दीपक बेंजवाल  / दस्तक पहाड़ न्यूज  मासूम बच्चे... पढऩे, खेलने, तनाव मुक्त होकर खुशियां मनाने की उम्र... जब मासूमियत भरी इस उम्र में बच्चे आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं, तो एक परिवार नहीं, बल्कि पूरे समाज को धक्का लगता है। ऐसा ही एक दुखद मामला जखोली ब्लॉक मुख्यालय के कंपनियाँ गाँव में सामने आया, जहाँ 9 वीं में पढ़ने वाले 14 वर्षीय छात्र को माता-पिता की एक ख्वाहिश इतनी नागवार लगी कि उसने सोमवार सुबह अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। दरअसल बालक के माता-पिता ने उसे संस्कृत विद्यालय हरिद्वार में

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भेजने की इच्छा जताई थी लेकिन बालक जखोली की ही एक स्कूल में पढ़ना चाहता था। परिजन लगातार बच्चे पर संस्कृत विद्यालय में प्रवेश लेने का दबाव बनाते रहे, जिससे बालक अवसाद में आ गया और सोमवार सुबह फांसी लगाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। इस घटना से कपणिया गाँव समेत क्षेत्र में दुख का मातम छा गया है। बच्चे के परिजनों का रो रो कर बुरा हाल हैं। उनकी बात पर ये नादान इतना बड़ा कदम उठा लेगा जिसकी परिवारजनों को भी कोई उम्मीद नहीं थी। चौकी प्रभारी जखोली द्वारा लाश का पंचनामा भर कर शव को पोस्टमार्टम के लिए रुद्रप्रयाग जिला चिकित्सालय भेज दिया गया। युवावस्था में होती है सबसे ज्यादा आत्महत्या ऐसी घटनाओं के बाद सवाल उठते हैं कि आखिर बच्चे ने ऐसा किया क्यों? ज्यादातर मामलों में नादानी में बच्चे ये घातक कदम उठा लेते है। बच्चों के कोमल मन पर जो ठेस पहुंचती है, वह उन्हें आत्महत्या जैसे अपराध की ओर बढऩे पर मजबूर करती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों व विभिन्न शोध के अनुसार सबसे ज्यादा आत्महत्या करने वाले या तो टीनएज में होते हैं या युवावस्था में। टीनएज प्रोबेशन का समय होता है। बच्चों में कई तरह के मानसिक व शारीरिक बदलाव होते हैं। कई नए हार्मोन बनते हैं। वे इस दौरान काफी संवेदनशील होते हैं। छोटी सी बात भी उनके मन पर गहरा प्रभाव डालती है।