गुणानंद जखमोला / उत्तराखंड कल बारिश से एक पुल ढह गया। इसके बाद पूरा फिल्मी सीन क्रिएट हो गया। मैडम को मौके पर बुलवाया गया। गिरा हुआ पुल देख उनका चश्मा सिर से सीधे आंखों पर आ गया।

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गुस्से से लाल हो गयी और संबंधित अधिकारी को फोन मिलवाया गया। यह कहा गया कि फोन की रिकार्डिंग की जाए। पूरा दृश्य दिखाया जाए। टेक वन, टू, थ्री हो गया और फिर डायलॉग शुरू। पुल गिरने से बहुत चिन्तित हो गयी मैम। संबंधित अधिकारी को खूब झाडा-फटकारा। एक कुपोषित पुल गिरने से कोई इतना गुस्से में और गंभीर हो सकता है, जनता के प्रति यह प्रेम देख मेरी आंखों में आंसू आ गये और मैं वीडियो पूरा नहीं देख सका। ओहो, छोड़ो भी मैम, पुल तो बनतेे ही गिरने के लिए हैं। रुड़की गंगनहर का पुल गिरा, चौरास का पुल गिरा, रुद्रप्रयाग का पुल गिरा, कई लोगों की जानें भी गयी, कुछ हुआ क्या? जो इंजीनियर दोषी थे, वो चीफ इंजीनियर बनकर रिटायर्ड हो गये। आप तो छोटे से पुल गिरने की बात दिल पर ले रही हैं। कोई मरा भी नहीं। पुल निर्माण में 48 प्रतिशत कमीशन में चला जाता है। सात परसेंट तो विधायक को भी जाता है। बाकी 52 में ठेकेदार भी कुछ बचा लेता है। फिर सोचो, पुल तो रेत और मिट्टी से ही बनेगा। बन गया, ये बड़ी उपलब्धि है। कुछ समय तक टिका रहा, यह उससे बड़ी उपलब्धि है। आप शुक्र मनाओ कि इतना चल गया, बनते ही नहीं ढहा। रही बात खनन की, क्या मैम, खनन और शराब से ही तो सरकार चल रही है। आपकी गाड़ी दौड़ रही है। आप जानती ही हैं कि नेता खनन करना छोड़ दें और जनता शराब पीनी छोड़ दे ंतो सरकार दो दिन भी न चलें। इसलिए कह रहा हूं, प्लीज गुस्सा थूक दें। पुल मिट्टी का था, मिट्टी में मिल गया। जाने भी दो। एक किस्सा सुनाता हूं मैम, पुराने दिनों की बात है। मैं दिल्ली में पढ़ता था तो दिल्ली में एचकेएल भगत के किस्से सुनते थे। एक किस्सा आपको भी सुना देता हूूं। भगत से मिलने कोई भी फरियादी जाता। वह उसकी बात गंभीरता से सुनते। उन दिनों लैंडलाइन फोन का जमाना था। भगत अपने पीए से संबंधित अधिकारी से बात करने को कहते। पीए फोन मिलाकर देता और फिर एचकेएल भगत उस अफसर को खूब खरी-खोटी सुनाते। फरियादी खुश होकर घर चले जाता। बेचारे को तो यह पता ही नहीं होता कि लैंडलाइन फोन की तार तो स्विच से जुड़ी नहीं है।