दहकते अंगारों पर नाचे केदारघाटी के जाख देवता, हजारों की भीड़ ने साक्षात देखा अदभुत दृश्य
1 min read
15/04/20235:25 pm
दीपक बेंजवाल / जाखधार
दस्तक पहाड न्यूज- केदारघाटी का प्रसिद्ध जाख मेला नर पश्वा के धधकते अंगारों पर नृत्य करने के साथ ही संपन्न हुआ, इस दौरान हजारों भक्तों ने भगवान यक्ष के प्रत्यक्ष दर्शन करके सुख समृद्धि की कामना की। इस बार भगवान जाख के नर पशवा ने दो बार अग्निकुंड में प्रवेश किया। दहकते अंगारों पर जाख देवता के नृत्य की परंपरा सदियों पुरानी है। हर वर्ष आयोजित होने वाले इस मेले में हजारों की संख्या में भक्तजन जाख राजा के दर्शन करने आते हैं। मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व कोठेड़ा और नारायणकोटी के भक्तजन नंगे पांव जंगल में जाकर लकड़ियां एकत्रित कर जाख मंदिर में लाते हैं जिसे स्थानीय भाषा में गोठी बिठाना कहा जाता है।
जाख मंदिर में कई टन लकड़ियों से भव्य अग्निकुण्ड तैयार किया जाता है। वैशाखी के दूसरे दिन गुप्तकाशी से 5 किलोमीटर दूर जाखधार में जाख मेले का आयोजन होता है। मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व कोठेड़ा और नारायणकोटी के भक्तजन नंगे पांव जंगल में जाकर लकड़ियां एकत्रित कर जाख मंदिर में लाते हैं। जाख मंदिर में कई टन लकड़ियों से भव्य अग्निकुण्ड तैयार किया जाता है.. जाख मेले से एक दिन पहले की रात अग्निकुण्ड व मंदिर की पूजा की जाती है। फिर अग्निकुण्ड में रखी लकड़ियां प्रज्वलित की जाती हैं. यहां पर नारायणकोटी और कोठेड़ा के ग्रामीण रातभर जागरण करते हैं. दूसरे दिन जाख देवता इन्हीं धधकते अंगारों पर नृत्य करते हैं।
11वीं सदी से चली आ रही यह परंपरा आज भी उत्साह के साथ मनाई जाती है। मंत्रोच्चार से अग्निकुण्ड में रखी लकड़ियां प्रज्वलित की जाती हैं। यहां पर नारायणकोटी और कोठेड़ा के ग्रामीण रातभर जागरण करते हैं. दूसरे दिन जाख देवता इन्हीं धधकते अंगारों पर नृत्य करते हैं। शुक्रवार को यह देवयात्रा भेत से कोठेड़ा गांव होते हुए देवशाल पहुंची। जहां पर विंध्यवासिनी मंदिर में देवशाल के ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार के साथ भगवान शिव की स्तुति की। जिसके बाद देवशाल से भगवान जाख के पश्व और ग्रामीण जलते दिए और जाख की कंडी के साथ श्रद्धालुओं के साथ देवस्थल पहुंचे। यहां पर 5 जोड़ी ढोल दमाऊं की स्वर लहरी और पौराणिक जागरों के साथ मानव देह में देवता अवतरित हुए, फिर जाख देवता ने दहकते हुए अंगारों के अग्निकुंड में प्रवेश कर भक्तों को साक्षात यक्ष रूप में दर्शन दिये। गत दिनों पुराने नर पश्वा के असामयिक मौत के बाद यह संदेह जताया जा रहा था, कि अब आखिरकार किस पर जाख अवतरित होंगे, लेकिन जैसे ही देवशाल मंदिर में मंत्रोच्चार हुआ, नर पश्वा सच्चिदानंद पर देव अवतरित हुए। नए अवतरण के साथ ही श्रद्धालुओं ने पूरे जोश के साथ भगवान यक्ष के जयकारे लगाए।
देश और दुनिया सहित स्थानीय खबरों के लिए जुड़े रहे दस्तक पहाड़ से।
खबर में दी गई जानकारी और सूचना से क्या आप संतुष्ट हैं? अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
दहकते अंगारों पर नाचे केदारघाटी के जाख देवता, हजारों की भीड़ ने साक्षात देखा अदभुत दृश्य
दस्तक पहाड़ की से ब्रेकिंग न्यूज़:
