दस्तक पहाड न्यूज  / उत्तराखंड  आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। देवशयनी एकादशी के दिन से ही भगवान विष्णु चार माह के लिए शयन अवस्था में चले जाते हैं। जिस वजह से इसे देव पद एकादशी, शयनी एकादशी या महा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।इसी के साथ इस दिन से चातुर्मास का आरंभ भी हो जाता है। ऐसे में अगले 4 महीने तक कोई भी शुभ कार्य का आयोजन करना वर्जित माना जाता है। हर साल चातुर्मास सामान्‍य रूप से 4 महीने का

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होता है, लेकिन इस साल अधिक मास होने के कारण चातुर्मास 5 महीने का होगा, यानी कि इस दिन भगवान विष्णु पूरे 5 महीने के लिए योग निद्रा में चले जाएंगा और फिर इसके बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी कि देवउठनी एकादशी के दिन योग निद्रा से जागेंगे। देवशयनी एकादशी पूजा मुहूर्त देवशयनी एकादशी तिथि का आरंभ 29 जून को सुबह 3 बजकर 18 मिनट से होगी और अगले दिन 30 जून को दोपहर 2 बजकर 42 मिनट तक रहेगी। देवशयनी एकादशी पर इस तरह करें पूजा एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। देवशयनी एकादशी के दिन व्रत करने से भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न होते हैं। इसके अलावा इस दिन पूजा में तुलसी का प्रयोग जरूर करना चाहिए। तुलसी के भोग के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है। देवशयनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। फिर साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद भगवान विष्णु का जलाभिषेक करें और उनका ध्यान करें। फिर भगवान विष्णु को फूल, चंदन, अक्षत, नेवैध अर्पित करें। इस बात का ख्याल रखें की भगवान विष्णु को इस दिन जो भी भोग लगाएं उसमें तुलसी जरुर डालें। इसके बाद भगवान विष्णु को मंत्रों का जप करें। साथ ही भगवान विष्णु के स्रोत का पाठ भी करें। अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें और पीपल के पेड़ की पूजा भी करें। ख्याल रखें की व्रत करने के साथ साथ पूजा के बाद कथा का पाठ जरूर करें। भगवान शिव करेंगे सृष्टि का संचालन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के विश्राम करने से सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं. इस दौरान सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, बस विवाह समेत अन्य मांगलिक कार्य नहीं होते हैं. इस दौरान भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करना चाहिए।