवती कहलाते है। कई गाँवो में इन्हे रखते समय मांगल गीत भी गाये जाते है। इन प्रतीको के साथ एक धनोळी भी बनाई जाती है। धनोळी रिंगाल की डंडी से बनी एक डोली होती है जिस पर धागे में सिली बुरांश की अलग अलग पंखुड़िया लगाके मकान कें बाहर टांग दिया जाता है। आस्था के ये प्रतीक महादेव और पारवती से केदारघाटी का संबध बतलाते है।
देवताओ तक के लिऐ दुर्लभ ( देवानामपि दुर्वलभम) जाने वाली केदारघाटी के संबध मे स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में भगवान शिव स्वंय कहते है कि यह केदारघाटी मुझे सबसे प्रिय है जैसे मै प्राचीन हू वैसे यह स्थान भी प्राचीन है। इस घाटी को पार्वती लोक भी कहते है। मनणा के ऊचे बुग्यालो में पार्वती के खेत आज भी है। जिनमे आज भी स्वतः ही धान उगता है और फिर पककर गिर जाता है कई सालो से इन खेतो में यह धान उगता आ रहा है।
भगवान महादेव को पूजने की यह लोक परंपरा आज भी गाँवो में जीवित है।
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मादेव पारवती…केदारघाटी में धूमधाम से मनाई गई यह अनूठी परंपरा
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दीपक बेंजवाल। केदारघाटी
दस्तक पहाड न्यूज- महाशिव की सबसे प्रिय केदारघाटी में महाशिवरात्रि सबकी प्रिय होना स्वाभाविक है लेकिन इसका लोक परंपरागत रूप बेहद अनूठा और रोचक है।
केदारघाटी के बहुत से गाँवो में इस दिन बरतोई ( व्रत रखने वाले ) मिट्टी से शिव पार्वती के लिंग स्वरूप दो प्रतीक बनाते है। इन प्रतीके पर जौ के दानो को सीधा
डुबोकर लगाया जाता है जिसके शीर्ष पर बुराश का सुर्ख फूला हुआ बुरांश लगाया जाता है। साँझ होते ही इन प्रतीको को गाँव की जलधाराओ की शीर्ष पर बने खदरे ( चौकौर
स्थान)पर रखा जाता है। इन प्रतीको की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है और प्रसाद के लिऐ मरझे के लय्या ( चौलाई के भुने हुऐ दाने ) और भुजे हुऐ भट्ट ( सोयाबीन ) को रखा
जाता है। महाशिवरात्री की पूरी रात इन्हे यू ही रखा जाता है अगली सुबह इन प्रतीको को वापस निकाला लिया जाता है, वहा रखे प्रसाद को सभी में बाँटा जाता है। ये
प्रतीक मादेव पारवती कहलाते है। कई गाँवो में इन्हे रखते समय मांगल गीत भी गाये जाते है। इन प्रतीको के साथ एक धनोळी भी बनाई जाती है। धनोळी रिंगाल की डंडी से
बनी एक डोली होती है जिस पर धागे में सिली बुरांश की अलग अलग पंखुड़िया लगाके मकान कें बाहर टांग दिया जाता है। आस्था के ये प्रतीक महादेव और पारवती से
केदारघाटी का संबध बतलाते है।
देवताओ तक के लिऐ दुर्लभ ( देवानामपि दुर्वलभम) जाने वाली केदारघाटी के संबध मे स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में भगवान शिव स्वंय कहते है कि यह केदारघाटी मुझे
सबसे प्रिय है जैसे मै प्राचीन हू वैसे यह स्थान भी प्राचीन है। इस घाटी को पार्वती लोक भी कहते है। मनणा के ऊचे बुग्यालो में पार्वती के खेत आज भी है। जिनमे आज
भी स्वतः ही धान उगता है और फिर पककर गिर जाता है कई सालो से इन खेतो में यह धान उगता आ रहा है।
भगवान महादेव को पूजने की यह लोक परंपरा आज भी गाँवो में जीवित है।