भारत में सशक्त मीडिया सेंटर व निष्पक्ष पत्रकारिता को समाज में स्थापित करना हमारे वेब मीडिया न्यूज़ चैनल का विशेष लक्ष्य है। खबरों के क्षेत्र में नई क्रांति लाने के साथ-साथ असहायों व जरूरतमंदों का भी सभी स्तरों पर मदद करना, उनको सामाजिक सुरक्षा देना भी हमारे उद्देश्यों की प्रमुख प्राथमिकताओं में मुख्य रूप से शामिल है। ताकि सर्व जन हिताय और सर्व जन सुखाय की संकल्पना को साकार किया जा सके।
दीपक बेंजवाल / जाखधार
दस्तक पहाड न्यूज- केदारघाटी का प्रसिद्ध जाख मेला नर पश्वा के धधकते अंगारों पर नृत्य करने के साथ ही संपन्न हुआ, इस दौरान हजारों भक्तों ने भगवान यक्ष के
प्रत्यक्ष दर्शन करके सुख समृद्धि की कामना की। इस बार भगवान जाख के नर पशवा ने दो बार अग्निकुंड में प्रवेश किया। दहकते अंगारों पर जाख देवता के नृत्य की
परंपरा सदियों पुरानी है। हर वर्ष आयोजित होने वाले इस मेले में हजारों की संख्या में भक्तजन जाख राजा के दर्शन करने आते हैं। मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व
कोठेड़ा और नारायणकोटी के भक्तजन नंगे पांव जंगल में जाकर लकड़ियां एकत्रित कर जाख मंदिर में लाते हैं जिसे स्थानीय भाषा में गोठी बिठाना कहा जाता है।
जाख मंदिर में कई टन लकड़ियों से भव्य अग्निकुण्ड तैयार किया जाता है। वैशाखी के दूसरे दिन गुप्तकाशी से 5 किलोमीटर दूर जाखधार में जाख मेले का आयोजन होता है।
मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व कोठेड़ा और नारायणकोटी के भक्तजन नंगे पांव जंगल में जाकर लकड़ियां एकत्रित कर जाख मंदिर में लाते हैं। जाख मंदिर में कई टन
लकड़ियों से भव्य अग्निकुण्ड तैयार किया जाता है.. जाख मेले से एक दिन पहले की रात अग्निकुण्ड व मंदिर की पूजा की जाती है। फिर अग्निकुण्ड में रखी लकड़ियां
प्रज्वलित की जाती हैं. यहां पर नारायणकोटी और कोठेड़ा के ग्रामीण रातभर जागरण करते हैं. दूसरे दिन जाख देवता इन्हीं धधकते अंगारों पर नृत्य करते हैं।
11वीं सदी से चली आ रही यह परंपरा आज भी उत्साह के साथ मनाई जाती है। मंत्रोच्चार से अग्निकुण्ड में रखी लकड़ियां प्रज्वलित की जाती हैं। यहां पर नारायणकोटी और
कोठेड़ा के ग्रामीण रातभर जागरण करते हैं. दूसरे दिन जाख देवता इन्हीं धधकते अंगारों पर नृत्य करते हैं। शुक्रवार को यह देवयात्रा भेत से कोठेड़ा गांव होते
हुए देवशाल पहुंची। जहां पर विंध्यवासिनी मंदिर में देवशाल के ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार के साथ भगवान शिव की स्तुति की। जिसके बाद देवशाल से भगवान जाख के
पश्व और ग्रामीण जलते दिए और जाख की कंडी के साथ श्रद्धालुओं के साथ देवस्थल पहुंचे। यहां पर 5 जोड़ी ढोल दमाऊं की स्वर लहरी और पौराणिक जागरों के साथ मानव देह
में देवता अवतरित हुए, फिर जाख देवता ने दहकते हुए अंगारों के अग्निकुंड में प्रवेश कर भक्तों को साक्षात यक्ष रूप में दर्शन दिये। गत दिनों पुराने नर पश्वा
के असामयिक मौत के बाद यह संदेह जताया जा रहा था, कि अब आखिरकार किस पर जाख अवतरित होंगे, लेकिन जैसे ही देवशाल मंदिर में मंत्रोच्चार हुआ, नर पश्वा सच्चिदानंद
पर देव अवतरित हुए। नए अवतरण के साथ ही श्रद्धालुओं ने पूरे जोश के साथ भगवान यक्ष के जयकारे लगाए।