गुणानंद जखमोला । गैरसैंण  उत्तराखंड की राजनीति की रखैल है ‘गैरसैंण‘ दो दिन के लिए फिर सजेगी महफिल, रातें होंगी गुलजार जब दिल भरेगा तो दून वापस लौट आएगा धोखेबाज राजनीति

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उत्तराखंड राज्य आंदोलन की अस्मिता का केंद्र गैरसैंण अब प्रदेश की राजनीति की रखैल बन गया है। चुनाव के वक्त या फिर जब राजा का मन देहरादून से भर जाता है तो गैरसैंण जाने का आदेश होता है। लाव-लश्कर के साथ राजनीति गैरसैंण पहुंचें इससे पहले गैरसैंण को हरम की तरह सजाया संवारा जाता है। गजरे और फूलों की खुशबू से हरम महकने लगता है। जाम से जाम टकराए जाते हैं। मुर्गों और पहाड़ी बकरों की बलि होती है। रातें रंगीन होती हैं यानी खूब मौज होगी, सैर-सपाटा भी। काशी की विधवा सी निवार्सित जीवन बिता रही गैरसैंण भी अपने पिया के आने की खबर सुन जी-उठती है। खूब श्रंृगार करती है। हंसती है, दौड़ती है और गाती है, फूल बरसाने की बात करती है। उसका पागलपन देख सब ठगे रह जाते हैं, इतनी खुशी मिलती है उसे। 22 साल से एकनिष्ठ प्रेम करने वाली इस रखैल को हर बार की तरह एक बार फिर उम्मीद होगी कि उसे पूरी तरह से अपना लिया जाएगा। उसकी मांग में भी सिंदूर सजेगा और माथे पर होगी गोल सी बिंदी। अब उसके हाथों और बालों में लिपटे गजरे किराए की झूठी सुगंध से नहीं महकेंगे, बल्कि हाथों में होंगी लाल-लाल चूड़ियां और लटें बिखरी होंगी किसी बल खाती नवयुवती की तरह कंधों पर, गालों पर। उधर कुटिल राजनीति को इस प्रेम की कद्र कहां? उसे तो पहाड़ की इस निर्मल गंगा से खेलना है। उसका इस्तेमाल करना है। बदलाव के लिए उससे झूठा प्रेम प्रदर्शन करना है। धोखेबाज, मक्कार कहीं का। हफ्ता भर कहकर आया है, लेकिन जब मन भर जाएगा तो फिर उसे झूठे उम्मीदों और आश्वासनों की लॉलीपॉप देकर फिर लौट जाएगा देहरादून। और गैरसैंण की आंखों में फिर बहेगी गंगा-जमुना, वह फिर मजबूर हो जाएगी काशी की विधवा सा जीवन जीने को, और फिर शुरू हो जाएगा पिया मिलन की उम्मीद का लंबा और अंतहीन इंतजार। यही गैरसैंण की नीयति है।