17 साल बाद होगा क्वीली में नंदा पातबीड़ा ( डाळी) उत्सव का आयोजन, कार्यक्रम घोषित
1 min read06/07/2023 11:04 pm
दीपक बेंजवाल / अगस्त्यमुनि
दस्तक पहाड न्यूज – रूद्रप्रयाग जिले के नन्दा देवी मन्दिर क्वीली में 17 साल के अंतराल पर इस वर्ष अगस्त माह में श्री नन्दा देवी पात-बीड़ा अनुष्ठानिक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।
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सौर चक्र और ऋतु चक्र की ताल और गति के साथ होने वाली भगवती नन्दा का इस पात बीड़ा उत्सव को लेकर तैयारियाँ प्रारंभ हो गई है। क्वीली कुरझण एवं बड़कोटी गांव के ग्रामीणों द्वारा इस वर्ष यह आयोजन 17 अगस्त 2023 से आरम्भ होकर 25 अगस्त 2023 तक होगा। इस महोत्सव का मुख्य आकर्षण पाती 24 अगस्त 2023 को आयोजित होगी। इस 9 दिवसीय महोत्सव में 17 अगस्त भाद्रपद संकान्ति से देवी का पूजन आरम्भ एवं हरियाली रोपण व देवी के जागर गायन प्रारम्भ होंगे। 21 अगस्त को पंचमी तिथि में बीड़ा बीज रोपण और 22 अगस्त भाद्रपद 6 प्रविष्टे षष्टी तिथि को बीड़ा जल यात्रा आयोजित होगी।
इसी क्रम में 23 अगस्त भाद्रपद सप्तमी तिथि को विस्तृत देवी पूजन के साथ नंदा डाली को क्वीली गाँव के नंदा चौक में लाया जाएगा। 24 अगस्त अष्टमी तिथि को डाली का श्रृंगार, हवन, पूजन, पांडव पूजन, फल पुष्प एवं प्रसाद वितरण एवं
डाली विसर्जन व धर्म भाई लादू एवं नन्दा की विदाई होगी।
25 अगस्त को नवमी तिथि में बीड़ा एवं हरियाली का वितरण होगा।
जाली म्येरी गोरा तू उचा कविलास. ह्येरी कि जा फयेरी कि जा मेंतियु कु मुलुक
माँ नंदा जिसे लोक जगरो में गौरा नाम से सम्बोधित किया गया है, पहाड़ कि लोकमान्य देवी धियाण (बेटी) है, जिसे कुछ सालो के अंतराल के बाद पहाड़ वासी मायके बुलाते है, तब इस बेटी का स्वागत बड़े धूम धाम से किया जाता है। रुद्रप्रयाग जिले के पाली, सणगु, टेमना, कोटी, क़्वीली, कुरझण में बसे पुरोहित वंसज सालो के अंतराल पर अपनी ईष्ट भगवती नंदा को मायके बुलाते है। एक बार पाली, सणगु, टेमना गाँव आयोजन करते है तो दूसरी बार क्वीली कुरझण एवं बड़कोटी गाँव। नंदा के आगमन के लिए पातबीडा कौथिग का भव्य आयोजन होता है, माँ नंदा मायके आती है, पुरोहित वंसज माँ के जागर गाकर उसका भावपूर्ण स्वागत करते है।हर्षित प्रफुलित माँ नंदा अपने पस्वा (अवतारी पुरुष) पर प्रकट होती है, नंदा को अपने मायके के दर्शन करने होते है , नंदा की इच्छा पूर्ति के लिए चीड़ के लम्बे पेड़ को नियत स्थान में खड़ा किया जाता है, उसे स्थानीय वनस्पति कुणझा और फल फूलो से लाद दिया जाता है। इधर मायके को भेट्ने को बेसब्र माँ नंदा उत्सुक हो उठती है, जगरो के स्वर तेज हो उठते है, हर्षध्वनि बड़ जाती है, मायके वासियो का अपार जनसमूह अपनी नंदा गौरा को प्रकट होने कि प्राथना करते है। हुंकार भरती हुई माँ गौरा प्रकट होती है अपनी पाती यानि चीड़ के उस उचे पेड़ पर चढ़ जाती है जैसे जैसे ऊपर पहुचती है मायके का विहगंम दिर्श्य माँ को भा जाता है, मायके को देख बेटी नंदा प्रशन्न हो उठती है । खुशी से अश्रुधारा बहने लगती है, अपलक निहारती माँ गोरा नंदा अपने भक्तो मैती मुलकियो को सुखी सम्पन्न रहने का आशीवार्द देती है, अब विदाई का क्षण नजदीक आता है, माँ का अवतारी पस्वा धीरे धीरे पेड़ से नीचे उतरता है, अपने मैतियों को भेट स्वरुप फल फूल वितरित करती है, जमीन पर पहुचते माँ नंदा जोर जोर से रोने लगती है वातावरण भावुक हो उठता है, जनमानस भाव विहल हो जाता है, माँ नंदा फिर से बुलाने के अस्वाशन पर विदा लेती है…..पहाड़ कि यह रोचक परम्परा कई मायनो मै दिल कि गहराइयो को छूने में कामयाब हो उठती है, माँ का स्वागत और विदाई दोनों दृश्य जीवंत संस्कृति का दर्शन कराते है। धन्य है मेरा पहाड़ी मुलुक जहा आज भी देवत्व की भावना जीवित है …..जय माँ गौरा जय माँ नंदा भगवती
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