गुणानंद जखमोला / उत्तराखंड  पूूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने महिलाओं को संपत्ति में बराबरी के अधिकार की बात की थी। संभवतः कानून भी बना था। संवैधानिक आधार पर हिन्दुओं में बेटी का अपने माता-पिता की संपत्ति पर बराबरी का अधिकार होता है। विशेषकर यदि बेटी अविवाहित है तो उसका तो हक बनता ही है। लेकिन रुद्रप्रयाग के घोलतीर में एक बेटी अपने अधिकार की लड़ाई पिछले तीन साल से लड़ रही है, लेकिन उसे आज तक इंसाफ नहीं मिला।

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रजनी के पिता रामसिंह की घोलतीर में दुकान है। सात कमरों का मकान भी है। रजनी के चार भाई और दो बहनें हैं। दोनों की शादी हो चुकी है। रजनी ने एमए, बीएड किया है। वह बच्चों को टयूशन पढ़ाकर अपनी रोजी-रोटी चला रही है। रजनी के अनुसार उसके पिता का 2014 और मां राजेश्वरी का 2015 में निधन हो गया। इसके बाद ही रजनी के जीवन में भूचाल आ गया। रजनी के बड़े भाई बलवंत ने पिता की दुकान संभाल ली। एक भाई होटल में काम करता था तो कोरोना के बाद गांव लौट आया। दो अभी दिल्ली में काम करते हैं। बहनों की शादी हो चुकी है। रजनी के मुताबिक उसकी शादी के रिश्ते आते थे तो भाई मना कर देते थे कि वह शादी नहीं करना चाहती है। अब वह पैतृक मकान के एक कमरे में रहती है तो उसके भाई उसे घर से निकालना चाहते हैं। वह कहती है साजिशन उसका नाम भी राशनकार्ड से काट दिया गया। भाईयों ने उस पर कुल्हाड़ी और थमला लेकर हमला करने का प्रयास भी किया। उसे पुलिस बुलानी पड़ी। रजनी के मुताबिक वह अपने माता-पिता के घर और संपत्ति में अधिकार चाहती है जो उसके भाई देने को तैयार नहीं हैं। रजनी ने पुलिस, एसडीएम और डीएम से भी गुहार लगाई है कि उसकी जान की सुरक्षा हो और उसे पैतृक संपत्ति में हिस्सा दिलवाया जाएं। उसके भाई बलवंत या किसी भी सदस्य का यदि कोई बयान आता है तो इस पोस्ट में शामिल कर दूंगा।