अखिलेश डिमरी / चमोली दस्तक पहाड न्यूज- जंगल राज और जंगल का कानून ....? समझिये कि किस दौर में किन हालातों में जीने को मजबूर हैं कि आप अपने खेत बगीचे से आडू लाकर भी सड़क पर नहीं बेच सकते और रसूखदार बीच जंगल पांच सितारा रिजॉर्ट बना सकते हैं।

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सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा यह मामला सीमांत जनपद चमोली की मंडल घाटी का है, जहां बताया जा रहा है कि बीते कल वनविभाग के अधिकारियों को सड़क के किनारे दो नाबालिग बच्चों का बोरी बिछा कर राहगीरों को आडू बेचना वन अधिकारों का उलंघन नजर आया और उन्होंने दोनों नाबालिगों की डंडों से पिटाई कर डाली...! इस खबर को सही मानें तो ये भी जान लीजिए कि इस सूबे में वन विभाग की तमाम करतूतें किसी से छिपी नहीं हैं वनभूमि पर पंचसितारा होटलों की बहुमंजिली इमारतें बनाना भले ही इस विभाग की नजर में अपराध न हो लेकिन अपने परिवार की रोजी रोटी चलाने के लिए आडू बेचते नाबालिग इनकी निगाह में इतने गम्भीर अपराधी हैं कि फारेस्ट रेंजर स्तर के आस पास का अधिकारीऔर उनके साथ मौजूद गार्ड को लाठी डंडों से नाबालिगों की पिटाई करते हुए फैसला आन द स्पॉट करना पड़ता है...? ये वही वन विभाग है जिसे सड़क किनारे टाट बिछा कर आडू बेचते नाबालिगों में वन कानूनों का उलंघन करने वाले गंभीर अपराधी तो दिख जाते हैं लेकिन सेंचुरी एरिया में केदारनाथ से बद्रीनाथ की ओर रुद्रनाथ भगवान के मंदिर के आस पास से कम ऊंचाई पर दहाड़ते हुए हेलीकॉप्टर कम्पनियां और उनके हेलीकॉप्टर नहीं दिखते....? नीचे चस्पा तस्वीरों को देखिये और वन विभाग के आला अधिकारियों को भी सलाम कीजिये कि उनके मातहतों ने सड़क किनारे आडू बेचते और उनकी नजर में वन कानूनों का उलंघन करते गम्भीर अपराधियों जो कि नाबालिग हैं को आन द स्पॉट सजा दी। यकीन मानिए कि अगर ये सब देखने के बाद भी आपको सब सामान्य ही लगता है तो आगे भी यही हमारी नियति है। इस बात के किये भी वन विभाग और उनके मातहत अधिकारी कर्मचारियों को बधाई दीजिये कि देश के कानूनों में भले ही नाबालिग अपराधी कहे जाने वालों के साथ पुलिस भी शारीरिक बल प्रयोग न कर सकती हो पर जंगल के कानून में सब जायज है इस बात को केदारनाथ वन प्रभाग के अधिकारी कर्मचारियों ने सिद्ध कर दिया । अब बात इस सूबे के बाल संरक्षण आयोग और मानवाधिकार आयोग की कि क्या वह इस मामले का संज्ञान लेता है या यह मान लिया जाए कि आम आदमी के लिए जंगल के कानून ही उसकी नियति है। इंतजार करिये कि इस मामले पर कैसे लीपा पोती की जाती है पर जंगल के कानूनों के इतर सवाल तब भी जिंदा रहेंगे कि- 1. क्या सड़क किनारे आडू बेचना क्राइम है ...? यदि हां तो उसके लिए क्या प्रावधान हैं ....? 2. अगर यह क्राइम है भी तो क्या वन विभाग को ऐसे मामलों में शारीरिक बल प्रयोग का अधिकार है..? 3. क्या वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी किसी भी दशा में किसी नाबालिग पर शारीरिक बल प्रयोग कर सकते हैं...? 4. जंगल के कानूनों को छोड़ दें तो नाबालिग से हिंसा करने पर क्या प्रावधान हैं ...? उसका पालन करने हेतु कौन अधिकृत है...? इस तथ्य की जानकारी भी जुटाई जानी जरूरी है कि घटना के लगभग 16 घण्टे बाद तक कोई FIR फाइल हुई या नहीं...? अगर हुई तो कितनी आसानी से हुई ...? सड़क किनारे आडू बेचते वन विभाग की नजर में दुर्दांत नाबालिग अपराधियों का मेडिकल हुआ या नहीं आदि आदि आदि। फिलहाल वायरल होती खबर और उसकी एवज में नीचे चस्पा तस्वीरें बहुत कुछ बयाँ कर जाती हैं। बेलगाम होती नौकरशाही ही पलीता लगवाएगी का इससे बढ़िया उदाहरण भी शायद ही कहीं हो।