गुणानंद जखमोला / देहरादून  23 साल बीते। मैं जितनी बार सीएम की गिनती करता हूं, कम पड़ जाती है। सारे तंत्र-मंत्र, साधना और मंदिर-मंदिर भटक कर भी प्रदेश के सीएम अपनी कुर्सी नहीं बचा पाते हैं। पूर्व सीएम हरीश रावत को सीबीआई ने 2016 प्रकरण में नोटिस थमाया है कि बताओ, स्टिंग में क्या है? आरोप है कि उस दौरान हरक रावत ने एयरपोर्ट पर खेल किया और अब दोनों नेता गलबहियां डाले हैं 2024 आने तक। दोनों रावतों की नजरें हरिद्वार लोकसभा सीट पर हैं।

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खैर, बात सीएम के ब्लैकमेलिंग की हो रही है। पहले सीएम नित्यानंद को भगतदा ने घेरा और निपटा डाला। भगतदा को जनता ने निपटा दिया। एनडी ने पांच साल पूरे किये और जमकर मनमानी की। हर नेता के सिर पर लालबत्ती सजा दी। इसके बाद सत्ता बदली तो आरोपों के मुताबिक निशंक ने पहले जनरल को निपटा दिया और फिर मेजर जनरल खंडूड़ी ने लेफ्टीनेंट जनरल टीपीएस के कंधे पर रक्षा मोर्चा की बंदूक चला कर निशंक को निपटा दिया। निशंक के बारे में एक बार फिर जोर पकड़ रहा है कि महाशय की अधिकांश डिग्रियां फर्जी हैं। उधर, सबसे भ्रष्टतम सीएम में शुमार विजय बहुगुणा को हरीश रावत ने निपटा दिया तो हरीश रावत को लगभग-लगभग सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत ने निपटा दिया था। इसके बाद 2021 में तो भाजपा को 100 दिनों में तीन सीएम बदलने पड़े। आज सीएम धामी हैं। धामी धाकड़ बताए जाते हैं। देखते हैं, कब तक टिकते हैं। दरअसल, यह प्रदेश के सीएम बदलने की पटकथा नेताओं के भ्रष्टाचार और काली कमाई को लेकर है। यहां का हर नेता रोज सपने देखता है कि वह सीएम बन गया। मूल रूप से हमारे प्रदेश के अधिकांश नेता छोटे-मोटे ठेकेदार और दलाल थे, जो कि वक्त के साथ ब्लैकमेलर बन गये और सत्ता के शीर्ष तक पहुंच गये। अधिकांश नेताओं का धंधा समाजसेवा नहीं बल्कि ब्लैकमेलिंग करना है। नेता सीएम को धमकाते हैं कि मान जा, चुप रह, ये काम कर, ये न कर, नहीं माना तो सरकार गिरा देंगे। बेचारा सीएम, करे तो क्या करें, न करें तो क्या न करें।